अर्जेंटीना के जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो को नया पोप चुना गया है. वह लातिन अमेरिकी देशों के पहले व्यक्ति हैं जो पोप बने हैं. उनको पोप फ्रांसिस के नाम से जाना जायेगा.
सेंट पीटर्स में बॉलकोनी में एक कार्डिनल ने घोषणा की, ‘नये पोप को चुन लिया गया.’ इसके बाद नये पोप की पहचान बतायी गयी.
2005 में जब बेनेडिक्ट 16 को पोप चुना गया था तब बर्गोग्लियो दूसरे स्थान पर रहे थे. बेनेडिक्ट 16 ने पिछले महीने ही इस्तीफा दे दिया था.
76 वर्षीय पोप फ्रांसिस ने अपना जीवन अर्जेंटीना में गुजारा है जहां वह विभिन्न चर्च की देखरेख करते रहे.
गौरतलब है कि मंगलवार को नये पोप को चुनने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. लेकिन कई राउंड के मतदान के बाद भी पोप का चयन नहीं हो पाया था. बुधवार देर रात (भारतीय समयानुसार) चिमनी से सफेद धुंआ निकलते ही सिस्टाइन चैपल के बाहर मौजूद लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई.
कैसे होता है पोप का चुनाव
वेटिकन सिटी में पोप को चुनने की प्रक्रिया बेहद पेचीदा है. दुनियाभर से चुने गए कार्डिनल्स को वेटिकल सिटी बुलाया जाता है. नियम ये है कि इन सभी की उम्र 80 साल से कम होनी चाहिए. इस बार 48 देशों के 115 कार्डिनल अगले पोप का चुनाव करने जुटे हैं. जिनमें से पांच भारत से पहुंचे हैं.
पोप चुनने की पूरी कवायद आठ चरणों में पूरी होती है. सबसे पहले सारे कार्डिनल्स चैपल में इकट्ठा होते हैं. उसके बाद चैपल के एक कमरे में शुरू होता है अगले पोप के लिए चुनावी मैराथन.
तीन-तीन कार्डिनलों के तीन समूह बनाए जाते हैं जिनके ऊपर अलग अलग काम का जिम्मा होता है. पहला ग्रुप बैलेट पेपर की गिनती करता है. दूसरा ग्रुप दोबारा गिनती करता है जबकि तीसरे ग्रुप पर कार्डिनलों से वोटिंग के बाद बैलेट इकट्ठे करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है.
इसके बाद शुरू होता है वोटिंग का काम. प्रत्येक कार्डिनल शपथ लेकर बैलेट पर अपनी पसंद का नाम लिखता है और फिर उसे एक प्लेट में रख देता है. कार्डिनलों की पहली टीम का एक मेंबर ये तय करता है कि सारे वोटर अपना वोट डाल दें. इसके बाद दूसरा मेंबर बैलेट का नाम नोट करते दूसरे मेंबर को देता है. दूसरा मेंबर भी यही काम करके तीसरे मेंबर को देता है.
तीसरे कार्डिनल की ये जिम्मेदारी होती है कि वो दूसरे मेंबर के नाम को जोर से बोलकर सबको बताए और फिर उसे सुई से एक धागे में पिरो दे. वोटिंग की ये प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक किसी एक उम्मीदवार को दो तिहाई यानी 77 वोट नहीं मिल जाते.
इस दौरान हर बार के वोटिंग में इकट्ठा बैलेट को विशेष रसायन के साथ भट्टी में डाल दिया जाता है जिसको जलाने पर चिमनी से काला धुंआ निकलता है. जिसका मतलब है कि पोप का चुनाव अब तक नहीं हो पाया है.
जब पोप के चयन की ये प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो बैलेट पेपर बिना केमिकल के जला दिए जाते हैं जिससे चिमनी से सफेद धुआं बाहर आता है. चुनाव के फौरन बाद पोप को अपना नया नाम भी चुनना पड़ता है लेकिन उन्हे अपने से पहले वाले पोप का नाम रखने की मनाही होती है.