अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन (Pentagon) से लीक हुई 'टॉप सीक्रेट फाइलों' ने दुनियाभर में कोहराम मचा दिया है. इन खुफिया दस्तावेजों के लीक होने से न सिर्फ अमेरिका के अन्य देशों से उसके संबंधों पर असर पड़ेगा बल्कि इससे उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा पहुंचने की आशंका जताई जा रही है.
लेकिन सवाल ये है कि पेंटागन के इन खुफिया दस्तावेजों में आखिर ऐसा क्या था, जिससे अमेरिका के दुनियाभर के देशों से उसके रिश्तों पर असर पड़ सकता है?
एक समय था, जब 2013 में विकिलीक्स के जूलियन असांजे ने अमेरिका के 7 लाख खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक कर तहलका मचा दिया था. पूर्व सीआईए अधिकारी और कंप्यूटर एक्सपर्ट एडवर्ड स्नोडेन ने अमेरिकी सरकार के खुफिया दस्तावेजों को लीक कर भूचाल ला दिया था. इन खुफिया दस्तावेजों के लीक होने का झटका इतना जबरदस्त था कि बाइडेन प्रशासन को इसकी जांच के आदेश देने पड़े.
लेकिन खुफिया दस्तावेजों के लीक होने का सिलसिला यहीं नहीं थमा. एक बार फिर अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की गोपनीय फाइलें लीक हुईं हैं.
लीक गोपनीय दस्तावेज
अमेरिका के 100 से अधिक खुफिया दस्तावेज लीक हुए हैं, जो यूकेन युद्ध, रूस और यूक्रेन की युद्ध क्षमताओं के आकलन, युद्ध में उनके सैनिकों की भागीदारी और रूस, चीन और मध्यपूर्व से जुड़ी गोपनीय जानकारी शामिल हैं.
ये दस्तावेज यूक्रेन में चल रहे युद्ध और इजरायल, दक्षिण कोरिया तथा तुर्की सहित सहयोगियों के बारे में जानकारी देते हैं. यूक्रेन से युद्ध के मैदान में हताहत होने का अनुमान देने वाले कुछ दस्तावेजों में रूसी नुकसान को कम दिखाया गया है.
यूक्रेन युद्ध को लेकर 23 फरवरी का एक दस्तावेज है, जो बेहद गोपनीय है. इसमें यूक्रेन के एस-300 एयर डिफेंस सिस्टम का ब्योरा दिया गया है. कहा गया है कि एस-300 मिसाइलों का स्टॉक भी 3 मई तक पूरी तरह से खत्म हो जाएगा. आने वाले महीनों में यूक्रेन की वायु रक्षा को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. दावा किया गया है कि अगर यूक्रेन मौजूदा खपत दर पर हथियारों का उपयोग जारी रखता है, तो अप्रैल के मध्य तक उसके मिसाइलों का स्टॉक पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा.
लीक दस्तावेजों से इजरायल और रूस के संबंधों में दरार
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के लीक हुए इन खुफिया दस्तावेजों से पता चला है कि अमेरिका की रूस की सुरक्षा और इंटेलिजेंस सर्विसेज तक गहरी पैठ है. अमेरिका को रूसी सेना की योजना को लेकर जानकारी मिलती रही है. इन दस्तावेजों से अमेरिका के उन सहयोगियों के सामने जोखिम खड़ा हो गया है, जिन्होंने रूस और यूक्रेन युद्ध को लेकर दूरी बनाने की कोशिश की.
सीधे तौर पर रूस के साथ इजरायल के संबंध बिगड़ गए हैं. दरअसल इन दस्तावेजों में यह गोपनीय जानकारी भी शामिल है कि इजरायल ने इस युद्ध में किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं करने के बावजूद यूक्रेन को हथियार मुहैया कराने की इच्छा जताई.
यूरोपीय देशों का भंडाफोड़
एक अन्य दस्तावेज में कहा गया कि नाटो के सदस्य देशों अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और लात्विया के 100 विशेष ऑपरेटिव पहले से ही यूक्रेन में मौजूद थे. ब्रिटेन की स्पेशल फोर्सेज ने 2021 में यूक्रेन की सेना को ट्रेनिंग दी थी. लेकिन ब्रिटेन सरकार ने कभी भी यूक्रेन में अपनी स्पेशल फोर्सेज की मौजूदगी की बात को स्वीकार नहीं किया.
इन दस्तावेजों में बताया गया है कि यूक्रेन में पश्चिमी देशों की स्पेशल फोर्सेज मौजूद हैं. इनमें ब्रिटिश स्पेशल फोर्सेज की टीम सबसे बड़ी है. ब्रिटेन के 50, लातविया के17, फ्रांस के 15, अमेरिका के 14 और नीदरलैंड का एक कर्मी यूक्रेन में मौजूद हैं.
दो मार्च के एक अन्य गोपनीय दस्तावेज से पता चला कि सर्बिया ने रूस पर किसी भी तरह के प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया था और यूक्रेन की सेना को ट्रेनिंग देने से इनकार कर दिया था. लेकिन सर्बिया ने यूक्रेन को हथियार सप्लाई करने पर सहमति जताई थी और कई हथियार पहले भी भेज चुका था.
पुतिन के परमाणु हमले की जानकारी
इन खुफिया दस्तावेजों में से कुछ में कहा गया है कि आखिर किन परिस्थितियों में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
पेंटागन के 17 फरवरी के दस्तावेज में बताया गया है कि मिस्र खुफिया तौर पर रूस को 40,000 रॉकेट और बारूद भेज रहा है. लीक हुए एक और दस्तावेज के आधार पर दावा किया जा रहा है कि कैसे अमेरिकी दबाव के बावजूद दक्षिण कोरिया के नेता यूक्रेन को तोप के गोले देने में हिचक रहे हैं.
दांव पर क्या है?
इस तरह के गोपनीय दस्तावेज लीक होने से सिर्फ जानकारी ही बाहर नहीं आती बल्कि विभिन्न देशों के सूत्रों की सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ हो सकता है क्योंकि यही सूत्र पेंटागन को खुफिया जानकारी मुहैया कराने में मदद करते हैं. कई मामलों में अमेरिकी सूत्रों की जिंदगी भी खतरे में पड़ सकती है.
यूरेशिया ग्रुप के साउथ एशिया प्रैक्टिस हेड प्रमित पाल चौधरी ने कहा कि इससे सिर्फ जानकारी ही बाहर नहीं आती बल्कि कौन यह जानकारी मुहैया करा रहा है, उसकी सुरक्षा को भी खतरा रहता है.
उन्होंने कहा कि इस तरह की जानकारी लीक होने से सूत्रों की हत्या या उन्हें जेल होने का भी खतरा रहता है. इससे वरिष्ठ अधिकारियों की विश्वसनीयता भी खतरे में पड़ सकती है. विकिलीक्स के खुलासे के बाद अमेरिका-अफगान राजदूत एकेनबेरी को हटाना पड़ा था क्योंकि हामिद करजई को लेकर उनके विचार सार्वजनिक हो गए थे.
कैसे लीक हुए गोपनीय दस्तावेज?
दावा किया गया है कि ये लीक दस्तावेज सबसे पहले डिस्कोर्ड नामक सोशल साइट पर सामने आये थे. यह एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, जो ऑनलाइन गेम के लिए काफी मशहूर है.