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लेनिनग्राद की वो लड़ाई... जिसमें बिलखकर मर गया पुतिन का भाई, बार-बार याद क्यों दिला रहे US-यूक्रेन?

लगभग 82 साल पहले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी की नाजी सेनाएं पुतिन की जन्मभूमि लेनिनग्राद को 872 दिनों तक रौंदती रही. इस जंग में पुतिन के एक भाई की मौत बिलख बिलखकर हो गई थी. पुतिन इस जंग को कभी भूल नहीं पाते हैं. लेकिन जब यूक्रेन के युद्ध की बात होती है तो वे रूसी सेनाओं को रोकना क्यों नहीं पसंद करते हैं?

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लेनिनग्राद में बमबारी के बाद एक बच्चे को उठाती नर्सें (बाएं), व्लादिमीर पुतिन (दाएं-फाइल फोटो
लेनिनग्राद में बमबारी के बाद एक बच्चे को उठाती नर्सें (बाएं), व्लादिमीर पुतिन (दाएं-फाइल फोटो

"रूस के नागरिकों, मारियुपोल की आपकी नाकेबंदी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लेनिनग्राद की नाकेबंदी से कैसे अलग है? हमारी जमीन पर कब्जा करनेवाले लोगों ने हमारे जिन नागरिकों की जान ली है, हम एक-एक को नहीं भूलेंगे."

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कहते हैं कि वर्तमान अतीत के बोझ से कभी मुक्त नहीं हो सकता है. यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की इस गुहार में अतीत का वही बोझ है. जो कभी पुतिन की जन्मभूमि लेनिनग्राद ने झेला था. जेलेंस्की पुतिन को उस कहर की याद दिलाना चाहते हैं जो कभी सोवियत रूस के दूसरे सबसे बड़े शहर लेनिनग्राद (अब पीट्सबर्ग) पर बरपा था. इस घटना को लेनिनग्राद की नाकेबंदी (Siege of Leningrad) के नाम से जाना जाता है. 

लेनिनग्राद की नाकेबंदी के दौरान पुतिन का देश तो भुक्तभोगी था. लेकिन अभी यूक्रेन के साथ जंग में उनके देश का रोल बदल चुका है. अभी यूक्रेन के कई शहर जैसे मारियुपोल, खारकीव, लोहन्सक और डोन्स्टक रूसी सेनाओं के कब्जे में हैं. इसलिए जेंलेंस्की और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन पुतिन के सामने इतिहास के पन्ने पलटकर उन्हें लेनिनग्राद याद दिलाना चाहते हैं और नैतिकता का एक बोध रूसी राष्ट्रपति के सामने पेश करना चाहते हैं.

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मानव इतिहास की सबसे क्रूर और घातक घेराबंदी 

रूस-यूक्रेन जंग के एक साल बाद आज जब यूक्रेन के कई शहर रूसी कब्जे में हैं तो लेनिनग्राद का जिक्र अहम हो जाता है. सैन्य इतिहास में लेनिनग्राद की नाकेबंदी के रूप में दर्ज ये वो घटना है जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लेनिनग्राद को जर्मनी की नाजी सेना और फिनलैंड की आर्मी ने 872 दिनों तक घेर कर रखा था. इस दौरान इस शहर की सारी सप्लाई लाइन काट दी गई थी. ब्रेड का कोटा फिक्स कर दिया गया था. मात्र 125 ग्राम. जी हां, लोगों को मात्र 125 ग्राम ब्रेड खाने को मिलता था. सर्दियों में लोग अकड़कर और भूख से तड़प-तड़पकर मर रहे थे. इतिहासकारों का आकलन है कि लेनिनग्राद की इस नाकेबंदी में 15 लाख लोग मारे गए थे. इसी दौरान रूस के राष्ट्रपति पुतिन के एक भाई की मौत हुई थी.

सेकेंड वर्ल्ड वार के दौरान पूर्वी मोर्चे पर नाजी जर्मनी की सेनाओं ने 8 सितंबर 1941 को लेनिनग्राद को सोवियत रूस के दूसरे हिस्सों से जोड़ने वाली आखिरी सड़क को काट दिया था. इसके साथ ही लेनिनग्राद की सप्लाई लाइन ठप हो गई. युद्ध की स्थिति में लाखों की आबादी वाले एक शहर की जरूरी चीजों की सप्लाई रोके जाने का क्या असर हो सकता है इस कठिन परिस्थिति का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है. वो भी ये स्थिति तब थी जब दुनिया में सुविधाएं इतनी उन्नत नहीं हुई थी. इसलिए इस नाजी नाकेबंदी को युद्ध के इतिहास की सबसे लंबी और भयावह घेराबंदी कहा जाता है. 

