अफगानिस्तान में जब से तालिबान की सरकार बनी है, पूरी दुनिया की चिंता भी ज्यादा रही है और बदलते समीकरण पर सभी की नजर भी ज्यादा पैनी हुई है. इन कठिन परिस्थितियों में रूस एक ऐसा देश रहा है जिसने लगातार तालिबान से बातचीत की पैरवी है. एक बार फिर उसने अपना यही रुख सभी के सामने रखा है.
पुतिन ने की तालिबान से बातचीत की पैरवी
मास्को में तालिबान संग होने जा रही अहम बैठक से पहले राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि तालिबान से बात करना काफी जरूरी है. मान्यता बाद में दी जा सकती है, लेकिन उनसे संपर्क साधना आवश्यक हो गया है. वे कहते हैं कि तालिबान को मान्यता देने में हमे जल्दबाजी नहीं करनी चहिए. हम समझते हैं कि उनसे इस समय बात करना जरूरी है. लेकिन हड़बड़ी करना सही नहीं होगा. साथ बैठकर हर मुद्दे पर मंथन होना चाहिए.
वहीं मास्को बातचीत को भी काफी निर्णायक बताते हुए पुतिन ने साफ कर दिया है कि अब अमेरिका, चीन और पाकिस्तान को रूस संग मिलकर अफगानिस्तान में फिर शांति स्थापित करनी होगी. वैसे जानकारी के लिए बता दें कि इस मास्को वाली बैठक में भारत भी हिस्सा लेने वाला है. वो भी तालिबान संग बातचीत करने जा रहा है.
रूस-तालिबान के कैसे रिश्ते?
वैसे रूस के तालिबान संग रिश्ते अलग ही रहे हैं. अगर 80 के दशक में तालिबान के लिए रूस सबसे बड़ा दुश्मन रहा था, तो वहीं अब 2021में कई मौकों पर रूस ने तालिबान का समर्थन किया है. जब कई देश अफगानिस्तान में अपने दूतावास बंद कर रहे थे, तब रूस ने ऐसा करने से मना कर दिया. ऐसे में संकेत स्पष्ट थे, रूस तालिबान सरकार के खिलाफ नहीं था. अब बातचीत के जरिए भी एक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है.
जानकारी के लिए बता दें कि साल 2003 में रूस ने तालिबान को एक आतंकी संगठन घोषित कर दिया था. अभी भी उसे उस लिस्ट से बाहर नहीं किया गया है. लेकिन ये पहली बार है जब रूस आगे बढ़कर तालिबान से बातचीत करने पर जोर दे रहा है.