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श्रीलंका: नहीं चली सिरिसेना की, संसद में राजपक्षे सरकार के खिलाफ वोट

श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना को बड़ा झटका लगा है. यहां की संसद ने राजपक्षे सरकार के खिलाफ वोट किया गया है. श्रीलंका की 225 सदस्‍यीय संसद में बुधवार को मतदान हुआ. 

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महिंद्रा राजपक्षे और राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना( फाइल फोटो)
महिंद्रा राजपक्षे और राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना( फाइल फोटो)

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श्रीलंका में जारी सियासी संकट थमने का नाम नहीं ले रहा है. यहां की संसद ने बुधवार को महिंद्रा राजपक्षे सरकार के खिलाफ वोट किया है. इससे राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना को जबर्दस्त झटका लगा है. संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या ने घोषणा की कि संसद ने प्रधानमंत्री राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. श्रीलंका की 225 सदस्‍यीय संसद में बुधवार को मतदान हुआ.

जयसूर्या ने राजपक्षे समर्थकों के विरोध के बीच घोषणा करते हुए कहा कि मैं स्वीकार करता हूं कि सरकार को बहुमत नहीं है. इससे पहले सोमवार को श्रीलंका के सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के संसद भंग करने के फैसले को पलट दिया था और 5 जनवरी को प्रस्तावित मध्यावधि चुनाव की तैयारियों पर रोक लगाने का आदेश दिया था.

इससे पहले राष्‍ट्रपति सिरिसेना ने 26 अक्‍टूबर को रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्‍त करते हुए महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था. हालांकि संसद में राजपक्षे के पक्ष में बहुमत नहीं था. इसके बाद राष्‍ट्रपति सिरिसेना ने संसद का कार्यकाल पूरा होने से 20 महीने पहले ही 9 नवंवबर को इसे भंग कर दिया.

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इसके बाद सोमवार को श्रीलंका की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों और चुनाव आयोग के एक सदस्य ने राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना को सुप्रीम कोर्ट में घसीटते हुए संसद भंग करने के उनके विवादित फैसले को चुनौती दी थी.

श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने 9 नवंबर को संसद को किया था भंग

सिरिसेना ने संसद का कार्यकाल समाप्त होने से करीब 20 माह पहले उसे भंग करने का फैसला किया था. उन्होंने 9 नवंबर को संसद भंग करने का फैसला लेते हुए अगले साल पांच जनवरी को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी. सिरिसेना ने संसद भंग करने का फैसला तब लिया था, जब उनको लगा कि 72 वर्षीय महिंदा राजपक्षे के पास प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लिए सदन में पर्याप्त संख्या बल नहीं है.

सिरिसेना ने इसलिए किया था संसद भंग करने का फैसला

सिरिसेना ने 26 अक्टूबर को रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त करते हुए उनकी जगह राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर किया था. राजपक्षे को 225 सदस्यों वाले सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिए कम से कम 113 सांसदों के समर्थन की जरूरत थी.

इन राजनीतिक पार्टियों ने दी चुनौती

अधिकारियों ने बताया कि अपदस्थ प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP), मुख्य विपक्षी पार्टी तमिल नेशनल अलायंस (TNA) और वामपंथी JVP उन 10 समूहों में शामिल हैं, जिन्होंने शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर कर संसद भंग करने के राष्ट्रपति सिरिसेना के कदम को अवैध ठहराने की मांग की थी.

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याचिकाकर्ताओं में चुनाव आयोग के सदस्य प्रोफेसर रत्नाजीवन हूले भी शामिल रहे. इसके अलावा गैर सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर पॉलिसी ऑल्टरनेटिव्ज’ (CPA) ने भी राष्ट्रपति के कदम को चुनौती देने के लिए एक याचिका दायर की थी.

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