अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने कॉलेजों से उन छात्रों के नाम और राष्ट्रीयताएं बताने को कहा है, जिन्होंने यहूदी छात्रों या प्रोफेसर्स को परेशान किया हो और विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया हो. द वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक, इस कदम से यह चिंता पैदा हो गई है कि इसे विदेशी छात्रों को निर्वासित करने के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. यह एक्शन ऐसे समय में हो रहा है जब ट्रंप सरकार ने अवैध अप्रवासियों को निर्वासित किया है और अमेरिकी कॉलेजों में कई प्रदर्शनकारियों पर शिकंजा कसा है.
ऐसे में अमेरिका में पढ़ रहे 331,602 भारतीय छात्रों पर भी इसका काफी असर पड़ सकता है. अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा समूह भारतीय छात्र ही हैं. दरअसल हाल ही में कोलंबिया यूनिवर्सिटी में भारतीय छात्रा रंजनी श्रीनिवासन ने अपना छात्र वीजा रद्द होने के बाद स्वेच्छा से देश छोड़ दिया. एक अन्य भारतीय मूल के शोधकर्ता बदर खान सूरी को भी हमास के एक वरिष्ठ अधिकारी से कथित संबंधों के कारण निर्वासन की कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है.
ऐसे में कानूनी विशेषज्ञ छात्रों के नाम और राष्ट्रीयता पर सरकार के ध्यान को लेकर चिंतित हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह मानक कैंपस उत्पीड़न जांच से अलग है, जो आमतौर पर शिकायतों की संख्या और उनके निपटारे के तरीके पर केंद्रित होती है.
एक वकील ने इसे 'विच हंट' (चुड़ैल शिकार) करार दिया है. शिक्षा विभाग के नागरिक अधिकारों के कार्यवाहक सहायक सचिव क्रेग ट्रेनर ने नीति का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य यह आकलन करना था कि विश्वविद्यालय यहूदी-विरोधी मामलों को कैसे संभालते हैं.
भारतीय छात्रों पर पड़ेगा असर?
यह कदम ऐसे समय में आया है जब सरकार अवैध प्रवासियों को निर्वासित कर रही है और अमेरिकी कॉलेजों में कई प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई कर रही है. भारतीय छात्र, जो अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का एक बड़ा हिस्सा हैं, इस नीति से विशेष रूप से प्रभावित हो सकते हैं.