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Russia-Ukraine war: पुतिन ने ब्रिज का बदला डैम से लिया? वर्ल्ड वॉर-II में भी स्टालिन ने ढहाया था, गई थीं 1 लाख जानें

यूक्रेन का आरोप है कि डैम को रूस ने ब्लास्ट कर तबाह किया है, लेकिन रूस इस आरोप से इनकार कर रहा है. फिलहाल इस डैम के टूटने की वजह से 4.8 अरब गैलन पानी यूक्रेन के शहरों और गांवों को डूबो रहा है. 150 टन इंजन ऑयल भी नीपर नदी में जा मिला है और इसके इकोलॉजी को पूरी तरह से तबाह कर दिया है. इस नीपर नदी पर बने बांध का कनेक्शन वर्ल्ड वार-2 से भी है.

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हमले के बाद ढह गया है यूक्रेन का कखोवका डैम.
हमले के बाद ढह गया है यूक्रेन का कखोवका डैम.

पिछले साल अक्टूबर में जब यूक्रेन ने समंदर में रूस की शक्ति के प्रतीक 18 किलोमीटर लंबे क्रीमिया ब्रिज को बमों की ताबड़-तोड़ बारिश से तबाह कर दिया था तो राष्ट्रपति पुतिन तिलमिला कर रह गए थे. पुतिन ने तब इसे आतंकी कार्रवाई कहा था और कहा था कि यूक्रेनी सीक्रेट सर्विस ने पुल पर आतंकवादी हमले का आदेश दिया है और उसी ने इसे अंजाम दिया है. 

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क्या इस घटना के लगभग 8 महीने बाद रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने इस हमले का बदला ले लिया है? यूक्रेन का आरोप है कि रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के नोवा में मौजूद कखोवका डैम को विस्फोट से उड़ा दिया है. लेकिन रूस ने इस आरोप से इनकार किया है. नीपर (Dnipro) नदी पर बने इस बांध के ढहने से शहर, गांव, गलियां लबालब भर गए हैं और हजारों लोग बाढ़ में फंसे हैं. अक्टूबर में क्रीमिया ब्रिज पर हमले को पुतिन ने आतंकी हमला करार दिया था. इस बार जेलेंस्की ने इस हमले को आतंकी कृत्य कहा है. जेलेंस्की ने इस हमले को सामूहिक नरसंहार का पर्यावरण बम (Environmental bomb of mass destruction) बताया है.

डैम के टूटने से क्या क्या हुई तबाही? 

डैम पर हमले से 4.8 अरब गैलन पानी यहां से निकला और निचले इलाकों की ओर तबाही मचाता चला गया है. इसकी चपेट में आने वाले इलाकों में खेरासन मुख्य है. जहां अब बाढ़ की स्थिति है. निचले इलाकों में कई घरों, छोटे छोटे शहरों में सैलाब की स्थिति बन गई है. एक अनुमान के मुताबिक अबतक लगभग 40 हजार लोगों को बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से रेस्क्यू किया जा चुका है.

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बाढ़ की स्थिति इतनी भयावह है कि इसमें घर बहते दिख रहे हैं. निचले इलाके के नागरिकों का कहना है कि अगर पानी का स्तर बढ़ा तो इलाके में और भी पलायन होगा. विशेषज्ञों का कहना है कि स्थिति सामान्य होने के बाद इस इलाके में पीने के पानी की भारी किल्लत होने वाली है, क्योंकि पानी का मुख्य स्रोत रहा ये डैम अब ध्वस्त हो चुका है.

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बता दें कि दक्षिणी यूक्रेन के वार जोन में बहने वाली नीपर नदी रूसी और यूक्रेनी सेना को अलग-अलग करती है. इस विशाल बांध के टूटने से पानी की एक विशाल धारा फूट पड़ी है, जिससे बड़े पैमाने पर अपने आगोश में इलाकों को लिया है, इसके बाद यहां से पलायन हो रहा है. 

कखोवका डैम से बहता पानी (फोटो-रॉयटर्स)

इस बांध से दक्षिणी यूक्रेन में खेती के लिए पानी की सप्लाई होती है. इसमें रूस के कब्जे वाले क्रीमिया आईलैंड भी शामिल है. इस डैम के पानी का एक और भी अहम इस्तेमाल है. इस पानी से ही रूस के कब्जे वाले ज़ापोरीझिया परमाणु संयंत्र को ठंडा रखा जाता है. 

150 टन इंजन ऑयल रीपर में बहा

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यूक्रेन ने मंगलवार को कहा कि कखोवका बांध पर हमले के बाद 150 टन इंजन तेल नीपर नदी में बह गया है. यूक्रेन ने पर्यावरण पर इसके नकारात्मक प्रभाव की चेतावनी दी है. राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा है कि 300 टन और भी इंजन ऑयल के लीक होने का खतरा है. 

राष्ट्रपति जेलेंस्की ने मंगलवार को दक्षिणी यूक्रेन में कखोवका बांध पर हमले को "सामूहिक विनाश का पर्यावरणीय बम" बताया और कहा कि केवल पूरे देश को रूस से आजाद कराना ही नए "आतंकवादी" कृत्यों के खिलाफ गारंटी दे सकता है. 

