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ट्रंप का भीड़तंत्र!…उनके लिए पलक पांवड़े बिछानेवालों का क्या?

अमेरिका के लोकतंत्र का पूरी तरह से वस्त्रहरण हो गया है. कल तक अमेरिका दुनिया को लोकतंत्र और मानवता की शिक्षा दे रहा था. उनका बर्ताव कुछ ऐसा था मानो दुनियाभर के लोकतंत्र के वे ही एकमात्र रखवाले अर्थात चौकीदार हैं.

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फाइल फोटो)
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ट्रंप ने चुनावी तंत्र पर हेराफेरी का आरोप लगाया
  • अमेरिका दुनिया को लोकतंत्र और मानवता की शिक्षा दे रहा
  • अमेरिका और हिंदुस्तान के लोकतंत्र में कोई समानता नहीं

अमेरिका के लोकतंत्र का पूरी तरह से वस्त्रहरण हो गया है. कल तक अमेरिका दुनिया को लोकतंत्र और मानवता की शिक्षा दे रहा था. उनका बर्ताव कुछ ऐसा था मानो दुनियाभर के लोकतंत्र के वह ही एकमात्र रखवाले अर्थात चौकीदार हैं. इराक से लेकर लीबिया तक के देशों की संप्रभुता को लेकर लोकतंत्र के खतरे में आने की बात करना. वहां सद्दाम हुसैन और कर्नल गद्दाफी जैसे सत्ताधीश लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं, ऐसे आरोप लगाकर मामले को उछालकर उस देश के लोगों को छिन्न-भिन्न कर देना. 

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वहां की सेना में बगावत करवाना, बगावत करवा के सद्दाम और गद्दाफी को मार डालना और उस देश के रक्तरंजित लोकतंत्र का मालिक बनना, अमेरिका का यह खेल कई वर्षों से चल रहा है. उसी अमेरिका में लोकतंत्र की क्या हालत है और उस देश में ट्रंप जैसे सत्तालोलुप लोग हैं, ये दुनिया ने देखा.  ट्रंप की राष्ट्राध्यक्ष पद के चुनाव में हार हो गई.

अमेरिका की समझदार जनता ने उन्हें सत्ता से उतार दिया. ट्रंप का व्हाइट हाउस का कार्यकाल चौबीस घंटे चलनेवाला बंदरपन ही था. उस बंदरपन का अंत लोकतांत्रिक मार्ग से हो गया है. पहले ही ऐसा अनुमान लगा लिया गया था कि ट्रंप आसानी से सत्ता छोड़ने के लिए तैयार नहीं होंगे. वो आखिरकार सच साबित हुआ. उन्होंने चुनावी तंत्र पर हेराफेरी का आरोप लगाया.

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  ट्रंप न्यायालय में गए वहां भी उन्हें फटकार लगी. अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि चुनावी नतीजों को बिगाड़ने के लिए राष्ट्रपति ट्रंप ने पूरे यंत्र पर दबाव बनाया था. भ्रष्टाचार जैसे आरोप लगाने का प्रयास किया, लेकिन ट्रंप सफल नहीं हुए. ये सारे लोग ट्रंप द्वारा चुने गए लोग ही थे. लेकिन सारे लोगों ने कहा कि हमारा संबंध अमेरिका के संविधान से है.

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ये सारे तरीके असफल हो जाने पर ट्रंप ने लोगों को उकसाया. ट्रंप की ‘भीड़’ सीधे अमेरिका की संसद में घुस गई. उन्होंने संसद पर हमला किया. अमेरिका की संसद में गोलीबारी करके परिस्थिति को नियंत्रण में लाना पड़ा. ये धक्कादायक है. अमेरिका की संसद में जो हिंसाचार हुआ उसको लेकर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत दुख व्यक्त किया है.

PM मोदी कहते हैं वॉशिंगटन में दंगे और हिंसा की खबरों को देखकर मैं व्यथित हो गया हूं! सत्ता का सहजता और शांतिपूर्ण तरीके से हस्तांतरण होना आवश्यक है. लोकतंत्र की प्रक्रिया को विकृत करने की अनुमति नहीं दी जा सकती!! हमारे प्रधानमंत्री की पीड़ा को समझना चाहिए. लेकिन कल तक इन्हीं ट्रंप से गलबहियां कर दुनिया के नेता घूम रहे थे.

