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पिता ने ब्लास्ट में पैर गंवाया, बेटा बिना हाथ-पैर के पैदा हुआ, फिर भी मुस्कुराहट...हौसला बढ़ाने वाली तस्वीर

तुर्की के फोटोग्राफर मेहमत असलन की फोटो को सिएना इंटरनेशनल अवॉर्ड्स में फोटो ऑफ द ईयर चुना गया है. इस तस्वीर में मेहमत ने मुस्कुराते हुए पिता और पुत्र को कैद किया है.

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इस तस्वीर को साल की सर्वश्रेष्ठ तस्वीर चुना गया है.
इस तस्वीर को साल की सर्वश्रेष्ठ तस्वीर चुना गया है.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • तुर्की के मेहमत असलम ने ली फोटो
  • साल की सर्वश्रेष्ठ तस्वीर चुनी गई

तुर्की के फोटोग्राफर मेहमत असलन (Mehmet Aslan) ने एक ऐसी तस्वीर खींची है जो किसी की भी आंखें नम कर सकती है. ये तस्वीर सिर्फ किसी को भावुक करने के लिए ही नहीं बल्कि हार चुके लोगों का हौसला बढ़ाने का भी दम रखती है. इस तस्वीर के जरिए एक पिता-पुत्र के प्यार को दिखाया गया है जो लाख परेशानियों के बावजूद भी मुस्कुरा रहे हैं. इस तस्वीर को साल की सर्वश्रेष्ठ फोटो चुना गया है.

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मेहमत असलन ने ये तस्वीर सीरिया-तुर्की बॉर्डर पर हैटे प्रांत के रेहनाली में रह रहे एक सीरियाई शरणार्थी पिता-पुत्र की खुशी दिखा रही है. तस्वीर में देखा जा सकता है कि पिता और पुत्र दोनों ही अपंग हैं, लेकिन फिर भी वो मुस्कुरा रहे हैं. इसलिए इस तस्वीर सिएना इंटरनेशनल अवॉर्ड्स 2021 में 'Photo Of the Year' चुना गया है. 

इस तस्वीर में दिख रहे पिता ने सीरिया के एक बाजार में हुए बम ब्लास्ट में अपना पैर गंवा दिया था, जबकि गर्भवती पत्नी गृहयुद्ध के दौरान ही एक जहरीली गैस के संपर्क में आ गई थी, जिससे बेटा बिना हाथ-पैर के पैदा हुआ. पिता का एक पैर नहीं है तो बेटे के हाथ-पैर दोनों ही नहीं है, लेकिन उसके बाद भी दोनों मुस्कुरा रहे हैं. मेहनत असलन ने पिता-पुत्र की इसी खुशी को अपने कैमरे में कैद कर लिया.

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सीरिया के हालात बेहद खराब

सीरिया एक दशक से ज्यादा लंबे वक्त से गृहयुद्ध से जूझ रहा है. आज इस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी संकट सीरिया का है. सीरिया में 11 साल से जारी हिंसक लड़ाई ने शहर के शहर बर्बाद कर दिए. लोगों को अपना घर-बार छोड़कर भागना पड़ा. इन 11 सालों में 66 लाख सीरियन लोग शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं. सीरिया से 36 लाख लोग तुर्की में, 8 लाख लोग लेबनान में, 6 लाख जॉर्डन में, ढाई लाख इराक में, 1 लाख 30 हजार मिस्र में शरण लिए हुए हैं. सीरिया युद्ध छिड़ने के बाद लाखों लोगों ने यूरोप में असाइलम मांगा था. कई देशों ने हजारों लोगों को शरण भी दी. लेकिन एक दशक बाद भी ये लोग शरणार्थी शिविरों में जीने को मजबूर हैं. 

 

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