मंगल की कक्षा में अपने अपने अंतरिक्ष यान भेजने के बाद भारत और अमेरिका भविष्य में लाल ग्रह के रहस्यों की खोज और अन्वेषण के लिए साथ मिलकर काम करने पर सहमत हो गए हैं. अमेरिका का कहना है कि इससे दोनों देशों को और दुनिया को व्यापक स्तर पर लाभ होगा.
इस संबंध में मंगलवार को टोरंटो में इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल कांग्रेस से इतर नासा के प्रशासक चार्ल्स बोल्डेन और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. दोनों पक्षों ने एक घोषणा पत्र (चार्टर) पर हस्ताक्षर किए जिसके मुताबिक, 'नासा-इसरो मार्स वर्किंग ग्रुप की स्थापना की जाएगी. ये ग्रुप मंगल अभियानों के लिए दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने संबंधी क्षेत्रों की पहचान करेगा.'
नासा के प्रशासक चार्ल्स बोल्डेन और इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने एक इंटरनेशनल समझौते पर भी हस्ताक्षर किए, जिसमें बताया गया है कि दोनों एजेंसियां ‘नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार’ (एनआईएसएआर) मिशन पर किस तरह एक साथ काम करेंगी. एनआईएसएआर को साल 2020 में लॉन्च करने का लक्ष्य रखा गया है.
बोल्डेन ने बताया, ‘इन दोनों दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए जाने से नासा और इसरो की विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने और पृथ्वी पर जीवन में सुधार करने की दृढ़ प्रतिबद्धता का पता चलता है.’ नासा के प्रशासक ने कहा, ‘इस भागीदारी से दोनों देशों और पूरी दुनिया को फायदा होगा.’
मार्स वर्किंग ग्रुप की भूमिका लाल ग्रह के बारे में अन्वेषण करने के संबंध में दोनों एजेंसियों के मध्य वैज्ञानिक, कार्यक्रम संबंधी और प्रौद्योगिकी आधारित साझा लक्ष्यों की पहचान और उनका कार्यान्वयन करने की दिशा में होगी. इसमें कहा गया है कि समूह की बैठक साल में एक बार होगी, जिसमें मंगल के लिए भावी मिशनों पर नासा-इसरो के बीच सहयोग सहित अन्य समन्वित गतिविधियों की योजना बनाई जाएगी.
नासा का ‘मार्स एटमॉस्फियर एंड वोलेटाइल इवॉल्यूशन’ (एमएवीईएन-मावेन) अंतरिक्ष यान 21 सितंबर को मंगल की कक्षा में पहुंच चुका है. एमएवीईएन मंगल के हल्के ऊपरी वातावरण के बारे में जानकारी और आंकड़े हासिल करने के लिए समर्पित पहला अंतरिक्ष यान है. इसरो का मार्स ऑर्बिटर मिशन (मॉम) लाल ग्रह की कक्षा में भेजा गया भारत का पहला अंतरिक्षयान है.
लाल ग्रह की सतह और वातावरण का अध्ययन करने और अंतग्रहीय अभियान के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी स्पष्ट करने के लिए यह यान 23 सितंबर को मंगल की कक्षा में पहुंच गया. कार्यकारी समूह के उद्देश्यों में से एक उद्देश्य एमएवीईएन और मॉम के आंकड़ों के साथ साथ वर्तमान व भविष्य के मंगल अभियानों के लिए उनके बीच संभावित समन्वित पर्यवेक्षणों का पता लगाना और विज्ञान विश्लेषण करना भी है.
नासा के सहायक विज्ञान प्रशासक जॉन ग्रन्सफेल्ड ने बताया, ‘नासा और भारतीय वैज्ञानिकों का अंतरिक्ष विज्ञान में सहयोग का लंबा इतिहास रहा है.’ उन्होंने बताया, ‘पृथ्वी विज्ञान और मंगल संबंधी अन्वेषण अभियान के लिए नासा और इसरो के बीच हुए नए समझौतों से हमारे संबंधों को और अधिक मजबूती मिलेगी.’
नासा के बयान के मुताबिक संयुक्त एनआईएसएआर अर्थ-ऑब्जर्विंग अभियान जमीन की सतह पर हुए बदलावों और उनके कारणों का पता लगाएगा. अनुसंधान के संभावित क्षेत्रों में पारिस्थितिकी तंत्र में बाधा, हिम परत का क्षय होना और प्राकृतिक संकट शामिल हैं. एनआईएसएआर अभियान का उद्देश्य पृथ्वी की सतह में हो रहे सूक्ष्म बदलावों का पता लगाना है, जिनमें पृथ्वी की उपरी सतह और हिम सतह की हलचलें शामिल हैं.
उन्होंने बताया कि एनआईएसएआर जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभावों के बारे में और प्राकृतिक आपदाओं को लेकर हमारे ज्ञान तथा समझ को और आगे बढ़ाएगा.