बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी के एक शीर्ष नेता को फांसी दिए जाने के बाद भड़की हिंसा में मरने वालों की संख्या शनिवार को बढ़ कर 21 हो गई जिसके बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कड़े शब्दों में कहा, ‘हम जानते हैं कि आपको कैसे काबू करना है.’
साल 1971 में मुक्ति संग्राम के दौरान अत्याचार करने की वजह से ‘मीरपुर का कसाई’ कहलाने वाले अब्दुल कादिर मुल्ला को सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसकी पुनरीक्षा याचिका खारिज किए जाने के बाद गुरुवार की रात फांसी दे दी गई. अब्दुल कादर मुल्ला युद्ध अपराधों के लिए फांसी की सजा पाने वाला पहला राजनीतिज्ञ है.
साल 1971 में हुए युद्ध के शहीदों की याद में आयोजित रैली को संबोधित करते हुए हसीना ने शु्क्रवार को अपनी कट्टर विरोधी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की प्रमुख खालिदा जिया पर आरोप लगाया कि वे मानवता के खिलाफ अपराध करने वालों को बचाने के लिए जमात का समर्थन कर रही हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने बहुत धैर्य दिखाया लेकिन अब हम और बर्दाश्त नहीं करेंगे. देश के लोग जानते हैं कि कैसे इन अत्याचारों का जवाब कैसे देना है, हम (सरकार) भी यह जानते हैं कि इन्हें कैसे जवाब देना है और कैसे काबू में करना है.’
प्रधानमंत्री का ये बयान जमात द्वारा मुल्ला की फांसी के विरोध में शनिवार को राष्ट्रव्यापी हड़ताल और प्रदर्शन करने की घोषणा के जवाब में आया है. मुल्ला को फांसी के बाद जगह-जगह हिंसा शुरू हो गई. मुल्ला को फांसी को जमात ने ‘राजनीतिक हत्या’ करार दिया है और इसका बदला लेने का संकल्प जताया है.
पुलिस ने बताया कि जमात कार्यकर्ताओं ने पाबना में गृह राज्य मंत्री शमसुल हक तुकू के मकान में आग लगा दी. यह मकान स्थानीय पासपोर्ट कार्यालय को किराये पर दिया गया था. आग लगने से दो मंजिला इमारत का एक कमरा जल गया. कार्यकर्ताओं ने पेट्रोल बम फेंक कर मकान में आग लगाई. हिंसा की अलग-अलग घटनाओं में मरने वालों की संख्या 21 हो गई है. मरने वालों में जमात के छह नेता और कार्यकर्ता, अवामी लीग के दो कार्यकर्ता, बीएनपी का एक कार्यकर्ता भी शामिल हैं.
जमात कार्यकर्ताओं ने उत्तर पश्चिमी निलफामरी में अवामी लीग के सांसद और अभिनेता असदुज्जमान नूर की गाड़ियों के काफिले पर हमला करने की कोशिश की. इस घटना में अवामी लीग के दो कार्यकर्ता मारे गए. हमले में असदुज्जमान बाल-बाल बच गए.