तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन की आर्थिक नीतियों के कारण देश की अर्थव्यवस्था बेहद खराब स्थिति में है. तुर्की में महंगाई चरम पर है और लोग खाद्य वस्तुओं की कमी से जूझ रहे हैं. इसी बीच तुर्की की मदद को संयुक्त अरब अमीरात सामने आया है और वो तुर्की से करेंसी स्वैप (डॉलक के बजाए एक-दूसरे की मुद्रा में व्यापार करना) पर राजी हुआ है.
तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात के केंद्रीय बैंकों ने बुधवार को कहा कि उन्होंने स्थानीय मुद्राओं में लगभग 5 अरब डॉलर के करेंसी स्वैप समझौते पर हस्ताक्षर किया है. केंद्रीय बैंकों ने कहा कि इससे आर्थिक तंगी से जूझ रहे तुर्की को सहारा मिलेगा.
दोनों देशों की बैंको की तरफ से कहा गया कि इस करेंसी स्वैप का उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना और दो क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के बीच वित्तीय सहयोग को मजबूत करना है. हाल के महीनों में दोनों देशों ने अपने रिश्ते मजबूत करने के लिए कई प्रयास किए हैं. बताया गया है कि ये सौदा तीन सालों के लिए मान्य होगा और इसे आगे बढ़ाया भी जा सकता है.
पिछले महीने समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अधिकारियों के हवाले से बताया था कि कि तुर्की के केंद्रीय बैंक और यूएई के बीच बातचीत चल रही है और जल्द ही कोई सौदा होगा.
संयुक्त अरब अमीरात और तुर्की के केंद्रीय बैंकों ने अलग-अलग बयान जारी कर बताया कि सौदा 64 अरब लीरा और 18 अरब दिरहम (UAE की मुद्रा) का है.
तुर्की विदेशी मुद्रा के संकट से जूझ रहा है और इससे निपटने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है. विदेशी मुद्रा के भंडार को बढ़ाने के लिए तुर्की करेंसी स्वैप की तरफ बढ़ रहा है. तुर्की के केंद्रीय बैंक ने इससे पहले चीन, कतर और दक्षिण कोरिया के साथ करीब 23 अरब डॉलर के स्वैप सौदे किए हैं.
तुर्की की बदहाली के लिए विशेषज्ञ राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन की आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं. तुर्की की खराब हालत के बावजूद वहां के बैंकों को कम ब्याज लेने के लिए मजबूर किया जाता है. एर्दोआन का कहना है कि इस्लाम में उधार के पैसों पर ब्याज न लेने या फिर बेहद कम लेने का जिक्र है इसलिए वो देश के बैंकों को ब्याज नहीं बढ़ाने देंगे.
वो कहते हैं कि ब्याज दरें महंगाई को कम करने के बजाए उल्टे महंगाई का कारण बनती हैं. राष्ट्रपति की इन्हीं नीतियों के कारण तुर्की की मुद्रा में पिछले साल भारी गिरावट दर्ज की गई और देश महंगाई और आर्थिक तंगी की मार झेल रहा है.
हालांकि हाल के दिनों में सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं जिसके कारण लीरा की स्थिति में थोड़ा सुधार देखा गया है. हालांकि बढ़ती महंगाई पर कोई रोक नहीं लग पाई है.