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क्या अमेरिका और ईरान में छिड़ेगा वॉर? जानें तनाव की क्या है वजह

ईरान और अमेरिका के बीच पैदा हुए तनाव को लेकर दुनिया दो हिस्सों में बंटती नज़र आ रही है. फिक्र की बात ये है कि दोनों ही तरफ परमाणु ताकत से लैस देशों की खेमेबंदी है. ऐसे में ज़रा सी चूक एक भयानक जंग को जन्म दे सकती है. खास कर इस बात को देखते हुए कि ईरान के नाम पर दो सुपर पावर यानी अमेरिका और रूस आमने-सामने आ गए हैं.

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी (फाइल फोटो-IANS)
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी (फाइल फोटो-IANS)

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ईरान और अमेरिका के बीच पैदा हुए तनाव को लेकर दुनिया दो हिस्सों में बंटती नज़र आ रही है. फिक्र की बात ये है कि दोनों ही तरफ परमाणु ताकत से लैस देशों की खेमेबंदी है. ऐसे में ज़रा सी चूक एक भयानक जंग को जन्म दे सकती है. खास कर इस बात को देखते हुए कि ईरान के नाम पर दो सुपर पावर यानी अमेरिका और रूस आमने-सामने आ गए हैं.

जहां अमेरिका ईरान को सबक सिखाने की धमकी दे चुका है, वहीं रूस ने साफ कर दिया है कि अगर अमेरिका ईरान पर हमला बोलता है तो इसका अंजाम खौफनाक होगा क्योंकि वो चुप नहीं बैठेगा. बहरहाल, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ईरान से सुलह की कोशिश में जुटे हुए हैं, लेकिन सवाल है कि क्या शांति स्थापित हो पाएगी?

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हालात कितने नाजुक हैं, इसका अंदाजा अमरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक सनसनीखेज खुलासे से होता है. खुद ट्रंप ने कहा है कि अमेरिकी सेना ने ईरान के तीन ठिकानों पर हमला करने की पूरी तैयारी कर ली थी. लेकिन हमला होने से सिर्फ 10 मिनट पहले उन्होंने अपना फैसला बदल दिया.

डोनाल्ड ट्रंप ने इसकी वजह बताते हुए कहा, ''मैंने पूछा कि हमले में कितने लोग मारे जाएंगे? सेना के जनरल ने पहले मुझसे थोड़ा वक्त मांगा. फिर मुझे बताया कि हमले में क़रीब डेढ़ सौ लोगों की मौत हो सकती है. मैंने इस पर फिर से सोचा. मैंने कहा कि उन्होंने एक मानव रहित ड्रोन को उड़ा दिया है और इसके जवाब में हम आधे घंटे में 150 लोगों की मौत के ज़िम्मेदार होंगे. मैंने कहा हमला रोक दो."

जंग अब तक टली हुई है

अब अगर अमेरिका ईरान के तीन ठिकानों पर हमला कर देता तो क्या होता? ईरान जवाबी हमला बोलता और रूस ईरान की तरफ से जंग में कूद पड़ता. जाहिर है अंजाम भयानक होता. मगर खतरा अब भी टला नहीं है. अमेरिका और ईरान अब भी एक-दूसरे को धौंस दे रहे हैं.

धमकियों का सिलसिला रोजाना चल रहा है.अमेरिका अब तक ईरान पर हमला बोल भी चुका होता. मगर खुद अमेरिका के मित्र देश ईरान के मुद्दे पर अमेरिका के साथ नहीं हैं. ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चीन, रूस और यूरोपियन यूनियन अमेरिकी कार्रवाई के विरोध में नजर आ रहे हैं. एक अकेला इजरायल है जो इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ खड़ा है. यही वजह है कि जंग अब तक टली हुई है.

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सवाल है कि अचानक ऐसा क्या हो गया है जो दुनिया पर फिर से वर्ल्ड वॉर का खतरा मंडराने लगा है? इसे समझने के लिए सबसे पहले तीन साल पहले का ट्रंप का वो बयान जानना चाहिए. ट्रंप ने ये बात अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान चुनावी प्रचार में कही थी.

चुनाव जीतने के लिए क्या करेंगे ट्रंप?

तीन साल पहले ही डोनाल्ड ट्रंप ने ये साफ कर दिया था कि परमाणु रिएक्टर को लेकर बराक ओबामा और पांच दूसरे देशों का ईरान के साथ समझौता वाहियात है. इससे कुछ नहीं होने वाला. ट्रंप ने तब अपने चुनावी प्रचार में ये वादा भी किया था कि अगर वो राष्ट्रपति बने तो ईरान के साथ हुआ समझौता खत्म कर देंगे, और 8 मई 2018 को उन्होंने ये समझौता खत्म भी कर दिया.

याद रखें, अमेरिका में 2020 में फिर से चुनाव है, और ट्रंप चुनावी मैदान में हैं. ईरान पर हमला कर अमेरिकी वोटर को राष्ट्रवाद के मुद्दे पर एकजुट कर वो फिर से चुनाव जीतना चाहते हैं, और बस इसीलिए चुनाव से ऐन पहले ईरान का मुद्दा गरम हो उठा है. हालांकि जिस तर्क के साथ ट्रंप ईरान के खिलाफ खड़े हैं, उस तर्क को उनके अपने ही मित्र देश गलत मान रहे हैं.

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लिहाजा अफगान युद्ध, खाड़ी युद्ध, या फिर इराक और सीरिया युद्ध की तरह ईरान को लेकर इस बार अमेरिका को किसी भी मित्र देश का समर्थन नहीं मिल रहा. यानी ईरान के मामले में अमेरिका अलग-थलग पड़ा है. अब ऐसे में सवाल ये है कि क्या फिर भी वो ईरान पर हमला करने की हिम्मत करेगा? इस सवाल का जवाब जानने से पहले आइए ये समझ लीजिए कि आखिर परमाणु रिएयक्टर को लेकर वो कौन सा समझौता था जिसे ट्रंप ने तोड़ डाला पर बाकी देशो ने नहीं तोड़ा.

