संयुक्त राज्य अमेरिका ने पहली बार तिब्बत को चीन का एक सैन्य कब्जे वाला क्षेत्र बताया है. अमेरिका की ये प्रतिक्रिया उस विधेयक के पास होने के बाद आई है, जिसमें अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने तिब्बतियों के लिए वास्तविक स्वायत्तता की वकालत की है. इस बिल में तिब्बतियों के परम पावन 14वें दलाई लामा द्वारा वैश्विक शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के कार्य को भी महत्व दिया गया है.
अमेरिका के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट 'द एलीमेंट्स ऑफ द चाइना चैलेंज' में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के कब्जे और विभिन्न क्षेत्रों व लोगों के दमन का जिक्र किया गया है.
रिपोर्ट कहती है, “चीन की कम्युनिस्ट पार्टी जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के दमन के लिए काफी संसाधन खर्च करती है. 1948 के मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में उल्लिखित सिद्धांतों के घोर उल्लंघन करते हुए सीपीसी ने 1950 के दशक में तिब्बत पर सैनिक कब्जा कायम किया. इसने झिंजियांग में "उइगर" और लाखों अन्य तुर्क मुस्लिमों के खिलाफ एक क्रूर कार्यक्रम आयोजित किया. मंगोलियाई स्वायत्त क्षेत्र में चीन मंगोलियाई लोगों पर अत्याचार करता है और चीन में रहने वाले लगभग 70 मिलियन ईसाइयों पर अतिरिक्त नियम लादता है.”
देखें: आजतक LIVE TV
इस रिपोर्ट में चीन के भीतर ‘अधिनायकवाद’ (Authoritarianism) के बारे में कहा गया है, “चीन की राष्ट्रीय नीति के हिस्से के रूप में अल्पसंख्यकों को जबरन एकीकृत करने के लिए, सीसीपी ने करीब 6 मिलियन तिब्बतियों का दमन किया है. उनकी अभिव्यक्ति की आजादी, धर्म, आंदोलन, संगठन और विधानसभा बनाने की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से प्रतिबंधित किया है. चीन में इसे "स्थिरता को बनाए रखने" के रूप में जाना जाता है.”
यह रिपोर्ट उसके एक दिन बाद आई है जब अमेरिकी सदन में स्वायत्त तिब्बत के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को चिन्हित करते हुए एक रिजोल्यूशन भी पारित किया गया. इस बिल में हाउस ने दलाई लामा को अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करने के लिए आमंत्रित भी किया है.
रिजोल्यूशन में कहा गया है, “यह निर्धारित करता है कि कांग्रेस की एक संयुक्त बैठक के माध्यम से एक द्विदलीय मंच बुलाना फायदेमंद होगा, जिसमें कांग्रेस के सदस्यों के साथ परम पावन दलाई लामा अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के समाधान के बारे में शांतिपूर्ण चर्चा करें.”