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युद्ध से पहले लेनिनग्राद के सैनिक (फोटो-RIAN Archive)

इतिहासकार एना रीड ने इसे मानव इतिहास की सबसे क्रूर और घातक घेराबंदी करार दिया है. विश्व युद्ध के पांचवें साल में जब सोवियत रूस ने जोरदार पलटवार किया और नाजी सेना कमजोर पड़ने लगी तो लेनिनग्राद का ये सीज 27 जनवरी 1944 को खत्म हुआ.  

युद्ध की रणनीति में क्या होता है 'सीज'

नाकेबंदी, घेराबंदी या अंग्रेजी में सीज युद्ध की एक रणनीति है, जिसमें शत्रु के एक अहम क्षेत्र को चारों ओर से घेर लिया जाता है. इसके बाद इसकी सारी सप्लाई लाइन काट दी जाती है. फिर इसके बाद इस क्षेत्र की सेना और सरकार का सरेंडर के लिए मजबूर किया जाता है. इसके लिए अहम ठिकानों पर बमबारी की जाती है. ध्यान रहे कि सीज की स्थिति में सेना को सीधे लड़ने के लिए अंदर नहीं भेजा जाता है. 

वर्ल्ड वॉर-2 के दौरान नाजी जर्मनी की सेनाओं ने 1941 के सितंबर में पश्चिम और दक्षिण से लेनिनग्राद को घेरा जबकि जर्मनी के सहयोगी फिनलैंड की आर्मी ने उत्तर दिशा से इस शहर की नाकेबंदी की. 1941 के अंत तक लेनिनग्राद का सड़क, रेल, एनर्जी और संचार संपर्क पूरी तरह से टूट गया.

लेनिनग्राद के सीज में बिलख-बिलखकर मर गया पुतिन का भाई

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ये इतिहास की अजीब विडंबना है कि इसी लेनिनग्राद शहर में पुतिन पैदा हुए थे. इस नाकेबंदी के खत्म होने के 8 साल बाद 1952 में. नाजियों के इस सीज के दौरान उनकी मां Maria Ivanovna Putina ब्रेड के टुकड़े टुकड़े के लिए मोहताज थी. और तो और इसी लेनिनग्राद में पुतिन के भाई विक्टर पैदा हुए थे. भूख, ठंड, बीमारी और युद्ध की विभीषिका का प्रहार सहते-सहते टूट चुकीं पुतिन की मां अपने बेटे विक्टर को बचा नहीं सकीं. डिप्थीरिया से पीड़ित पुतिन के एक साल के भाई विक्टर ने इस नाकेबंदी के दौरान बिलख-बिलखकर अपनी जान गंवा दी थी. 

अमेरिका ने पुतिन को याद दिलाई है भाई की मौत की त्रासदी

पिछले साल जब रूस की सेनाओं ने यूक्रेन के शहर मारियुपोल को जब चारों ओर से घेर रखा था उस दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने राष्ट्रपति पुतिन को लेनिनग्राद की जंग की याद दिलाई और मारियुपोल का जिक्र करते हुए कहा था कि हमने ऐसे दृश्य यूरोप में पहले भी देख रखे हैं, हर रूसी ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लेनिनग्राद की भयानक घेराबंदी के बारे में जाना है. 

ब्लिंकन ने 1941 में पुतिन के नवजात भाई विक्टर की मौत का जिक्र करते हुए लेनिनग्राद के खौफ को याद किया और कहा "उस नाकेबंदी ने राष्ट्रपति पुतिन सहित लाखों रूसी परिवारों को प्रभावित किया था, इस नाकेबंदी में पुतिन के एक साल के भाई की भी मौत हो गई थी. 

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आगे मारियुपोल का जिक्र करते हुए ब्लिंकन ने कहा कि अब रूस मारियुपोल जैसे शहरों के भूखमरी के दुष्चक्र में धकेल रहा है. ये शर्मनाक है, दुनिया रूस से कह रही है- इन हमलों को तत्काल रोका जाए.

