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जानें नवाज शरीफ को...

नवाज शरीफ स्टील का कारोबार किया करते थे. सरकार ने उस स्टील इंडस्ट्री पर कब्जा कर लिया. शरीफ उस उद्योग को वापस लेने के लिए सियासत में आए थे और सियासत के ही बनकर रह गए.

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नवाज शरीफ
नवाज शरीफ

पाकिस्तान में तीसरी बार वजीरे आजम का ताज पहनने जा रहे मियां मुहम्मद नवाज शरीफ को ‘पंजाब का शेर’ कहा जाता है. उन्होंने भारत के साथ अमन का दौर वापस लाने का वादा किया है और उन्हें देश की छिली-कटी अर्थव्यवस्था पर मरहम लगाने वाले हाथ के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन उन्हें तालिबान के प्रति नरम भी माना जाता है.

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इस्पात कारोबारी नवाज फौलादी हौसले के साथ पाकिस्तान की सत्ता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. 1999 में बगावत के बाद सत्ता से बेदखल किए जाने और फिर जेल और निष्कासन का दुख झेलने वाले इस शख्स के लिए इतने तूफानी तरीके से सियासत की चोटी पर पहुंचना आसान नहीं था.

1980 के दशक से ही नवाज शरीफ पाकिस्तान की सियासत के बेहद अहम किरदार रहे हैं. लेकिन, ये सियासत नवाज का मकसद नहीं थी. यूं कहें कि बस एक इत्तेफाक था और सब होता चला गया. असल में शरीफ परिवार का स्टील उद्योग था और सरकार ने उस पर कब्जा कर लिया था. नवाज शरीफ अपने उस उद्योग को ही वापस लेने के लिए सियासत में आए थे.

1980 में पाकिस्तान के पंजाब में गुलाम जिलानी खान गवर्नर थे. उन्हें नए युवा नेताओं की तलाश थी. नवाज उसी तलाश का नतीजा थे और जल्दी ही नवाज शरीफ पंजाब प्रांत के वित्त मंत्री बना दिए गए. अगले ही साल 1981 में जिया उल हक के सलाहकार बोर्ड में शामिल कर लिए गए.

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फिर तो सियासत का ऐसा सफर शुरू हो गया कि 1990 में प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए. शरीफ दो बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे. साल 1990 से 1993 तक और 1997 से 1999 तक.

सियासत के इस मैदान में नवाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना के भी बड़े अनोखे रिश्ते रहे हैं. कभी सेना के सहारे ही सत्ता की कुर्सी मिली, तो कभी सेना ने ही सत्ता से बेदखल भी किया. जेल गए, देश-निकाला तक मिला. लेकिन हर लड़ाई के बाद आज फिर से पाकिस्तान की गद्दी उन्हें पुकार रही है. पाकिस्तान में जम्हूरियत की जंग में एक बार फिर से शरीफ हीरो हैं.

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