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अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने गुरुवार को 'युवी फतेह' यानी विक्ट्री डे मनाया. दरअसल, 1989 में 27वें रमजान के दिन सोवियत यूनियन की फौज अफगानिस्तान छोड़कर चली गई थी. उस दिन की याद में ही तालिबान विक्ट्री डे मनाता है. तालिबान ने सत्ता में आते ही विक्ट्री डे पर बड़ा आयोजन किया.
तालिबान सरकार की तरफ से विक्ट्री डे पर काबुल में एक समारोह हुआ. इसमें तालिबान के सभी नेता शामिल हुए. खास बात यह रही की समारोह में पहली बार अफगानिस्तान के गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी लाइव टेलीविजन पर सामने आए. हक्कानी ने एक बार फिर अफगानिस्तान के विपक्षी नेताओं से सरकार के साथ हाथ मिलाने की अपील की.
सिराजुद्दीन हक्कानी ने कहा कि अफगानिस्तान में पिछले 40 साल के दौरान 20 लाख से भी ज्यादा लोगों ने अपनी कुर्बानी दी है. लेकिन इसके बाद भी विश्व की 2 बड़ी ताकतें (सोवियत यूनियन और अमेरिका) अफगानिस्तान छोड़ने पर मजबूर हो गईं. अफगानिस्तान की यह कुर्बानियां अफगानिस्तान में इस्लामी निजाम कायम करने के लिए दी गईं. फिलहाल अफगानिस्तान में तालिबान अपने मिशन में कामयाब हो गया है. अब अफगानिस्तान में हुक्म-ए-इलाही की ही सरकार चलेगी.
कम नहीं हो रहीं धमाकों की घटनाएं
बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता कायम होने के बाद भी पूरी तरह से शांति कायम नहीं हो सकी है. वहां कुछ दिनों के अंतर से बम धमाकों की घटनाएं सामने आती रहती हैं. उत्तरी अफगानिस्तान में एक दिन पहले 28 अप्रैल को कुछ ही मिनटों के अंदर 2 बम धमाकों में 9 लोगों की मौत हो गई और 13 अन्य घायल हो गए. तालिबान के पुलिस प्रमुख के प्रवक्ता मोहम्मद आसिफ वजीरी ने बताया कि बल्ख प्रांत की राजधानी मजार-ए-शरीफ में दो अलग-अलग धमाके हुए.
स्थानीय निवासियों ने सुरक्षा के डर से नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बम धमाके का लक्ष्य शिया अल्पसंख्यक हजारा जातीय समूह के सदस्य थे. अफगानिस्तान में घातक बम विस्फोटों की श्रृंखला में यह नया हमला है. पिछले हफ्ते, एक मस्जिद और एक धार्मिक भवन स्कूल में बम फटने से 33 शिया मुस्लिम मारे गए थे. पिछले दिनों भी एक मस्जिद में जोरदार धमाका हुआ था. जिसमें कम से कम 5 लोगों की मौत हो गई और 65 लोग घायल हो गए थे.