श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे 29 नवंबर को भारत दौरे पर आएंगे. राष्ट्रपति बनने के बाद यह उनका पहला भारत दौरा होगा. विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने मंगलवार को गोटाबाया से मिलकर उन्हें जीत की बधाई दी और भारत आने का न्योता दिया.
राष्ट्रपति गोटाबाया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भारत आने के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया. गोटाबाया राजपक्षे ने सोमवार को देश के 7वें कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की.
श्रीलंका के पोडुजना पेरामुना (एसएलपीपी) पार्टी के उम्मीदवार राजपक्षे ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज की और रविवार को उन्हें राष्ट्रपति घोषित किया गया. गोटाबाया ने 25 प्रशासनिक जिलों में से 16 जिलों -कालूतरा, गॉल, मतारा, हंबनटोटा, मोनारगला, रत्नापुरा, बादुल्ला, कुरुनगला, पुट्टलम, गम्पहा, कैंडी, मताले, पोलोन्नारुवा, कोलंबो, केगेल और अनुराधापुरा में जीत हासिल की थी.
चीन के लिए झटका!
चीन की राजनीति को समझने वाले जानकार मानते हैं कि गोटाबाया की जीत चीन के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है. लेकिन इससे उलट गोटाबाया का राष्ट्रपति बनते ही पहले दौरे पर भारत आना दूसरी ओर इशारा करता है. माना जा रहा है कि उनकी यात्रा से भारत और श्रीलंका के बीच संबंध मजबूत होंगे और दोनों देशों में व्यापार भी बढ़ेगा. बता दें कि गोटाबाया के बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के सत्ता में रहते हुए चीन ने श्रीलंका में काफी निवेश किया था. लेकिन जिस तरह गोटाबाया ने पीएम मोदी का न्योता खुले दिन से स्वीकारा है, वह चीन के लिए झटके के जैसा है.
मंत्रिमंडल नियुक्ति में होगी देरी!
बता दें नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे, मौजूदा प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे और विपक्षी नेता महिंदा राजपक्षे के बीच एक शीर्ष स्तर की बैठक लंबित होने की वजह से नए प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की नियुक्ति में देरी होने की संभावना है.
डेली फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, संसद को तत्काल भंग किए जाने के लिए यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस (यूओएफए) को समर्थन देने या फरवरी 2020 के अंत तक विपक्ष में बने रहने को लेकर मिलेजुले विचारों के बीच सोमवार को यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) की संसदीय समूह की बैठक में संभावित रूप से आगे की चर्चा हुई थी.
जहां प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने कहा है कि वह एक उत्तराधिकारी और एक नई सरकार की नियुक्त की अनुमति देने के लिए पद छोड़ने के इच्छुक हैं. वहीं इसे लेकर अलग-अलग विचार हैं कि जल्द ही आम चुनाव कराने का समर्थन करें या फरवरी के अंत तक विपक्ष में बैठें, जब संसद को भंग करने के लिए राष्ट्रपति संवैधानिक रूप से सशक्त होंगे.