scorecardresearch
 

तुर्की में आए भूकंप को लेकर अमेरिकी तकनीक पर लगा आरोप, क्या है वेदर वॉरफेयर जो जंग जैसी तबाही मचा सकता है?

तुर्की और सीरिया में भूकंप से मरने वालों की संख्या 23 हजार पार कर गई. रेस्क्यू ऑपरेशन के बीच एक नया विवाद चल पड़ा. सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि भूकंप अमेरिका की साजिश है. उन्होंने ही अपनी वेदर तकनीक का इस्तेमाल करके तुर्की में तबाही मचाई. अमेरिकी रिसर्च सेंटर HAARP (हाई फ्रीक्वेंसी एक्टिव एरोरल रिसर्च प्रोग्राम) पर आरोप मढ़ा जा रहा है.

Advertisement
X
तुर्की और सीरिया में भूकंप ने भारी तबाही मचाई. (Reuters)
तुर्की और सीरिया में भूकंप ने भारी तबाही मचाई. (Reuters)

तुर्की और सीरिया में भूकंप से मरने वालों की संख्या 23 हजार पार हो गई है. लेकिन इस बीच एक नया विवाद चल पड़ा है. सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि भूकंप अमेरिका की साजिश की वजह से आया है. उन्होंने ही अपनी वेदर तकनीक का इस्तेमाल करके तुर्की में तबाही मचाई. अमेरिकी रिसर्च सेंटर HAARP (हाई फ्रीक्वेंसी एक्टिव एरोरल रिसर्च प्रोग्राम) पर आरोप मढ़ा जा रहा है.

Advertisement

ट्रोल्स इसके साथ वीडियो भी पोस्ट कर रहे हैं, जिसमें भूकंप के दौरान बिजली गिरी. कहा जा रहा है कि भूकंप में बिजली का गिरना कोई सामान्य घटना नहीं. अमेरिका ने कृत्रिम ढंग से ऐसा किया ताकि तुर्की को सजा मिल सके. लेकिन सजा क्यों? वो इसलिए क्योंकि तुर्की ने पश्चिमी देशों के बताए रास्ते पर चलने से इनकार कर दिया. इस तरह के तमाम आरोप सोशल मीडिया यूजर्स वेस्ट पर लगा रहे हैं. इसपर घेरे में है HAARP. 

क्या है हार्प?
ये अलास्का में एक वेधशाला में स्थित अमेरिकी परियोजना है जो रेडियो ट्रांसमीटर की मदद से ऊपरी वातावरण (आयनमंडल) का अध्ययन करती है. साल 2022 में इसके मौसम पर कई बड़े प्रोजेक्ट शुरू किए, लेकिन ये कभी नहीं कहा कि इसमें भूकंप ला सकने की क्षमता है. पहले भी कुदरती आपदाओं को लेकर HAARP संदेह के घेरे में रहा. कई देशों में आए भूकंप, सुनामी और भूस्खलन के लिए इस रिसर्च संस्था को दोषी ठहराया गया. 

Advertisement

इस तरह की कंस्पिरेसी थ्योरीज काफी समय से सुनने में आ रहीं
कहा जा रहा है कि कई देश मौसम को कंट्रोल करके दूसरे देश पर हमला करेंगे. ये हमला हथियारों या परमाणु बम से नहीं होगा, बल्कि कुदरती लगेगा. जैसे बारिश को काबू करके एक देश, अपने दुश्मन देश में सूखा ले आए. या फिर बाढ़ ले आए, जिससे त्राहि-त्राहि मच जाए. भूकंप या सुनामी ला सकना भी इसी श्रेणी में है. 

इस हमले को वेदर वॉरफेयर कहा जाता है
यह वैसा ही है, जैसे दुश्मन देश में खतरनाक वायरस या बैक्टीरिया भेजना. सबसे पहले मौसम पर काबू करने की कोशिशें किसने शुरू कीं, इसपर विवाद है. रूस अमेरिका पर आरोप लगाता है तो अमेरिका रूस पर. वैसे अमेरिका पर ज्यादातर देश हमलावर रहे. अगस्त 1953 में इस देश ने प्रेसिडेंट्स एडवाइजरी कमेटी ऑन वेदर कंट्रोल बनाई. कमेटी समझना चाहती थी कि किस तरह से वेदर मॉडिफिकेशन हो सकता है ताकि उसे देशहित में उपयोग किया जा सके. 

पहले-पहल नहीं था परदा
पचास के दशक में इस बारे में खुलकर बात होती थी. यहां तक कि छोटे स्तर पर प्रयोग करके भी दिखाया जाता था कि साफ मौसम में कैसे धूलभरी आंधी ला सकते हैं, या बर्फ पिघलाकर बाढ़ लाई जा सकती है. अमेरिका इस ताकत की शेखियां ही बघार रहा था कि तभी रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) भी मैदान में आ गया. उसके वैज्ञानिकों ने प्रशांत महासागर के पानी का तापमान बढ़ाने-घटाने का डैमो दे दिया. इसके बाद से अमेरिका और रूस आपस में ही लड़ने लगे. 