मां को उन लोगों ने लाशों के साथ छोड़ दिया

राष्ट्रपति पुतिन भी लेनिनग्राद की जंग में अपने परिवार पर गुजरे सितम को पत्रकारों के साथ साझा कर चुके हैं. सत्ता में आने के बाद पुतिन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी मां लेनिनग्राद की इस जंग में लगभग मर ही गई थीं, वह भूख से मरने के कगार पर थीं, लोगों ने सोचा कि वह मर चुकीं हैं, उन लोगों ने मां को लाशों के साथ छोड़ दिया था, लेकिन सौभाग्य से मां वहां से उठी और कराहने लगी.  

1941 में जब लेनिनग्राद की नाकेबंदी शुरू हुई तो पुतिन की मां मारिया इवानोवान पुतिना ने अपने दूसरे बच्चे विक्टर को साथ लिया और पीटरहोफ नाम के जगह से बीच लेनिनग्राद आ गईं. बता दें कि इससे  एक साल पहले ही पुतिन के एक भाई की मौत हो गई थी, जबकि इस समय तक पुतिन का जन्म नहीं हुआ था. पुतिन कहते हैं कि मां को पता चला था कि लेनिनग्राद में नवजात बच्चों को बचाने के लिए कुछ अस्थायी घर बनाए जा रहे हैं. ऐसे ही किसी एक घर में उनके भाई को डिप्थीरिया हुआ फिर विक्टर की मौत हो गई.

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लेनिनग्राद सीज के दौरान बंदूक असेंबल करती दो लड़कियां

2012 में लेनिनग्राद में एक कार्यक्रम में पुतिन ने कहा था कि मेरा एक भाई जिसे मैंने कभी नहीं देखा है और न ही उसे जान पाया हूं, उसे यहीं पर दफनाया गया हूं, लेकिन मैं ये भी जानता नहीं हूं कि वो जगह कहां पर है. 

यूक्रेन का विनाश भी ऐसा ही है

पुतिन ने इस जंग को विशेष सैन्य अभियान करार दिया है, उनका कहना है कि इस युद्ध का उद्देश्य यूक्रेन पर कब्जा करना नहीं बल्कि इस देश को 'डिमिलिटराइज' करना है. लेकिन अपने ही देश से भागने को मजबूर हुए 80 लाख लोग, हजारों मौतें, बच्चों की चीख पुकार, यूक्रेन के शहरों में फैली मुर्दा शांति और अरबों-खरबों डॉलर का महाविनाश राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के तर्क को कहां समझता है. विनाश तो विनाश है. 

रूस-यूक्रेन युद्ध के एक साल की फैक्टशीट... कितना नुकसान?  

अगर हम रूस-यूक्रेन युद्ध की ओर निगाह डालें तो इस जंग के एक साल गुजर चुके हैं. हजारों नागरिक इस युद्ध में मारे जा चुके हैं. मरने वाले सैनिकों की संख्या को लेकर अलग अलग दावे हैं. लेकिन ये आंकड़े भी हजार से लाख के बीच है. इस युद्ध से पैदा हुए विनाश ने यूक्रेन को वर्षों पीछे धकेल दिया है, जहां विध्वंस के मलबे और कब्रिस्तान का शोक इस देश पर साये की तरह सवार हो चुका है. 

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रूस भी फंसा ही हुआ है

लेनिनग्राद सीज के वक्त तो रूस जंग की तबाही झेल ही रहा था, यूक्रेन जंग में कूदने के बाद आज भी रूस का वैसा ही हाल है. जैसा कि युद्ध की नियति होती है तबाही की विभीषिका दोनों ही उठाते हैं. विजेता पक्ष और परास्त होने वाला पक्ष भी. आज भले ही यूक्रेन की जमीन का अहम हिस्सा रूस के पास है, लेकिन उसकी हानि यूक्रेन से किसी भी हालत में कम नहीं है. यूक्रेन के दावे की माने तो इस युद्ध में रूस 1.45 हजार सैनिक मारे गए हैं.  रूस को जबरन युवाओं की सैनिकों की नियुक्ति कर रहा है. उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है. रूस के फेडरल स्टैटिस्टिक्स के अनुसार रूसी गणराज्य की जीडीपी में 2.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. पुतिन विरोध की आवाज को दबा रहे हैं. लेकिन ऐसा नहीं लगता है कि वे जंग को बंद करने की अपील और आवाज को सुन रहे हैं.

 

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