
अफगानिस्तान में तालिबान का राज कायम होते ही पूरे मुल्क में हलचल पैदा हो गई है. यहां के लोग उस भयावह अतीत को याद कर रहे हैं जो उन्होंने तालिबान के जुल्म के रूप में झेला है. शायद यही वजह है कि 15 अगस्त को जब काबुल तक तालिबान का कब्जा हो गया तो लोग वहां से भागने लगे. एयरपोर्ट पर किसी मेले जैसा मंजर दिखाई दिया. खौफजदा लोग चलते हुए प्लेन के पहियों पर लटक गए और पूरी दुनिया ने आसमान से गिरते अफगान लोगों को मौत के मुंह जाते देखा.
आम हो या खास, जिसे जहां रास्ता मिल रहा है वो वहां से निकलकर बस अफगानिस्तान की सरहद लांघ देना चाहता है. कुछ लोग पड़ोसी मुल्क उज्बेकिस्तान की तरफ भी गए लेकिन यहां बॉर्डर पर बना फ्रेंडशिप ब्रिज भी इन लोगों को पार न करा सका. ये उज्बेकिस्तान का तालिबान को समर्थन है या उसका डर या कुछ और, वजह जो भी हो, लेकिन उज्बेकिस्तान ने इस मसले से पूरी तरह खींच रखे हैं.
अफगानिस्तान के बाल्ख प्रांत की सीमा उज्बेकिस्तान से लगती है. यहां से गुजरने वाली अमू नदी दोनों देशों की सीमाओं का बांटती है. मज़ार-ए शरीफ इस सीमा के नजदीक सबसे बड़ा शहर है, जिसकी अपनी आबादी पांच लाख से ज्यादा है. काबुल पर कब्जा करने से एक दिन पहले यानी 14 अगस्त को ही उत्तरी तालिबान के इस शहर मज़ार-ए शरीफ पर तालिबान ने कब्जा कर लिया था.
अफगान सैनिकों को कर लिया गिरफ्तार
तालिबान के सामने अफगान सुरक्षा बल नहीं टिक सके और यहां से फरार हो गए. सेना के दो बड़े अफसर मार्शल अब्दुल रशीद और अता मोहम्मद नूर भी उज्बेकिस्तान बॉर्डर की तरफ निकल गए. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान की सीमा पर बने फ्रेंडशिप ब्रिज पर बड़ी तादाद में लोग पहुंचने लगे, जाम की स्थिति पैदा हो गई. इनमें से 84 सैनिकों सीमा में दाखिल हो गए, जिन्हें अवैध घुसपैठ के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. इनके अलावा कुछ आम नागरिक भी उज्बेकिस्तान की सीमा में घुस गए, उन्हें भी पकड़ लिया गया. उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रालय की तरफ से इस संबंध में बयान भी जारी किया गया है. गिरफ्तार लोगों को वापस भेजने की तैयारी चल रही है.
इसके अलावा हवाई मार्ग से भी घुसपैठ हुई. 14 अगस्त और 15 अगस्त को अफगानिस्तान के 22 मिलिट्री विमान और 24 हेलिकॉप्टर ने उज्बेकिस्तान में लैंड किया. इनमें 585 सैनिक थे. इस घटना के बाद उज्बेकिस्तान की तरफ से कहा गया कि ये जबरन लैंड कराए गए हैं. उज्बेकिस्तान ने इसके बाद मंगलवार को कहा है कि वो तालिबान के संपर्क में है. उज्बेकिस्तान ने कहा है कि अगर उनके बॉर्डर पर किसी किस्म का उल्लंघन किया गया तो वो कड़ा जवाब देंगे.
ये वो वक्त था तब अफगानिस्तान में पूरी तरह उथल-पुथल मच चुकी थी, तख्तापलट हो चुका था, लेकिन उज्बेकिस्तान ने इससे पहले ही अफगान लोगों से किनारा कर लिया था. यानी अफगान लोगों और अफगान सैनिकों के प्रति उज्बेकिस्तान सख्त है और तालिबान के टच में है.
कोरोना का कारण बताकर वीजा नहीं दे रहा उज्बेकिस्तान
साल 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता होने के बाद से ही अफगानिस्तान में सिविल वॉर की आशंकाएं व्यक्त की जाने लगी थीं. न्यूज एजेंसी एपी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में जिन अफगान लोगों ने उज्बेकिस्तान की वीजा के लिए आवेदन किए, उन्हें वीजा नहीं दिए गए. वीजा न देने के पीछे कोरोना वायरस को कारण बताया गया.
हालांकि, उज्बेकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबान की एंट्री के वक्त से ही लगातार अपनी सीमा पर चाक-चौबंद रहा है और वो रिफ्यूजी कन्वेंशन में बदलाव को भी ठुकराता रहा है. लेकिन ताजा हालात ऐसे हैं कि ईरान और दूसरे मुल्कों के अलावा यूरोपीय देश भी अफगानिस्तान के लोगों को शरण देने पर राजी हैं. बता दें कि उज्बेकिस्तान में करीब 93 फीसदी मुस्लिम आबादी है.
रूस से उज्बेकिस्तान के नजदीकी रिश्ते
दरअसल, तालिबान इस बार नये अवतार में सामने आया है. वो महिलाओं के हक की बात कर रहा है. किसी से बदला न लेने की बात कर रहा है और लोगों से उनकी हिफाजत के वादे कर रहा है. ऐसे में क्या उज्बेकिस्तान अफगान लोगों को शरण न देकर कूटनीतिक तौर पर तालिबान के साथ खड़ा है, ये भी सवाल है.
इसकी एक और बड़ी वजह ये भी मानी जा रही है क्योंकि उज्बेकिस्तान और रूस के बहुत अच्छे संबंध हैं. दोनों मुल्कों ने पिछले हफ्ते ही अफगान सीमा से बीस किलोमीटर दूर मिलिट्री ट्रेनिंग की है. दूसरी तरफ, ये भी माना जा रहा है कि रूस का कहीं न कहीं तालिबान को समर्थन हासिल है. लिहाजा, उज्बेकिस्तान का एक्शन उसी की एक बानगी हो सकती है.