म्यांमार के पश्चिमी प्रदेश राखाइन में एक नया सरकारी आदेश आया है. इसके मुताबिक यहां रहने वाले रोहिंग्या मुसलमान सिर्फ दो ही बच्चे पैदा कर सकते हैं. गौरतलब है कि ये आदेश सिर्फ मुस्लिमों के लिए ही है. इन इलाकों में रहने वाले बौद्ध परिवारों के लिए नहीं. धर्म के आधार पर जनसंख्या वृद्धि रोकने वाला ये दुनिया का पहला सरकारी आदेश माना जा रहा है. इस आदेश के बाद यहां की सरकार पर मुस्लिमों से भेदभाव करने और नस्लीय पक्षपात के आरोपों की फिर बाढ़ आ गई है.
शनिवार को जारी हुए इस आदेश के दायरे में फिलहाल राखाइन प्रांत के दो कस्बे आते हैं. बुथीडांग और मौनदा नाम के ये कस्बे बांग्लादेश से सटी हुई सीमा पर स्थित हैं. राज्य में मुस्लिमों की सबसे ज्यादा आबादी इन्हीं दो जगहों पर है. अगर पूरे देश की बात की जाए, तो म्यांमार की छह करोड़ की आबादी में मुस्लिम चार फीसदी हैं.
आदेश के बारे में सरकारी प्रवक्ता विन ने कहा, ‘इसका मकसद मुस्लिमों की तेजी से बढ़ती संख्या पर काबू पाना है.’ उन्होंने कहा कि सरकार ने जब हालिया नस्लीय हिंसा की जांच की, तो पाया कि मुस्लिमों की आबादी में तेजी से बढ़ोतरी टकराव का एक बड़ा कारण है. विन ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि राखाइन में रहने वाले बौद्धों के मुकाबले मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ोतरी की दर 10 गुना ज्यादा है. विन के मुताबिक ये आदेश कमीशन की रिपोर्ट पर एक हफ्ते तक विचार करने के बाद दिए गए हैं. इसके अलावा कमीशन की एक और सिफारिश मानकर इन मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों की भी तैनाती की गई है.
गौरतलब है कि राखाइन प्रांत में एक साल पहले नस्लीय हिंसा शुरू हुई थी. टकराव राखाइन के बौद्धों और रोहिंग्या मुस्लिमों के बीच हुआ था. इस दौरान हथियारों से लैस बौद्धों ने मुस्लिमों के हजारों घर जला दिए थे. इस टकराव में सैकड़ों लोग मारे गए थे और लगभग सवा लाख मुस्लिमों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा था. इस दौरान स्थानीय प्रशासन पर भी हिंसा रोकने में ढिलाई बरतने के आरोप लगे थे.
गौरतलब है कि बौद्धों की बहुतायत वाले म्यामांर में कुल 135 संप्रदायों को कानूनन मान्यता मिली है. रोहिंग्या मुस्लिमों का नाम इस लिस्ट में नहीं हैं. उन्हें बांग्लादेश से घुसपैठ कर म्यांमार में बस गया शरणार्थी माना जाता है और इसीलिए अभी तक नागरिकता नहीं दी गई है. उधर बांग्लादेश का कहना है कि रोहिंग्या मुस्लिम कई सदियों से म्यामांर में ही रह रहे हैं और उन्हें वहां नागरिक के तौर पर मान्यता मिलनी चाहिए.