ईरान पर अमेरिका इतना तल्ख क्यों?

आखिर अमेरिका ईरान को लेकर इतना तल्ख क्यों है? खास कर ट्रंप सरकार. इसे समझने के लिए चार साल पुरानी एक डील को समझना जरूरी है. असल में 2006 में ईरान ने अपने यहा पांच परमाणु रिएक्टर लगाए थे. इनमें से एक रूस की मदद से लगाया था. इसे लेकर कई देशों की नजरें टेढ़ी हुई थीं. खास कर इजरायल और अमेरिका की. हालांकि ईरान बार-बार कह रहा कि ये परमाणु बिजली घर ऊर्जा के लिए है ना कि परमाणु हथियार बनाने के लिए. इसके बाद 2015 में अमेरिका समेत कई देशों ने ईरान के साथ एक समझौता किया.

ईरान के पास कुल पांच परमाणु रिएक्टर हैं. लेकिन सबसे ज्यादा विवाद रूस की मदद से बनाए गए बुशेर परमाणु प्लांट को लेकर था. क्योंकि अमेरिका और इजरायल को शक था कि बुशेर परमाणु प्लांट में ईरान चोरी-छुपे बम परमाणु बना रहा है, जबकि ईरान बार-बार दुनिया को ये यकीन दिलाने की कोशिश कर रहा था कि परमाणु बिजली घर ईरान में लोगों को ऊर्जा मुहैया कराने के मकसद से बनाया गया है. लेकिन अमेरिका और इजरायल ये मानने को तैयार नहीं हुए. दोनों देश इस बात पर अड़े थे कि ईरान परमाणु बम बना रहा है.

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परमाणु प्लांट का शक

अमेरिका और इजरायल के शक जताने पर परमाणु प्लांट के इस्तेमाल के सिलसिले में फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने ईरान के साथ बातचीत शुरू की. 2006 में अमेरिका, चीन और रूस भी इस बातचीत में शामिल हो गए. आखिरकार नौ साल बाद 2015 में सभी देश ईरान के साथ एक समझौते पर पहुंचे. समझौते के तहत ईरान अपने परमाणु प्लंट की तय समय सीमा पर नियमित जांच के लिए राजी हो गया ताकि ये पता चल सके कि ईरान के परमाणु प्लांट में हथियार नहीं बना रहा है.

इस समझौते के बाद ईरान पर से कई तरह के प्रतिबंध खत्म कर दिए गए. ईरानी अवाम में समझौते से खुश थे क्योंकि सालों तक आर्थिक प्रतिबंध के चलते ईरान में खाद्य सामग्री और दवाओं की भारी कमी हो गई थी. समझौते के तहत ईरान के परमाणु प्लांट के जांच की जिम्मेदारी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी IAEA को दे दी गई. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को हर तीन महीने में अब रिपोर्ट देने को कहा गया. ये रिपोर्ट ईरानी के परमाणु प्लांट की जांच के बाद तैयार होती थी. समझौते के बाद से अब तक  IAEA ने कभी भी अपनी रिपोर्ट में ईरान पर परमाणु प्लांट के गलत इस्तेमाल को लेकर शक नहीं जताया.

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हालांकि इजरायल शुरू से ही इस समझौते के खिलाफ रहा है. इजरायल का मानना है कि ईरान का परमाणु प्लांट दुनिया के लिए खतरा है. मगर तब के अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा इजरायल की बात से सहमत नहीं थे. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद इजरायल ने फिर से इस समझौते के मुद्दे को उठाया. क्योंकि 2016 के अमेरिकी चुनाव में ट्रंप ईरान समझौते का मुद्दा उठा कर इसे अब तक की सबसे बुरी डील बता चुके थे.

ओबामा से अलग ट्रंप का रुख

समझौते को लेकर ट्रंप का रुख पहले से ही साफ था. लिहाज़ा 8 मई 2018 को अमेरिका अचानक इस समझौते से अलग हो गया. ट्रंप ने इलजाम लगाया कि  ईरान का वादा झूठा था. इस सिलसिले में ट्रंप ने इजरायल की ओर से मुहैया कराए गए कुछ खुफिया दस्तावेजों का जिक्र करते हुए कहा कि इस बात के पक्के सबूत हैं कि ईरान परमाणु हथियार बनाने का काम रहा है. हालांकि IAEA ने अमेरिका के इस दावे को कारिज करते हुए साफ कहा कि 2009 के बाद से ईरान में परामणु हथियार बनाने को लेकर कभी भी कोई सबूत नहीं मिला है.

इतना ही नहीं अमेरिका के अलग होने के बावजूद रूस, चीन, ब्रिटेन फ्रांस और जर्मनी अब भी समझौते के साथ हैं और आगे भी समझौते को जारी रखने की बात कह रहे हैं. ईरान ने भी समझौता जारी रखने का ऐलान किया है और साथ ही इस बात पर भी तैयार हो गया है कि वो यूरेनियम की मात्रा सीमित रखेगा. इससे देश के लिए सिर्फ ऊर्जा पैदा की जा सके ना कि परमाणु हथियार बना सकें. अमेरिकी ड्रोन को मार गिराने के ईरान के कदम के बाद से अमेरिका लगातार ईरान पर चढ़ाई करने का मौका ढूंढ रहा है. दूसरी तरफ ईरान के तेवर भी सख्त हैं. लिहाज़ा खतरा इस बात का है कि कहीं सचमुच जंग शुरू ना हो जाए.

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