साल 1984 में सिखों के खिलाफ हिंसा भड़काने के मामले में कांग्रेस नेता जगदीश टाइलर के खिलाफ मामला फिर से खोलने के दिल्ली के कोर्ट के फैसले के बाद एक अमेरिकी सिख संगठन ने इस मामले की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की मांग की है.
न्यूयॉर्क स्थित मानवाधिकार संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) ने बुधवार को कहा कि वह दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर इस मामले की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व प्रमुख जोगिंदर सिंह के नेतृत्व में विशेष टीम गठित करने का अनुरोध करेंगे.
एसएफजे ने कहा कि याचिका सीबीआई द्वारा टाइलर के खिलाफ साक्ष्यों की अनदेखी करने और गवाहों के बयान दर्ज करने से इनकार करने के आधार पर होगी, जो आरोपी को बचाने जैसा प्रतीत होता है.
एसएफजे ने कहा कि एसआईटी से पूर्व पुलिस आयुक्त गौतम कौल, गांधी परिवार के करीबी आर. के. धवन तथा फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन, जो सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट के अनुसार एक नवंबर, 1984 को तीन मूर्ति भवन में टाइटलर के साथ मौजूद थे, के खिलाफ जांच करने और उनके बयान दर्ज करने के लिए कहा जाना चाहिए.
एसएफजे ने अमेरिका में रह रहे गवाह रेशाम सिंह तथा जसबीर सिंह का संयुक्त बयान भी जारी किया, जिसमें उन्होंने नवंबर 1984 में सिखों के कत्लेआम के मामले में टाइटलर के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किए जाने के बाद किसी भी कोर्ट में गवाही के लिए पेश होने की इच्छा जताई है.
एसएफजे के अनुसार, साल 1984 की हिंसा में टाइलर की भूमिका को लेकर गवाहों का बयान दर्ज करने के लिए सीबीआई की एक टीम ने दिसंबर 2008 में अमेरिका का दौरा किया था, लेकिन उसने अतिरिक्त गवाहों- रेशाम सिंह, चैन सिंह तथा आलम सिंह के बयान दर्ज करने से इनकार कर दिया था, जो न्यूयॉर्क तथा सैन फ्रांसिस्को स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावासों के बाहर प्रतीक्षा करते रहे. हालांकि सीबीआई ने ही उन्हें दूतावासों में बुलाया था, लेकिन उसने उनके बयान दर्ज नहीं किए.
गौरतलब है कि दिल्ली में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनुराधा शुक्ला बजाज ने बुधवार को इस मामले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट खारिज कर दी थी. सीबीआई ने टाइटलर को क्लीनचिट देते हुए रिपोर्ट में कहा था कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं.
टाइटलर पर भीड़ को भड़काने का आरोप है, जिसके कारण उत्तरी दिल्ली पुलबंगश गुरुद्वारा में शरण ले रखे तीन लोगों की हत्या हो गई. भीड़ का यह हमला 31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ हुई हिंसा का ही एक हिस्सा था.