ग्लोबल वॉर्मिंग का असर उतना ज्यादा नहीं होगा, जितनी आशंका व्यक्त की गई थी. भला हो भारत और चीन कठोर प्रभावशाली जलवायु नीतियों का, जिससे यह मुमकिन हो सका है. वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ग्लोबल वॉर्मिंग कम करने के प्रयासों से कदम पीछे खींच लेने के बाद पर्यावरण पर खतरा बढ़ने की आशंका पैदा हो गई थी.
एक नए अध्ययन के मुताबिक अब ग्लोबल वॉर्मिंग का खतरा उतना गंभीर नहीं होगा, जितना पहले अनुमान लगाया गया था. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि माहौल काफी सुधर जाएगा. धरती का औसत तापमान 2015 के पेरिस समझौते के लिमिट से ज्यादा तेज गति से बढ़ता रहेगा. 2015 पेरिस समझौते का मकसद ग्लोबल वॉर्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस (3.6 फ़ारनहाइट) नीचे लाना है.
यूरोप के तीन स्वतंत्र रिसर्च ग्रुप के कार्बन एक्शन ट्रैकर (कैट) की रिपोर्ट के अनुसार धरती 22वीं सदी तक 3.4 डिग्री सेल्सियस (6.1 फ़ारनहाइट) ज्यादा गर्म हो जाएगी. हालांकि पहले अनुमान 3.6 डिग्री सेल्सियस (6.5 फ़ारनहाइट) का लगा था. साल 2009 से शुरू कैट के रिसर्च के बाद यह पहला मौका है, जब सदी समाप्त होने के समय तापमान के अनुमान में गिरावट आई है. भारत में कोयले के व्यापक इस्तेमाल को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम हो. पेरिस समझौते के तहत चीन अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का प्रयास कर रहा है. इसके तहत वह 2030 तक कार्बन उत्सर्जन काफी हदतक घटा देगा.
गंभीर होंगे परिणाम
संयुक्त राष्ट्र के एक साइंस पैनल के अनुसार औसत वैश्विक तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस (5.4एफ) की बढ़ोतरी से भी गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. तापमान बढ़ने से कोरल रीव्स, अल्पाइन ग्लेशियर और आर्कटिक समर सी आइस और ग्रीनलैंड की बर्फ भी पिघल सकती है. इससे दुनियाभर में समुद्र का स्तर काफी बढ़ जाएगा.
रिसर्च ग्रुप के सदस्य बिल हारे ने कहा कि आप देख सकते हैं लीडर कौन है. जहां ट्रंप ने कदम पीछे किए तो चीन और भारत ने कदम आगे बढ़ाए. हारे ने कहा कि अभी यह कहना जल्दबाजी है कि वैश्विक उत्सर्जन में बढ़ोतरी आ रही है. उन्होंने कहा, 'चीन और भारत के उत्सर्जन की रफ्तार धीमी हुई है लेकिन यह अब भी उत्सर्जन ज्यादा है. खासतौर से भारत में. वैश्विक उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए सबसे बड़ा कदम यह होगा कि कई देशों में कोल प्लांट्स पूरी तरह से बंद किए जाएं. एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन 2017 में 2 प्रतिशत बढ़ सकता है. इसमें चीन से उत्सर्जन सबसे ज्यादा 3.5 प्रतिशत होगा.
वहीं आपको बता दें कि ट्रंप को नहीं लगता है कि क्लाइमेट चेंज मेन मेड ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन से हो रहा है. यही वजह है कि जून में उन्होंने कहा कि इसकी जगह वह अमेरिका के फोसिल ईंधन के क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने पर ध्यान देंगे.