जेलेंस्की ने वीडियो संबोधन में कहा कि कब्जा करने वाले रूसियों द्वारा हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर स्टेशन पर इस तरह का हमला सामूहिक विनाश का एक पर्यावरणीय बम है. जेलेंस्की ने कहा कि बांध के विनाश से "यूक्रेन और यूक्रेनियन नहीं रुकेंगे. हम फिर भी अपनी सारी जमीन को मुक्त करा लेंगे."

रूस ने हमले से इनकार किया

वहीं इस हमले पर संयुक्त राष्ट्र में रूस और यूक्रेन के राजदूत भिड़ते नजर आए. संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत वेसली नेबेन्जिया ने कहा कि अक्टूबर 2022 में ही हमने एक आधिकारिक दस्तावेज जारी किया था जिसमें  कखोवका बांध को तबाह करने का यूक्रेन का प्लान स्पष्ट नजर आ रहा था. तब हमने यूएन से इस मामले में एक्शन लेने की भी मांग की थी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने इस पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, इसी का नतीजा है कि कीव ने बिना किसी खौफ के इस आतंकी हमले को अंजाम दिया है.

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कखोवका पावर प्लांट (फाइल फोटो)

वहीं संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन के राजदूत सर्गेई क्यालस्टया ने कहा कि "यह यूक्रेन के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के खिलाफ एक आतंकवादी कार्रवाई है जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक नागरिकों को हताहत करना और जितना संभव हो उतना विनाश करना है. इस हमले से रूसी कब्जाधारियों ने यह स्वीकार किया है कि कब्जा किए गए क्षेत्र उनके नहीं हैं और वे इन जमीनों पर कब्जा करने में सक्षम नहीं है."

स्टालिन ने बनवाया 

नीपर नदी पर बने इस पावर प्लांट की ऊंचाई 98 फीट है. जबकि इस डैम की लंबाई 3.2 किलोमीटर है. इस हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्लांट के निर्माण कार्य की शुरुआत सोवियत रूस के तानाशाह जोसेफ स्टालिन ने की थी. इस डैम का निर्माण कार्य निकिता ख्रुश्चेव के समय पूरा हुआ. इस डैम को बनाने के लिए 2155 वर्ग किलोमीटर कखोवका जलाशय का निर्माण किया गया था. 

82 साल पहले जब स्टालिन ने दिया नीपर बांध को उड़ाने का आदेश

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत रूस ने नाजी सेनाओं के मार्च को रोकने के लिए एक बड़ी कुर्बानी दी थी. तब नीपर नदी पर बना नीपर बांध सोवियत रूस की ताकत का प्रतीक था. इसे लेनिन डैम के नाम से भी जाना जाता था. इस बांध से Dneprostroi power plant को पानी मिलता था. लेकिन 1941 में जब नाजी सेना सोवियत रूस को घेरने के लिए आगे बढ़ने लगी तो 28 अगस्त को स्टालिन ने कलेजे पर पत्थर रखते हुए इस बांध को गिराने का आदेश दे दिया. 

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हिटलर की सेना सोवियत रूस के दरवाजे तक आ चुकी थी. अगर हिटलर की सेना के हाथ ये डैम लग जाता तो उसके पास एक अहम रणनीतिक संपत्ति होती. मौके की नजाकत को समझते हुए स्टालिन ने इसे तोड़ने का आदेश अपनी ही सेना को दिया. 

सोवियत प्रवक्ता सोलोमन लोजोवस्की उस घटना को याद करते हुए कहते हैं, ""हमने नीपर बांध को उड़ा दिया ताकि सोवियत पंचवर्षीय योजना के इस पहले नेमत को हिटलर के डाकुओं के हाथों में न पड़ने दिया जाए. जर्मन हमारी बांध और मशीनरी का उपयोग कर सके इसके लिए बांध को उड़ाने का आदेश दिया गया. 

स्टालिन की सीक्रेट पुलिस ने इस डैम को बिना किसी चेतावनी के उड़ा दिया. इसका नतीजा बेहद भयावह रहा. इस बांध के ढहने से पानी की चपेट में आकर लगभग 1 लाख लोगों की मौत हो गई. कई गांव और छोटे-छोटे ठिकाने तत्काल पानी में डूब गए. इस घटना में रूसी सेना लाल आर्मी के भी सैकड़ों ऑफिसर मारे गए. जंग के दौरान सरकारें ऐसे ही फैसले लेती थी. इस प्रक्रिया में जनता की दिक्कतों और परेशानियों का शायद ही खयाल रखा जाता था.

17 महीने से जारी है जंग, हजारों मौतें

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बता दें कि रूस और यूक्रेन के बीच लगभग 17 महीने से जंग जारी है. इस जंग की शुरुआत तब हुई जब 24 फरवरी 2022 को रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने अपनी सेनाओं को यूक्रेन के खिलाफ विशेष सैन्य ऑपरेशन करने का आदेश दिया. 

समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार 24 फरवरी 2022 से 21 मई 2023 तक इस युद्ध में 15,117 नागरिकों की मौत हो चुकी है. ये आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कमिश्नर ने जारी किया है.  

वहीं अमेरिकी खुफिया दस्तावेजों केअनुसार, कम से कम 3,54,000 रूसी और यूक्रेनी सैनिक इस युद्ध में मारे गए या घायल हुए हैं. यूक्रेन ने यह नहीं बताया है कि उसके कितने सैनिक मारे गए हैं. हालांकि रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगू ने 21 सितंबर को कहा था कि युद्ध शुरू होने के बाद से 5,937 रूसी सैनिक मारे गए हैं. 

 

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