Advertisement
weather warfare  weather modification  in america china and russia amid earthquake in turkey and syria
अमेरिका और रूस समेत चीन से भी वेदर मॉडिफिकेशन पर शोध की खबरें आने लगी हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

इधर वेदर मॉडिफिकेशन का जिम्मा चीन ने ले लिया
वो चुपके-चुपके मौसम को अपने बस में करने पर प्रयोग करता रहा और यहां तक कि उसमें सफल भी होने लगा. अब एलान करने का समय था. साल 2020 में इस देश ने खुल्लमखुल्ला अपनी ताकत का प्रदर्शन शुरू किया. एक प्रेस वार्ता में वहां की स्टेट काउंसिल ने कहा कि वो वेदर मॉडिफिकेशन में काफी हद तक सफल हो चुकी है, और साल 2025 तक वो प्रयोग का अपना एरिया फैलाकर साढ़े 5 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर तक पहुंचा देगी. यानी चीन भारत से डेढ़ गुना क्षेत्र में मौसम से जुड़े अपने प्रयोग करने लगेगा. 

वो फिलहाल बारिश पर ही बात कर रहा है
चीन का कहना है कि तकनीक के जरिए वो सूखाग्रस्त इलाकों में भी समय से बारिश कराएगा. इस तरह से वो कृत्रिम ढंग से पानी की कमी पूरी करेगा. अपनी इस ताकत को वो साबित भी कर चुका. साल 2008 में बीजिंग ओलिंपिक से पहले आसमान साफ रखने के लिए उसने क्लाउड सीडिंग टेक्नीक अपनाई. इसके तहत आसमान में 1000 से ज्यादा रॉकेट एक साथ दागे गए ताकि मौसम खुल जाए.

ये रॉकेट सिल्वर आयोडाइड और क्लोराइड से भरे हुए थे. इससे दूरदराज के बादल भी आसपास आ जाते हैं और जमकर बारिश होती है. बाद में मौसम खुल जाता है और स्मॉग भी नहीं दिखता. अक्सर बड़ी पॉलिटिकल मीटिंग्स या आयोजन के दौरान भी चीन की राजधानी पर इस घालमेल का आरोप लगता रहा. 

Advertisement

अमेरिका पर वियतनाम का आरोप
माना जाता है कि अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के समय मानसून को बढ़ाने के लिए क्लाउड सीडिंग को हथियार बनाया था. इससे वियतनामी सेना की सप्लाई चेन बिगड़ गई थी क्योंकि ज्यादा बारिश के कारण जमीन दलदली हो चुकी थी. हालांकि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिल सके कि ये अमेरिकी चाल थी या कुदरती कहर. 

weather warfare  weather modification  in america china and russia amid earthquake in turkey and syria
 क्लाउड सीडिंग को लेकर चीन पर आरोप लगते रहे हैं. (Unsplash)

क्लाउड सीडिंग पर लगा रहा पैसा
चीन की आधिकारिक न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार साल 2012 से 2017 के बीच देश ने लगभग डेढ़ बिलियन डॉलर का खर्च वेदर मॉडिफिकेशन से जुड़ी रिसर्च पर किया.

इस आधिकारिक बयान के बाद से ही अमेरिका चीन पर हमलावर हो गया. उसने भारत को लेकर चिंता जताते हुए कहना शुरू कर दिया कि चीन सारे बादल चुराकर भारत को सूखाग्रस्त बना सकता है. बाकी देश भी चीन के इरादे पर चिंतित होने लगे. नेशनल ताइवान यूनिवर्सिटी ने दावा किया कि भले ही चीन के इरादे घरेलू लग रहे हों, लेकिन इसका खतरनाक असर पड़ोसी देशों पर हो सकता है. मुमकिन है कि अनजाने में ही चीन पड़ोसी देशों के मौसम पर असर डालने लगे, जिससे सूखा, अकाल या बाढ़ जैसे हालात बन जाएंगे. 

Advertisement

संयुक्त राष्ट्र काफी पहले दे चुका चेतावनी
देश वेदर मॉडिफिकेशन तकनीक को एक-दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं, इसपर यूनाइटेड नेशन्स काफी पहले अलर्ट हो चुका था. अक्टूबर 1987 में ही यूएन ने ENMOD (प्रोहिबिशन ऑफ मिलिट्री ऑर एनी अदर होस्टाइल यूज ऑफ इनवायरनमेंटल मॉडिफिकेशन टेक्नीक्स) ड्राफ्ट किया. ये ड्राफ्ट कहता है कि कोई भी देश मौसम के जरिए दूसरे देश को परेशान नहीं कर सकता है.

हालांकि चेतावनी की अनदेखी हो रही होगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. हाल ही में अमेरिकी आसमान में जिस चीनी जासूसी गुब्बारे को गिराया गया, उसके बारे में भी अब कहा जा रहा है कि वो स्पाई नहीं, बल्कि मौसम से छेड़छाड़ के लिए भेजे गए गुब्बारे थे.

Advertisement
Advertisement