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श्रीलंका संकट: SC से सिरिसेना को करारा झटका, संसद भंग करने का फैसला पलटा

श्रीलंका की सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति मैत्रीपाला को झटका देते हुए उनके संसद भंग करने के फैसले को उलट दिया है. सोमवार को श्रीलंका की राजनीतिक पार्टियों और चुनाव आयोग के एक सदस्य ने सिरिसेना को सुप्रीम कोर्ट में घसीटते हुए संसद भंग करने के उनके विवादित फैसले को चुनौती दी.

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श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना (फेसबुक फोटो- @maithripalas)
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना (फेसबुक फोटो- @maithripalas)

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श्रीलंका की सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के संसद को भंग करने के फैसले को पलट दिया है. इसे मैत्रीपाला सिरिसेना और उनके नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के लिए करारा झटका माना जा रहा है. बता दें कि सिरिसेना ने रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त करके महिंदा राजपक्षे को पीएम नियुक्त कर दिया था.

इसके बाद विक्रमसिंघे ने संसद में बहुमत साबित करने का दावा किया था. साथ ही संसद के स्पीकर ने विक्रमसिंघे को बर्खास्त करने के राष्ट्रपति सिरिसेना के फैसले को मानने से इनकार कर दिया था. स्पीकर सदन में बहुमत साबित करने के लिए विक्रमसिंघे को मौका देने को भी राजी हो गए थे, जिसके बाद राष्ट्रपति सिरिसेना ने संसद को ही भंग कर दिया था.

इसके बाद सोमवार को श्रीलंका की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों और चुनाव आयोग के एक सदस्य ने राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना को सुप्रीम कोर्ट में घसीटते हुए संसद भंग करने के उनके विवादित फैसले को चुनौती दी थी. समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक मंगलवार को मामले की सुनवाई करते हुए श्रीलंका की शीर्ष अदालत ने राष्ट्रपति सिरिसेना के संसद भंग करने के फैसले को पलट दिया.

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श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने 9 नवंबर को संसद को किया था भंग

सिरिसेना ने संसद का कार्यकाल समाप्त होने से करीब 20 माह पहले उसे भंग करने का फैसला किया था. उन्होंने 9 नवंबर को संसद भंग करने का फैसला लेते हुए अगले साल पांच जनवरी को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी. सिरिसेना ने संसद भंग करने का फैसला तब लिया था, जब उनको लगा कि 72 वर्षीय महिंदा राजपक्षे के पास प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लिए सदन में पर्याप्त संख्या बल नहीं है.

सिरिसेना ने इसलिए किया था संसद भंग करने का फैसला

सिरिसेना ने 26 अक्टूबर को रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त करते हुए उनकी जगह राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर किया था. राजपक्षे को 225 सदस्यों वाले सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिए कम से कम 113 सांसदों के समर्थन की जरूरत थी.

इन राजनीतिक पार्टियों ने दी चुनौती

अधिकारियों ने बताया कि अपदस्थ प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP), मुख्य विपक्षी पार्टी तमिल नेशनल अलायंस (TNA) और वामपंथी JVP उन 10 समूहों में शामिल हैं, जिन्होंने शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर कर संसद भंग करने के राष्ट्रपति सिरिसेना के कदम को अवैध ठहराने की मांग की थी.

याचिकाकर्ताओं में चुनाव आयोग के सदस्य प्रोफेसर रत्नाजीवन हूले भी शामिल रहे. इसके अलावा गैर सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर पॉलिसी ऑल्टरनेटिव्ज’ (CPA) ने भी राष्ट्रपति के कदम को चुनौती देने के लिए एक याचिका दायर की थी.

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राष्ट्रपति ने अपने फैसले का किया था बचाव

ये याचिकाएं श्रीलंकाई सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस नलिन पेरेरा, न्यायमूर्ति प्रसन्ना जयवर्द्धने और न्यायमूर्ति प्रियंथा जयवर्द्धने की पीठ के समक्ष पेश की गई थीं. वहीं, रविवार को सिरिसेना ने संसद भंग करने के अपने विवादित फैसले का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था कि प्रतिद्वंद्वी सांसदों के बीच झड़पों से बचने के लिए यह फैसला लिया गया है. उन्होंने कहा था कि मीडिया में कुछ खबरें आईं थी कि 14 नवंबर को शक्ति परीक्षण के दौरान नेताओं के बीच झड़पें होंगी.

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