संयुक्त राष्ट्र की डिप्टी सेक्रेटरी जनरल अमीना मोहम्मद ने मुस्लिम देशों से आग्रह किया है कि वे तालिबान को 13वीं सदी से बाहर निकलकर 21वीं सदी में प्रवेश करने में मदद करें. संयुक्त राष्ट्र में सबसे शीर्ष पद पर आसीन अमीना ने बुधवार को कहा कि तालिबान के साथ अपनी बैठकों के दौरान अफगानिस्तान में महिला अधिकारों को बहाल करने के लिए अपने टूलबॉक्स में से वह हर चीज आजमा चुकी हैं.
नाइजीरिया की पूर्व कैबिनेट मंत्री अमीना मोहम्मद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि उन्होंने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ पिछले हफ्ते चार तालिबान नेताओं से महिला अधिकारों को बहाल करने पर बात की जिसमें तालिबान सरकार के विदेश मंत्री और उप प्रधानमंत्री भी शामिल थे.
सभी नेताओं ने एक ही बात कही कि वह ऐसा कर महिलाओं के लिए एक सुरक्षित वातारवरण तैयार कर रहे हैं. अमीना ने कहा कि तालिबान के मंत्री बस एक ही बात पर जोर देते रहे कि उन्होंने अफगानिस्तान के लिए कई काम किए हैं बावजूद इसके उन्हें किसी भी देश से मान्यता नहीं मिली है. अमीना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, 'तालिबान की महिलाओं की सुरक्षा की जो परिभाषा है, वह हमारे लिए महिलाओं का उत्पीड़न है.'
तालिबान पर बढ़ता दबाव
तालिबान ने पिछले साल दिसंबर में एक फरमान जारी कर महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा के दरवाजे बंद कर दिए और उनके गैर-सरकारी संस्थाओं (NGO) में काम करने पर पाबंदी लगा दी. तालिबान ने कुछ दिनों पहले ही कहा था कि महिलाओं के अधिकार उनके लिए मायने नहीं रखते हैं. तालिबान के इस फैसले की विश्व भर में निंदा हुई. मुस्लिम देशों और इस्लामिक सहयोग संगठन ने भी तालिबान के इस फैसले की निंदा की.
इसके बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मार्टिन ग्रिफिथ्स और कई बड़े सहायता समूहों के प्रमुखों की एक टीम ने अफगानिस्तान का दौरा किया. इस दौरान टीम ने तालिबान पर दबाव डाला कि वो महिलाओं के खिलाफ लिए गए अपने इस फैसले को पलट दे.
बुधवार को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में बोलते हुए, ग्रिफिथ्स ने कहा कि उनकी यात्रा का फोकस तालिबान को यह समझाना है कि सहायता अभियान चलाना और इसमें महिलाओं को उनमें काम करने की अनुमति देना जरूरी है.
उन्होंने कहा, 'हम जिन तालिबान नेताओं से मिले उन सभी ने कहा कि वो महिलाओं के काम के अधिकार के महत्व को समझते हैं और वो जल्द ही इसके लिए एक दिशानिर्देश तैयार कर रहे हैं जो महिलाओं को शर्तों के साथ काम करने की इजाजत देगा.
अमीना मोहम्मद ने कहा कि जब उनके प्रतिनिधिमंडल से तालिबानी नेताओं ने मानवाधिकार के बारे में बात करना शुरू किया तब उन्होंने तालिबान को तीखा जवाब देना शुरू किया. उन्होंने लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकार की बात की जिस पर तालिबान बैकफुट पर आ गया.
उन्होंने कहा, 'हमने उन्हें याद दिलाया कि जब वो मानवाधिकारों की बात कर रहे हैं तो इसमें लैंगिक भेदभाव एक जरूरी हिस्सा है. और तालिबान तो महिलाओं को काम करने से ही रोक रहे हैं.'
'आपकी तरह मैं भी सुन्नी मुसलमान'
उन्होंने तालिबान से कहा कि आपकी तरह मैं भी सुन्नी मुसलमान हूं लेकिन जब आप कहते हैं कि लड़कियां छठी कक्षा से आगे नहीं पढ़ सकती तो आप इस्लाम का पालन नहीं कर रहे होते हैं. महिलाओं को शिक्षा और काम करने से रोकना उनके अधिकारों को नुकसान पहुंचाना है.
अमीना ने तालिबान के साथ एक बैठक का जिक्र करते हुए बताया कि एक तालिबान अधिकारी ने उनकी तरफ देखकर बात करने से इनकार कर दिया. उसने कहा कि महिलाओं की तरफ देखना हराम है. इसके बाद अमीना ने भी बिना तालिबान अधिकारी की तरफ देखे अपनी बात पूरी की.
अमीना ने कहा, 'ये रूढ़िवादी हम महिलाओं की तरफ नहीं देखेंगे. इसलिए भी हमने बिना उनकी ओर देखे अपनी बात रखी. उन्होंने हमारे साथ जो किया, हमने भी उसी तरह जवाब दिया.'
तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि वो जल्द ही महिलाओं के अधिकारों को बहाल करेंगे. लेकिन जब उन्होंने इसकी कोई समय सीमा मांगी तो तालिबान ने बिना कोई समय सीमा निर्धारित करते हुए कहा कि जल्द ही वो ऐसा करेंगे.
20 साल के युद्ध के बाद अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो बलों की वापसी हुई थी और अगस्त 2021 में सत्ता में आए तालिबान ने महिला अधिकारों में भारी कटौती की थी. तालिबान को अभी तक किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है.
अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने को बेताब तालिबान
अमीना ने कहा कि तालिबान अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने के इच्छुक हैं और वो संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान की सीट चाहते हैं. उन्होंने कहा कि तालिबान को अभी मान्यता देने का मतलब है कि गेंद उनके पाले में देना.
उन्होंने जानकारी दी कि संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक सहयोग संगठन मार्च में मुस्लिम देशों में महिलाओं के अधिकारों पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन करने के प्रस्ताव पर सहमत हुए हैं.
अमीना ने कहा, 'यह बहुत जरूरी है कि मुस्लिम देश एक साथ आएं. हमें लड़ाई को इस क्षेत्र में ले जाना है ... और हमें इसके बारे में और अधिक साहसी होने की जरूरत है क्योंकि महिलाओं के अधिकार मायने रखते हैं. मुस्लिम देशों को देखना होगा कि वो कैसे तालिबान को 13वीं सदी से निकालकर 21वीं में पहुंचाते हैं. यह एक लंबी यात्रा है जिसमें अभी तक एक रात का सफर भी तय नहीं हुआ है.'
उन्होंने कहा कि मुस्लिम देश या शरिया कानून से किसी को आपत्ति नहीं है लेकिन महिलाओं और बच्चियों को नुकसान पहुंचाने वाले विचार बिल्कुल अस्वीकार्य हैं.