जॉनसन बोले ट्रंप को मिलना चाहिए शांति का नोबेल पुरस्कार

इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन तो दुनियाभर में ये कहते हुए घूम रहे थे कि राष्ट्रपति ट्रंप को शांति का नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए. जॉनसन साहेब को ऐसा क्यों लगा कि ट्रंप शांति के प्रतीक हैं? इसी शांति के प्रतीक ने किराए के गुंडों को आगे कर लोकतंत्र के मंदिर में घुसाया और आतंक लाया. अमेरिकी संसद में हुई गोलीबारी में चार लोगों की मौत हो गई है. अमेरिका में '9/11' का हमला हुआ. वो हमला आतंकवादियों ने किया था. उस हमले से भी अमेरिका उबर आया.

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इसके हमलावर ओसामा बिन लादेन को उन्होंने पाकिस्तान में घुसकर मारा और पाताल में ले जाकर गाड़ दिया. लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने लादेन की विरासत चलाते हुए अमेरिका की संसद पर ही हमला करवा दिया है. विडंबना ये है कि राष्ट्रपति ट्रंप जैसे लोग सत्ताधीश के रूप में चुने जाते हैं. झूठे आश्वासनों, झूठे नारों और लफ्फाजी तथा बंदरपन पर लोग बहक जाते हैं और भूल कर बैठते हैं. अमेरिका आज उसी की कीमत चुका रहा है. 

ट्रंप समर्थकों ने  मचाया उत्पात

जो बाइडेन को अमेरिका का नया अध्यक्ष चुना गया है. जब बाइडेन को सत्ता हस्तांतरण करने की प्रक्रिया चल रही थी उसी समय ट्रंप समर्थकों ने उत्पात मचाया. इस पर बाइडेन कहते हैं, ‘आज का उत्पात असली अमेरिका नहीं है. ये उत्पात मचानेवाले देशद्रोह की चौखट पर खड़े हैं. बाइडेन का कहना सही है. लेकिन उन देशद्रोहियों के भीड़तंत्र का नेतृत्व खुद अमेरिका के अध्यक्ष ही कर रहे थे. इन अध्यक्ष को क्या सजा देंगे? वास्तव में ट्रंप जैसे उन्मादी, मतवाले और चरित्रहीन इंसान का राष्ट्राध्यक्ष पद पर चुना जाना ही अमेरिकी लोकतंत्र का दिवालियापन था. लेकिन सर्वोच्च पद पर विराजमान ट्रंप दिमाग के दुश्मन थे.

राष्ट्रपति ट्रंप बहुत बड़े अमीर और निवेशक हैं लेकिन पैसा होने से अक्ल भी आ जाती है, ऐसा नहीं होता. ट्रंप की उपस्थिति में ‘हाउडी मोदी’ जैसे समारोह अमेरिका में संपन्न हुए. इसके बाद अहमदाबाद में 50 लाख लोगों को जुटाकर ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया. ट्रंप का बर्ताव और व्यवहार कभी सुसंस्कृत मनुष्य जैसा नहीं रहा.

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हिंदुस्तान के लोकतंत्र से अमेरिका और ब्रिटेन को लेना चाहिए सबक

ट्रंप ने अब सत्ता हस्तांतरण को मान्यता दे दी है. इसे दुनिया पर बड़ा उपकार ही कहना होगा! हिंदुस्तान के लोकतंत्र से अमेरिका और ब्रिटेन को सबक सीखना चाहिए. चुनाव हारने के पश्चात इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह जैसे हर नेता ने शांतिपूर्वक सत्ता का हस्तांतरण कर दिया. कल मोदी की हार लोकतांत्रिक तरीके से हुई तो वे भी इसी परंपरा का निर्वहन करेंगे.

इसलिए प्रिय मित्र होने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप के भीड़तंत्र को गलत बताया है. अमेरिका और हिंदुस्तान के लोकतंत्र में कोई समानता नहीं है. विसंगतियां ही ज्यादा हैं. हमारे यहां चुनाव में हार न होने पाए इसके लिए हिंसाचार और धर्म द्वेष की राजनीति की जाती है. केंद्रीय जांच एजेंसी का प्रयोग करके विरोधियों को बेबस कर देने से उन पर गोली चलाने की नौबत ही नहीं आती. ट्रंप हमारे देश में आकर क्या सीखे? अमेरिका की संसद में जो हुआ वैसा दुनिया के किसी देश में न हो. प्रधानमंत्री मोदी ने अब ट्रंप का निषेध व्यक्त किया है. हालांकि, इसके पहले उन्होंने ट्रंप का गुणगान किया, इसका दुख भी उन्हें होता ही होगा!

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