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बांग्लादेश के शीर्ष कट्टरपंथी नेता को युद्ध अपराधों को लेकर 90 साल की जेल

बांग्लादेश के एक विशेष न्यायाधिकरण ने देश के 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान अत्याचार के सूत्रधार रहे कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी के 91 वर्षीय प्रमुख गुलाम आजम को 90 साल कैद की सजा सुनाई.

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गुलाम आजम
गुलाम आजम

बांग्लादेश के एक विशेष न्यायाधिकरण ने देश के 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान अत्याचार के सूत्रधार रहे कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी के 91 वर्षीय प्रमुख गुलाम आजम को 90 साल कैद की सजा सुनाई. आजम की उम्र इस समय 90 साल बताई गई है.

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युद्ध अपराधों के मामलों में यह पांचवां फैसला है, जिसपर सबकी निगाहें टिकी थीं. तीन सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (1) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एटीएम फजले कबीर ने यहां अदालत कक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा, ‘वह (आजम) जेल में 90 साल काटेंगे.’

अदालत में इस फैसले के मद्देनजर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी क्योंकि जमात-ए-इस्लामी ने अपने नेता के खिलाफ सजा सुनाए जाने के मद्देनजर सोमवार को राष्ट्रव्यापी हिंसक आम हड़ताल की. संगठन ने इस फैसले को राजनीति से प्रेरित करार देते हुए मंगलवार को भी आम हड़ताल करने का आह्वान किया है.

न्यायमूर्ति कबीर ने कहा, ‘वह (आजम) लगातार या अपनी मौत तक सजा काटेंगे.’ फैसला सुनाए जाने से पहले पुलिस ने आजम के समर्थकों को तितर-बितर करने के लिए रबड़ की गोलियां दागी. ये लोग राजधानी ढाका और अन्य शहरों में प्रदर्शन कर रहे थे.

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फैसले में कहा गया कि आजम ने 1971 में पाकिस्तानी सैन्य शासन की खातिर जो अपराध किए हैं उसके लिए वह मौत की सजा के हकदार हैं, लेकिन उनकी वृद्धावस्था और शारीरिक स्थिति को देखते हुए न्यायाधिकरण 90 साल की सजा दे रहा है.

इससे पहले, मुकदमे की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष के वकीलों ने आजम की तुलना जर्मन नाजी नेता हिटलर से की. फैसले के तहत आजम को मानवता के खिलाफ अपराध के लिए साजिश रचने को लेकर 10 साल की कैद, 10 साल साजिश रचने को लेकर, उकसाने को लेकर 20 साल और सहअपराधिता को लेकर 20 साल की सजा सुनाई गई. पुलिस अधिकारी सिरू मियां और उनके पुत्र अनवर कमाल तथा 36 अन्य की हत्या के सिलसिले में उन्हें और 30 साल की सजा सुनाई गई.

आजम के खिलाफ इतिहासकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और युद्ध अपराध शोधार्थियों सहित कुल 16 लोगों ने अभियोजन पक्ष की ओर से गवाही दी, जबकि उनके पुत्र पूर्व सैन्य ब्रिगेडियर अब्दुल्लाहील अमन आजमी बचाव पक्ष के एकमात्र गवाह के तौर पर पेश हुए.

न्यायमूर्ति कबीर ने 75 पृष्ठों का फैसला सुनाते हुए कहा कि गुलाम आजम का मामला अनोखा है. वह इन अपराधों के दौरान शारीरिक तौर पर मौजूद नहीं थे, लेकिन वह 1971 के युद्ध अपराधों को लेकर मुख्य आरोपी हैं.

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जमात-ए-इस्लामी की पूर्वी पाकिस्तान शाखा के तत्कालीन प्रमुख एवं 1971 में प्रांतीय मंत्री रहे आजम इस अहम फैसले के दौरान अदालत में मौजूद थे. पिछले एक साल से चल रही सुनवाई के दौरान उन्हें सभी आरोपों के तहत दोषी पाया गया.

न्यायाधिकरण के एक अन्य सदस्य न्यायमूर्ति अनवारूल हक के हवाले से बीडी न्यूज ने बताया, ‘1971 का भीषण नरसंहार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे वीभत्स है.’ उन्होंने कहा, ‘इसकी तुलना सिर्फ नाजियों के नरसंहार से की जा सकती है. और इस नरसंहार को पाकिस्तान और उसके सहयोगियों ने इस देश में अंजाम दिया.’ गौरतलब है कि आजम की पार्टी ने 1971 के बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम का विरोध किया था.

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