महरानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के तुरंत बाद उनके सबसे बड़े बेटे चार्ल्स स्वतः ही ब्रिटेन के राजा बन गए. वह दुनियाभर में ब्रिटेन के किंग चार्ल्स तृतीय के रूप में जाने जा रहे हैं. हालाकि, उनकी आधिकारिक रूप से ताजपोशी 2023 में हो सकती है. ब्रिटेन की किंगशिप के अलावा उनके पास दर्जनभर से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्ष की जिम्मेदारी भी है. लेकिन इसके साथ ही चार्ल्स ऐसे उत्तराधिकारी भी रहे, जिन्हें ब्रिटेन की गद्दी तक पहुंचने में सबसे ज्यादा समय लगा.
ब्रिटेन में संवैधानिक राजशाही की भूमिका
ब्रिटेन में कानून द्वारा सीमित राजशाही प्रणाली है. ब्रिटेन का राजा या रानी हेड ऑफ स्टेट तो होता है, लेकिन उनकी शक्तियां पूरी तरह से औपचारिक या प्रतीकात्मक होती हैं. इसका मतलब है कि ब्रिटेन के सरकारी कामकाज में उनका हस्तक्षेप बहुत कम होता है. ब्रिटेन के किंग के रूप में चार्ल्स तृतीय को अब राजनीतिक रूप से तटस्थ रहने की जरूरत है. क्योंकि ब्रिटेन की गद्दी पर बैठने वाला शख्स देश के मामलों में अधिक मुखर होकर टिप्पणी नहीं कर सकता. यह ब्रिटेन की राजशाही के ही नियम है कि देश के शासक का झुकाव किसी भी राजनीतिक पार्टी की ओर नहीं होना चाहिए. सरकार से जुड़े मामलों पर शासक को प्रधानमंत्री के जरिए ही दैनिक या साप्ताहिक तौर पर जानकारी दी जाती है.
किंग चार्ल्स तृतीय की शक्ति के मायने
ब्रिटेन के अलावा जहां तक कॉमनवेल्थ देशों का सवाल है, वहां संवैधानिक राजशाही है. इन देशों में भी राजा की शक्तियां सांकेतिक होती हैं और राजनीतिक फैसलों में उनका सीधा दखल नहीं होता. राजनीतिक फैसले उन देशों की चुनी गई संसद या चुने गए प्रधानमंत्रियों द्वारा ही लिए जाते हैं. राजा या शासक सिर्फ स्टेट का प्रमुख होता है, सरकार का प्रमुख नहीं होता. इसका मतलब है कि सरकारी कामकाज में राजशाही का दखल नहीं होता.
राजशाही के हालांकि कुछ संवैधानिक कर्तव्य होते हैं, जिसमें से एक नई सरकारों को मंजूरी देना है. ब्रिटेन में भी राजा औपचारिक रूप से संवैधानिक प्रणाली से चुने गए प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है. इसके लिए चुनाव जीतने वाली पार्टी के प्रमुख को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाता है. इसके साथ ही कुछ निश्चित अधिकारियों की नियुक्ति करता है या उन्हें स्टेट ऑनर देता है. लेकिन ब्रिटेन से बाहर गवर्नर-जनरल के रूप में एक राजशाही प्रतिनिधि की नियुक्ति की जाती है, जो इन कर्तव्यों को पूरा करता है.
इसके अलावा स्टेट ओपनिंग या संसदीय वर्ष की शुरुआत के समय किंग का संबोधन होता है. संसद के जरिए कानून पारित होने पर उस पर औपचारिक मुहर लगाने का काम भी किंग या क्वीन का होता है.
हालांकि, कुछ असामान्य परिस्थितियों में किंग के पास कुछ आरक्षित शक्तियां होती हैं, जिसके तहत वह एकतरफा रूप से चुनी गई सरकार को बर्खास्त कर सकता है. लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ऐसा बेमुश्किल ही देखने को मिला है.
किंग चार्ल्स सिर्फ ब्रिटेन के ही नहीं बल्कि कनाडा और एशिया प्रशांत के कुछ देशों सहित 14 अन्य देशों के भी शासक होंगे. इन देशों को कॉमनवेल्थ देशों के तौर पर जाना जाता है. ये उन 54 देशों का हिस्सा थे, जिन पर कभी ब्रिटेन का शासन था लेकिन इनमें से अब अधिकतर में राजशाही नहीं है.
बता दें कि किंग बनने से पहले चार्ल्स पर्यावरणीय मुद्दों पर काफी मुखर रहे हैं. उन्होंने क्लाइमेट चेंज जैसे मामलों पर गंभीरता से काम करने की वकालत की है. वह 400 से अधिक चैरिटी ग्रुप से जुड़े रहे हैं. वह पारंपरिक आर्किटेक्चर को दोबारा से जीवंत करने और ऑर्गेनिक कृषि के पक्षधर रहे हैं. लेकिन साथ में कई वाविदों से भी जुड़े हुए हैं.