मॉरीशस का भारत से गहरा नाता है. वहां की करीब 70 फीसदी आबादी भारतीय मूल की है. वहां की सियासत में भी भारतीय लोगों का ही प्रभाव है. धर्म के लिहाज से भी वहां करीब 50 फीसदी आबादी हिंदू धर्म को मानने वाली है. भारतीय भाषाओं, रीतिरिवाजों का चलन वहां आम है. अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय यात्रा पर मॉरीशस में हैं तो ऐसे में ये जानना दिलचस्प है कि आखिर पश्चिमी हिंद महासागर के इस द्वीप में हिंदुस्तानी कैसे छा गए?
अंग्रेजों ने गिरमिटिया मजदूर के रूप में भारतीयों को बसाया
तमाम रिपोर्ट को खंगालने पर पता चलता है कि मॉरीशस की खोज ही 1502 में हुई. इसके बाद यहां कई लोगों ने अपना प्रभाव जमाने की कोशिश की. लेकिन इसे पहचान तब मिली जब 1715 में फ्रांस ने इसपर कब्जा किया. करीब 100 सालों तक फ्रांस का यहां कब्जा रहा लेकिन 1810 में ब्रिटेन ने इसको कब्जे में ले लिया.
यहीं से शुरू हुई कहानी...
जब ब्रिटिश का इस इलाके पर कब्जा हुआ तो इस इलाके को डेवलेप करने और खेती बाड़ी के काम के लिए भारत से मजदूरों को वहां बसाया गया. 1834 से लेकर 1924 तक अंग्रेज भारत से मजदूरों को मॉरीशस ले जाते रहे. हजारों की संख्या में लोगों को वहां बसाया गया. बाद में कुछ व्यापारी भी भारत से मॉरीशस पहुंचे. धीरे-धीरे भारत से गए लोगों ने वहां अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू किया और मुख्यधारा में शामिल होते गए.
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बाद में भाषा और सांस्कृतिक रिवाजों को लेकर वहां लोगों ने पहल की. रामगुलाम परिवार ने भोजपुरी भाषा और धर्म को लेकर कई स्तर पर पहल की जिससे वहां के लोगों में एकजुटता बढ़ती गई. 1930 आते-आते शिवसागर रामगुलाम ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी. शिवसागर के पिता भी बिहार से मजदूरी करने मॉरीशस पहुंचे थे. मजदूरों के अधिकारों को लेकर वहां बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और शिवसागर हीरो बनकर उभरे.
आखिरकार मॉरीशस को 1968 में आजादी मिली और शिवसागर राष्ट्रपिता कहलाए. वो पहले प्रधानमंत्री भी बने. उनके परिवार का राजनीतिक कद बढ़ता गया. मौजूदा पीएम नवीनचंद्र भी शिवसागर के बेटे हैं.
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मॉरीशस की करीब 70 फीसदी आबादी भारतीय
मॉरीशस में करीब 70 फीसदी आबादी भारतीय मूल की है. भोजपुरी भी यहां बड़े पैमाने पर बोली जाती है. धर्म के नजरिए से देखें तो मॉरीशस की कुल आबादी में करीब 50 फीसदी हिंदू हैं. इसके बाद करीब 32 फीसदी आबादी ईसाई धर्म को मानने वाली है, जबकि 15 फीसदी के करीब इस्लाम को मानने वाले हैं.