सीरिया में इस्लामिक विद्रोहियों के आगे बशर अल-असद की हार हो गई है और उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है. इस्लामिक समूह हयात तहरीर अल शाम (HTS) के नेतृत्व में असद सरकार का तख्तापलट हुआ जो कि क्षेत्र के लिए एक बड़ी घटना है. सीरिया में तख्तापलट जहां अमेरिका, इजरायल और तुर्की के लिए फायदे की बात है तो वहीं, यह रूस, ईरान और उसके सहयोगी हिज्बुल्लाह के लिए बड़ा झटका है.
असद के पतन से किसको फायदा?
सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद अमेरिका, तुर्की और इजरायल की आंखों में चुभते रहे थे क्योंकि उनका गठबंधन रूस और ईरान के साथ था. अब उनके पतन के बाद से ये देश काफी खुश हैं.
असद के पतन को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि दशकों के दमन के बाद असद का जाना न्यायपूर्ण था लेकिन यह मध्य पूर्व के लिए जोखिम और अनिश्चितता का समय भी है.
अमेरिका और यूरोप का हौसला बढ़ा
अमेरिका के लिए असद का पतन आतंकवाद का मुकाबला करने, ईरानी प्रभाव को कम करने और मध्य पूर्व में स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद करेगा.
असद का पतन अमेरिका और यूरोप का हौसला बढ़ाने वाला है क्योंकि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सहयोगी के खो जाने से रूस और ईरान कमजोर पड़ गए हैं. यह अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके पश्चिमी सहयोगियों के लिए स्वागत योग्य कदम है.
बाजार रणनीतिकार बिल ब्लेन ने अमेरिकी न्यूज चैनल से बात करते हुए कहा, 'नई सच्चाई यह है कि जब डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी 2025 को पदभार ग्रहण करेंगे, तो उन्हें एक ऐसी स्थिति मिलेगी जहां विरोधी काफी कमजोर होंगे और गेंद बहुत हद तक अमेरिका के पाले में होगी. इसका मतलब यह नहीं है कि दुनिया कम खतरनाक हो गई है - यह पूरी तरह से अस्पष्ट है कि असद को उखाड़ फेंकने से किस तरह का नया सीरिया बनेगा- लेकिन ऐसा लगता है कि सत्ता और वैश्विक व्यवस्था का केंद्र पश्चिम की ओर वापस शिफ्ट हो रहा है.'
ब्लेन ने कहा कि असद का पतन और इस प्रक्रिया में रूस और ईरान की 'हार' बाजार पर असर डालेगी क्योंकि इससे डॉलर के प्रभुत्व को लेकर आशंकाएं दूर होंगी. साथ ही ट्रंप वैश्विक व्यापार को लेकर जो सोच रखते हैं, उसका विस्तार होगा. ब्लेन का कहना है कि दोनों ही मामलों में अमेरिका और अमेरिकी डॉलर को सबसे आगे और केंद्र में रखा जाएगा.'
सीरिया में सत्ता परिवर्तन से यूरोप को भी फायदा हो सकता है क्योंकि इसके यूरोप में सीरिया के विस्थापित शरणार्थियों की संख्या में कमी आएगी.
तुर्की भी फायदे में
तुर्की की बात करें तो, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि सीरिया के तख्तापलट में कहीं न कहीं तुर्की की भी संलिप्तता है. तुर्की असद सरकार के खिलाफ विद्रोही गुटों की मदद करता था. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन और बशर अल-असद कभी दोस्त हुआ करते थे लेकिन 14 साल पहले जब सीरिया में गृहयुद्ध शुरू हुआ तब एर्दोगन ने विद्रोही गुटों का समर्थन किया इसलिए क्योंकि तुर्की का भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी ईरान असद के समर्थन में आ गया था.
तुर्की सीरिया के सशस्त्र इस्लामी विपक्षी समूहों का मुख्य संरक्षक रहा है. जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा, सीरिया में तुर्की के समर्थन से चलने वाले विद्रोही मजबूत होते गए. असद के पतन से अब एर्दोगन को अपने भू-राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी. इससे उन्हें कई रणनीतिक टार्गेट को पूरा करने में मदद मिलेगी जिनमें से एक पूर्वोत्तर सीरिया में कुर्द अलगाववादियों पर अंकुश लगाना शामिल है.
सीरियाई कुर्द अलगाववादी तुर्की के कुर्द अलगाववादियों के साथ मिलकर तुर्की में अशांति फैलाने का काम करते हैं जो एर्दोगन के लिए सिरदर्द बना हुआ है. गृहयुद्ध में तबाह हुए सीरिया के पुनर्निर्माण कार्य से भी तुर्की के बिजनेसमैन को फायदा होगा.
इजरायल भी हुआ खुश
असद के सत्ता से बाहर होने से इजरायल को साफ तौर पर फायदा होगा. असद सरकार का पतन ईरान की क्षेत्रीय शक्ति की कमजोरी की एक बड़ी निशानी है. इससे ईरान ने अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों के खिलाफ जो प्रतिरोध की धुरी बनाई थी, वो कमजोर पड़ी है.
असद के बाद अब ईरान लेबनान स्थित अपने प्रॉक्सी समूह हिज्बुल्लाह तक हथियार और राशन नहीं पहुंचा पाएगा क्योंकि अब वो इस काम के लिए सीरियाई जमीन का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा. ईरान की मदद के बिना हिज्बुल्लाह इजरायल के खिलाफ और कमजोर पड़ जाएगा जो इजरायल के लिए अच्छी खबर है.
ईरान और रूस को बड़ा झटका
बशर अल-असद का पतन ईरान और रूस के लिए बड़ा झटका है. रूस और ईरान ने मिलकर 2015 में बशर अल-असद की सरकार को गिरने से बचाया था. ईरान के कंट्रोल वाले शिया मिलिशिया और रूसी बमबारी की मदद से असद विद्रोहियों से अलेप्पो शहर को वापस ले पाए थे.
BlueBay Asset Management के रणनीतिकार टिमोथी ऐश का कहना है कि सीरिया में असद का पतन इस्लामिक देश ईरान के दुर्भाग्य का बढ़ना है क्योंकि इजरायल ने पहले ही उसके प्रॉक्सी समूहों, लेबनान में हिजबुल्लाह और गाजा पट्टी में हमास को कमजोर कर दिया है.
ऐश कहते हैं, 'ईरान की स्थिति बद से बदतर होता जा रही है, क्योंकि हिज्बुल्लाह के बाद उनका एक और प्रॉक्सी असद का पतन हो गया है.'
वहीं, रूस की बात करें तो, मध्य-पूर्व में रूस की सबसे मजबूत स्थिति सीरिया में थी. रूस ने सीरिया में बड़े पैमाने पर सैन्य मौजूदगी बनाई थी जो कि अब असद के साथ ही खत्म हो चुकी है. यानी मध्य-पूर्व में रूस की रणनीतिक और सैन्य पकड़ कमजोर हुई है.
ब्रिटेन स्थित थिंक टैंक चैथम हाउस के क्रिस्टोफर फिलिप्स ने कहा, 'इजरायल के साथ युद्ध में हिज्बुल्लाह का सफाया हो गया है. इस कारण ईरान भी बहुत कमजोर हो गया है. वहीं, रूस ने भी अपनी अधिकांश सेना यूक्रेन के साथ युद्ध में भेजी है. असद का कोई भी सहयोगी पहले जैसी उनकी मदद नहीं कर पाया जिससे उनका पतन हुआ.'