सड़कों पर मुफ्त खाने के लिए लंबी कतारें, एक झटके में तबाह हुए लोग और हजारों बैंक पर लगे ताले... ये अमेरिका का वो मंजर है जिसे याद करके न सिर्फ सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका सिहर जाता है बल्कि दुनिया के कई देश भी खौफ में आ जाते हैं. दरअसल, हम बात कर रहे हैं अमेरिका में 1929 में आई आर्थिक मंदी की, जिसने अमेरिका को बुरी तरह से तोड़ दिया था. ये किस्सा आज इसलिए मौजूं हैं क्योंकि एक बार फिर अमेरिका के बाजार में हाहाकार है. निवेशकों के अरबों रुपये स्वाहा हो गए हैं और बेरोजगारी का संकट बढ़ गया है.
अमेरिका बाजारों में हाहाकार और मंदी की आहट
राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ की धमकियों के बीच अमेरिकी बाजार जो कुछ महीने पहले ही ऊफान पर था वो अचानक धड़ाम हो गया है. सोमवार से शेयर बाजार में जोरदार गिरावट देखी गई. नेस्डैक कंपोजिट, एसएंडपी में बड़ा नुकसान देखने को मिला. टेस्ला के शेयर भी धड़ाम हो गए. इस गिरावट से अरबों का नुकसान हुआ है और इसका असर दुनिया भर की बाजार में देखने को मिला है. कई एक्सपर्ट मंदी की चेतावनी दे रहे हैं. लेकिन मंदी एक ऐसा शब्द है जिसको सुनते ही अमेरिका सिहर जाता है. इसके पीछे एक कड़वी कहानी है...
बात 1929 की है, जब अमेरिका में आई तबाही
आज से करीब एक शताब्दी पहले यानी साल 1928 के पतझड़ में अमेरिका के भावी राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर ने घोषणा की- ‘हम आज अमेरिका में इतिहास में पहली बार गरीबी पर अंतिम विजय के काफी करीब हैं.’ अधिकांश अमेरिकी नागरिक उनसे सहमत थे. लोगों ने इससे अच्छी जिंदगी को इससे पहले कभी नहीं जिया था. बेरोजगारी दर केवल 4 फीसदी तक थी यानी हर 100 में 96 लोगों के पास कमाई का जरिया था.
लेकिन इस खुशहाली वाले पल को उस वक्त झटका लगा जब ठीक एक साल बाद वित्तीय दहशत हावी हो गई. न्यूयॉर्क शेयर बाजार टूट गया, कारोबार बंद हो गए, बैंक तबाह हो गए, करोड़पति बर्बाद हो गए और आम नागरिकों ने भी अपनी पूरी जिंदगी की बचत गंवा दी. लोगों ने अपनी नौकरी और घर सब खो दिया. अगले कुछ साल में हर 4 में से एक अमेरिकी बेरोजगार था. फिर ये आर्थिक संकट अमेरिका से आगे जाकर पूरी दुनिया में फैल गया. ये आधुनिक दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी थी, जिसे हम महामंदी या ग्रेट डिप्रेशन के नाम से जानते हैं.
11 हजार बैंक हो गए बंद
इस संकट में फंसकर अगले 4 साल में अमेरिका के करीब 11 हजार बैंक यानी आधे बैंक बंद हो गए. जो बैंक बंद नहीं हुए उसके इस्तेमाल से भी लोग डरने लगे.उद्योग-धंधे ठप हो गए, बैंकों का दिवाला निकलने लगा. बाजार क्रैश के बाद लोगों को अंदाजा हुआ जैसे वे किसी कल्पनालोक में जी रहे थे, फैक्ट्रियां थीं लेकिन उसके प्रोडक्ट को बाजार में खरीदने वाला कोई नहीं था, लोगों की नौकरियां जाने लगीं. किसानों की फसल तैयार थी लेकिन सामान खरीदने वाला कोई नहीं था. हर तरफ तबाही थी. लोगों के पास खाना खाने के पैसे नहीं थे. फ्री खाना देने वाले सेंटर्स में डबलरोटी के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगने लगीं. न्यूयॉर्क शहर में एक दिन में कम से कम 82 हजार भोजन निशुक्ल दिए जा रहे थे. लोग बेघर होकर सड़कों पर आ गए.
इस मंदी के कारण 1929 से 1932 के दौरान वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में 45% की भारी गिरावट आई और अगले एक दशक तक दुनिया के कई देशों को माल सप्लाई के संकट से जूझना पड़ा.
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कब-कब आई दुनिया में आर्थिक मंदी?
#1929 की महामंदी- यह आर्थिक मंदी अमेरिका में शुरू हुई और इसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर पड़ा. शेयर बाजार का पतन, बेरोजगारी और औद्योगिक उत्पादन में गिरावट इसके प्रमुख लक्षण थे. यह मंदी 1939 तक चली.
#1973 का तेल संकट- यह मंदी तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक द्वारा तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण हुई. इसके परिणामस्वरूप, कई विकसित देशों में आर्थिक संकट और उच्च मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ा.
#2002 की मंदी- अमेरिका में डॉट-कॉम बबल के फूटने और 2001 के 9/11 हमले के बाद आई ये मंदी कई साल तक दुनिया को परेशान करती रही. इसमें कई देशों की कंपनियां तबाह हो गई. इस दौरान कई देशों में बेरोजगारी बढ़ी और आर्थिक गतिविधियों में गिरावट आई. शेयर बाजार में भी भारी गिरावट देखी गई. नैस्डेक सूचकांक ने 2000 से 2002 तक लगभग 80% का नुकसान उठाया.
#2008 की मंदी- यह मंदी अमेरिका में हाउसिंग सेक्टर के संकट से शुरू हुई और पूरी दुनिया पर इसका असर हुआ. कई देशों के बैंक तबाह हो गए. इस दौरान कई देशों में आर्थिक विकास में गिरावट आई और बेरोजगारी बढ़ी.
#कोरोना लॉकडाउन- 2019 के अंत से शुरू हुई COVID-19 महामारी के कारण लागू लॉकडाउन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया. इस दौरान, वैश्विक जीडीपी में 3% की गिरावट आई, जो पिछले संकटों की तुलना में अधिक थी. ट्रंप और कमला हैरिस की आर्थिक नीति क्या है?