ऊंची इमारतों और चहल-पहल वाले बीजिंग शहर के नीचे एक और दुनिया बसती है, एक पूरा शहर, जिसका नाम है दिक्सिया चेंग. चीनी भाषा में इसका अर्थ है कालकोठरी. इसे अंडरग्राउंड वॉल भी कहते हैं. दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में शीत युद्ध का दौर था, जब चीन की तत्कालीन जऊ इनलई सरकार ने फैसला किया कि उसे जमीन के नीचे भी एक शहर बसा लेना चाहिए ताकि अगर कोई देश बमबारी करे तो कम से कम राजधानी के लोग सुरक्षित बस जाएं. चीन को खासकर रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) से डर था. सिनो-सोवियत बॉर्डर को लेकर रूस से उसकी सैन्य मुठभेड़ भी हो चुकी थी, तो दूसरे वॉर से घबराया चीन अंदर ही अंदर लड़ने और बचने की तैयारी करने लगा.
साल 1969 में फैसला हुआ और आम लोग इस काम में लगा दिए गए. पुराने और तब के सबसे ताकतवर नेता माओ जेडांग ने नागरिकों से अपील की थी कि वे अपने काम से लौटकर जमीन की खुदाई करें. उस समय का नारा था- Shenwadong, chengjiliang, buchengba, मतलब गहरी से गहरी सुरंग खोदो, खाना स्टोर करो और युद्ध के लिए तैयार रहो. जेडांग देश के नेता थे. लोगों पर इस संदेश का भारी असर हुआ और वे रूटीन में जमीन खोदने लगे.
माना जाता है कि तब बीजिंग के 3 लाख से ज्यादा लोग जमीन की खुदाई में लग गए. ज्यादातर के पास छोटी कुदालें थीं, वहीं बहुत से लोग हाथ से ही मिट्टी हटाने का काम किया करते. अगले 10 सालों तक ये काम चलता रहा और एक शहर तैयार हो गया. शहर जमीन के अंदर कितनी दूर तक फैला है, इस बारे में कहीं कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती. चीन की कई वेबसाइट्स दावा करती हैं कि शहर बीजिंग से भी ज्यादा लंबाई-चौड़ाई में पसरा हुआ है. वहीं इसकी गहराई 18 मीटर तक है, जहां ऊंचे मकान भी बने हुए हैं.
पूरे शहर का स्ट्रक्चर इस तरह का है, न्यूक्लियर या जैविक अटैक हो तो भी जान बच सके. यहां क्लिनिक भी है, स्कूल भी और रेस्त्रां भी. यहां तक कि बर्फबारी का आनंद लेने के लिए भी जगहें बनाई हुई हैं. जगह-जगह गोदाम बने ताकि खाना स्टोर हो सके. अस्सी के मध्य तक ये शहर सुनसान पड़ा रहा. इस बीच रूस-चीन के बीच तनाव कम हो चुका था. यही वो समय था, जब बीजिंग में आबादी तेजी से बढ़ने लगी, किराया बढ़ने लगा. तभी बाहर से आए मजदूर और किराया दे सकने में अक्षम लोग जमीन के नीचे शिफ्ट होने लगे.
इन लोगों को रैट ट्राइब कहा गया, वे लोग जो चूहों की तरह जमीन के अंदर बसे हुए थे. इनमें ज्यादातर गांव के लोग थे, जो कारखानों में मजदूरी के लिए बीजिंग आ रहे थे. नीचे के हालात दिनों-दिन खराब होते चले गए. लोग बंकरों में रहते, जहां न धूप मिलती, न हवा. ज्यादातर लोगों के पास वर्क परमिट नहीं था, यानी उन्हें किसी भी तरह की सरकारी सुविधा नहीं मिल सकती थी.
दक्षिणी कैलीफोर्नियन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एनेट किम ने बीजिंग के नीचे बसे इस शहर को समझने के लिए अध्ययन शुरू किया तो पाया कि जैसे जमीन के ऊपर बसे घरों के विज्ञापन होते हैं, वैसे ही अंडरग्राउंड सिटी के लिए किराए पर मकान जैसे एडवरटाइज मिलते हैं. किम ने पाया कि एक छोटे से कमरे में 10 से ज्यादा लोग रहते हैं.
जमीन से ऊपर बसे घरों की तुलना में तीन गुनी कम कीमत के कारण अब यहां स्टूडेंट्स भी बसने लगे हैं. बिल्डिंग कोड के मुताबिक न होने के कारण साल 2010 में सरकार ने घरों को खाली करने का आदेश दिया था, फिर डेडलाइन बढ़ा दी गई.
चीन के अलावा दुनिया के कई दूसरे देश हैं, जहां अंडरग्राउंड शहर बसे हुए हैं. इटली का ऑरवाइटो इन्हीं में एक है. बाकी अंडरग्राउंड शहरों की तरह इसका मकसद भी भविष्य में होने वाले युद्ध से बचाव था. फिलहाल ये शहर अपनी खास रोस्टेड पीजन रेसिपी और वाइट वाइन के लिए जाना जाता है. नब्बे के दशक में इसे सैलानियों के लिए खोल दिया गया. हालांकि जमीन के अंदर होने के कारण यहां अकेले या इक्का-दुक्का लोग नहीं जा सकते, बल्कि कम से कम 30 लोग एक साथ, वो भी लोकल टूर गाइड के साथ जा सकते हैं. रास्ता भटकने के कारण यहां पहले कई हादसे भी हो चुके हैं.