हाल ही में रूस के कजान में ब्रिक्स (BRICS) संगठन की हुई बैठक में सबसे ज्यादा जिस मेहमान ने चौंकाया, वो थे तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन. तुर्की नेटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीट्री ऑर्गेनाइजेशन) का सदस्य देश है, ऐसे में पश्चिम विरोधी संगठन माने जाने वाले ब्रिक्स की बैठक में तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन की मौजूदगी को लेकर यूरोप के कई देशों ने आपत्ति जताई.
ब्रिक्स की शुरुआत केवल पांच देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के साथ हुई थी लेकिन पिछले साल ब्रिक्स समूह ने चार नए सदस्यों मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को शामिल किया था जिसके बाद इसे ब्रिक्स प्लस के नाम से जाना जाने लगा.
तुर्की को अभी तक ब्रिक्स संगठन की सदस्यता हासिल नहीं हुई है. जर्मन अखबार बिल्ड की एक रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि भारत ने तुर्की के ब्रिक्स में शामिल होने का विरोध किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि तुर्की की पाकिस्तान से करीबी है इसलिए भारत नहीं चाहता था कि उसे इस संगठन में शामिल किया जाए.
हालांकि, तुर्की के विदेश नीति के जाने-माने विश्लेषक और पूर्व राजनयिक सिनान अल्जेन ने इस दावे को खारिज किया है. जर्मन अखबार की रिपोर्ट में उनके हवाले से लिखा गया था कि भारत ने तुर्की की ब्रिक्स सदस्यता को खारिज किया है.
सिनान ने कहा कि रिपोर्ट में तुर्की के कूटनीतिक मामले में उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है.
तुर्की के राष्ट्रपति कार्यालय ने भी कहा है कि रूस के कजान में हुई बैठक में ब्रिक्स के विस्तार को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई. तुर्की के राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से ये भी कहा गया कि भारत के तुर्की की ब्रिक्स सदस्यता का विरोध करने वाली बात बिल्कुल बेबुनियाद है.
जर्मन अखबार बिल्ड ने अल्जेन को कोट करते हुए लिखा था कि भारत ने तुर्की के ब्रिक्स में शामिल होने के आवेदन को खारिज कर दिया. बिल्ड की रिपोर्ट में अल्जेन का हवाला ब्रिक्स के एक भीतरी सूत्र के तौर पर दिया गया था. जबकि अल्जेन एक थिंक टैंक में कार्यरत एक पूर्व टर्किश डिप्लोमैट हैं.
अल्जेन ने कहा, 'ये बात सही है कि भारत तुर्की से एक दूरी बनाकर चल रहा है लेकिन ब्रिक्स की बैठक में तुर्की की सदस्यता के मुद्दे पर वोटिंग ही नहीं हुई तो फिर भारत के वीटो का सवाल ही नहीं उठता.'
अल्जेन ने कहा, ब्रिक्स के तेजी से हो रहे विस्तार को लेकर कई और देश भी भारत की तरह चिंतित हैं और इस मुद्दे पर अभी तक सबके बीच सहमति नहीं बन पाई है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्रिक्स के 16वें शिखर सम्मेलन से पहले तुर्की ने औपचारिक रूप से ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आवेदन दिया था. ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका संस्थापक सदस्य हैं. जबकि ईरान, मिस्र और इथियोपिया और यूएई को हाल ही में इसमें जगह दी गई है. हालांकि, तुर्की के आवेदन पर बात आगे नहीं बढ़ पाई है.
बिल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, तुर्की को ब्रिक्स की सदस्यता ना मिलने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर भारत का विरोध था. ब्रिक्स में किसी भी नए देश को शामिल करने के लिए सभी सदस्य देशों की सहमति जरूरी होती है लेकिन भारत के विरोध की वजह से ये शर्त पूरी नहीं हो पाई.
अल्जेन ने कहा कि तुर्की ब्रिक्स में इसलिए शामिल होना चाहता है क्योंकि वह यूरोपीय यूनियन (ईयू) में तुर्की को शामिल किए जाने को लेकर हो रहे टालमटोल को लेकर नाराज है. तुर्की दिखाना चाहता है कि अगर उसे ईयू में शामिल नहीं किया जाता है तो उसके पास और भी विकल्प मौजूद हैं. वह पश्चिमी देशों से इतर नई साझेदारियां गढ़ सकता है.
अल्जेन ने एक्स प्लैटफॉर्म पर लिखा, मैंने बिल्ड को ब्रिक्स के मुद्दे पर एक इंटरव्यू दिया था लेकिन आर्टिकल में कई जरूरी बातों को हटा दिया गया.
पाकिस्तान ने भी दी थी ब्रिक्स से जुड़ने की अर्जी
पाकिस्तान ने पिछले साल ब्रिक्स की सदस्यता के लिए औपचारिक तौर पर आवेदन किया था. ब्रिक्स में शामिल होने के लिए पाकिस्तान के कुछ शीर्ष राजनयिकों ने समर्थन हासिल करने के लिए कई ब्रिक्स देशों का दौरा भी किया था. हालांकि, चीन और रूस के समर्थन के बावजूद पाकिस्तान को ब्रिक्स समूह में एंट्री नहीं मिली है. यहां तक कि पाकिस्तान को ब्रिक्स संगठन के नए पार्टनर देशों की लिस्ट में भी जगह नहीं मिली है. वहीं, तुर्की को पार्टनर देशों में शामिल किया गया है.
पाकिस्तान को पूरी उम्मीद थी कि भारत के विरोध के बावजूद रूस और चीन के समर्थन से उसके लिए ब्रिक्स के दरवाजे खुलेंगे. ऐसा भी कहा जा रहा था कि भारत भी पाकिस्तान की ब्रिक्स सदस्यता का शायद समर्थन कर सकता है. हालांकि, ऐसा कुछ हुआ नहीं.