हम सदियों से खरीद-फरोख्त के लिए पैसों का लेनदेन करते आए हैं. जब करेंसी नहीं थी, तब बार्टर सिस्टम हुआ करता. यानी अगर आपको बकरी चाहिए, तो बदले में अपनी भेड़ या ऐसी ही कीमती चीज बदले में देनी होती. वक्त के साथ कीमती रत्नों के बदले चीजें खरीदी जाने लगीं. फिर सिक्कों का चलन आया. सोने से लेकर तांबे और गिलट के हर सिक्के का अलग मोल होता. आखिर में करेंसी आई, और दुनिया पर छा गई. लेकिन अब भी दुनिया का एक हिस्सा ऐसा है, जहां कागज के नोट नहीं, बल्कि बड़े-बड़े पत्थर ही करेंसी हैं.
प्रशांत महासागर से घिरा यप द्वीप वही जगह है, जहां छोटे से लेकर इंसान के आकार के सिक्के चलते हैं. लगभग सौ स्क्वायर किलोमीटर में फैले इस द्वीप में लगभग 12 हजार लोग रहते हैं, जो कई गांवों में बंटे हैं. हर गांव और हर परिवार के पास कुछ सिक्के होते हैं. जिसके पास जितने ज्यादा और जितने भारी पत्थर होंगे, वो उतना ही अमीर माना जाएगा. भारी पत्थरों के बीच एक बड़ा छेद रहता है ताकि जिसे वो करेंसी दी जाए, वो उसे ठेलकर अपने घर तक ले जा सके.
स्टोन करेंसी की शुरुआत के बारे में कहीं खास जानकारी नहीं मिलती कि इसकी शुरुआत क्यों और कैसे हुई. माना जाता है कि इसकी एक वजह यप पर किसी भी तरह की बहुमूल्य धातु या कच्चे माल का न मिल पाना है. यहां न तो सोना है, न कोयला. ऐसे में सदियों पहले इन्होंने चूना पत्थर को ही करेंसी की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. इस चूना पत्थर के लिए भी इन्हें अपने द्वीप से नाव लेकर लगभग 4 सौ किलोमीटर दूर पलाऊ द्वीप पर जाना होता था. यप के लोगों के लिए ये भी कीमती चीज थी, तो उन्होंने इसे ही मुद्रा की तरह काम में लाना शुरू कर दिया. वे पलाऊ से मजबूत नाव लेकर जाते और पत्थर लेकर लौट आते.
चूने के बड़े पत्थरों को तराशकर उनके बीच छेद कर दिया जाता और ऊपर की तरफ कहीं अपने परिवार या गांव का नाम लिख देते. इन्हें राई कहा गया. अगर किसी को छुट्टा पैसे चाहिए तो वो स्टोन करेंसी देगा, बदले में उसे सीपियां दी जाएंगी. समुद्र में मिलने वाली सीपियां भी यहां पैसों की कीमत रखा करती थीं. अब हालांकि सीप का चलन खत्म हो चुका, लेकिन स्टोन करेंसी अब भी यपवासियों के जीवन का हिस्सा है.
बड़े लेनदेन या डील में वे पत्थरों का उपयोग करते हैं. जैसे द्वीप के किसी शख्स से कोई गलती हो गई. समाज की बैठक होगी और शख्स या उसका परिवार अपना एक पत्थर गांव के नाम कर देगा. इसका रिकॉर्ड रखा जाता है ताकि कोई भूलचूक न हो. कई पत्थर इतने भारी होते हैं, कि वे यहां से वहां ट्रांसपोर्ट नहीं हो सकते. तब उन्हें वहीं छोड़ दिया जाता है, लेकिन साथ में कार्विंग कर दी जाती है कि उसका मालिक कौन है.
देसी ढंग से समझें तो स्टोन करेंसी की हैसियत खानदानी गहनों जैसी है. ये एक से दूसरी पीढ़ी के पास बहुत सम्मान से जाता रहता है.
सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान हालात बदले. इससे ठीक पहले द्वीप पर स्पेन का कब्जा हो चुका था ताकि समुद्री रास्तों पर सेनाएं तैयार की जा सकें. विश्व युद्ध के दौरान जापान की इंपीरियल आर्मी ने इसे हथिया लिया और स्टोन करेंसी का अलग ही उपयोग होने लगा. घरों-गांवों से करेंसी उठाकर कंस्ट्रक्शन के काम में लगाई जाने लगी. इसके बाद ही स्टोन करेंसी की जगह मॉडर्न करेंसी का चलन आ गया. लेकिन बड़े मौकों, जैसे शादी-ब्याह या बड़ी खरीदारी के समय दो पार्टियां पत्थरों का ही एक्सचेंज करती हैं.
फुटकर पैसों की जगह सीप को काम में लाने वाला एक द्वीप और भी है. सोलोमन आइलैंड लगभग हजार छोटे-बड़े द्वीपों से मिलकर बना देश है. वैसे इसपर काफी विवाद है. सोलोमन खुद को अलग देश बताता है, जबकि पापुआ न्यू गिनी भी इसे अपना मानता है.
टूरिस्ट प्लेस की तरह विकसित हो चुके इस द्वीप में 12 सौ ईसापूर्व सीपियों को पैसों की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया गया. ये चलन अब भी है. कुछ दर्जन शेल मनी को मिलाकर 1 हजार सोलोमन डॉलर गिना जाता है.