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अमीर देशों ने शरणार्थियों से छुटकारा पाने का खोजा खतरनाक तरीका, हजारों मील दूर अफ्रीकी देशों में छोड़ दिया जाएगा

ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने अप्रवासियों को चेतावनी दी है कि अवैध तरीके से देश पहुंचने पर उनके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा. हफ्तेभर के भीतर या तो वे अपने देश डिपोर्ट हो जाएंगे या फिर उन्हें रवांडा भेज दिया जाएगा. लेकिन तुर्की, सीरिया या अफगानिस्तान से भागे हुए लोग रवांडा क्यों भेजे जाएंगे? इसके पीछे ब्रिटेन की बेहद विवादित नीति काम कर रही है.

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घुसपैठ रोकने के लिए देश कर रहे कई कोशिशें (सांकेतिक तस्वीरः Getty Images)
घुसपैठ रोकने के लिए देश कर रहे कई कोशिशें (सांकेतिक तस्वीरः Getty Images)

सबसे पहले समझते हैं कि ब्रिटिश पीएम को क्यों अचानक सख्त होना पड़ा. बीते कुछ दशकों में दुनिया के कई देशों में गरीबी और भीतरी लड़ाइयां बढ़ीं. ऐसे में वहां से लोग उन देशों की तरफ आने लगे, जहां शांति और स्थिरता मिले. यूरोपियन देशों समेत अमेरिका और यहां तक कि भारत भी एक चॉइस रहा. ब्रिटेन भी इसी का हिस्सा रहा, हालांकि यहां की पॉलिसी ज्यादा सख्त होने के कारण घुसपैठियों को ज्यादा परेशानी होती थी. यही वजह है कि बाकी देशों की तुलना में वहां पर कम ही लोग आ रहे थे. 

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कोरोना के दौरान बढ़ता गया अवैध घुसपैठ

कोविड के दौरान इस ट्रेंड में बदलाव हुआ. ब्रिटेन आने वाले लोग भी तेजी से बढ़े. इस बार ये लोग जमीन या हवाई जहाज की बजाए दूसरे रास्ते से आ रहे थे. वे नाव से ब्रिटेन पहुंचने लगे. अकेले साल 2022 में ही 45 हजार से ज्यादा लोग पानी के रास्ते ब्रिटेन पहुंचे. इनमें से ज्यादातर लोग अफगानिस्तान, ईरान, इराक और सीरिया से थे. इनमें से बहुत से लोगों को वैध शरण दे दी गई. लेकिन संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में पीएम सुनक ने कहा है कि या तो लोग वैध तरीके से आएं और कागज जमा कराएं या उन्हें रवांडा भेज दिया जाएगा. 

रवांडा भेजने की नीति बनाई

ब्रिटिश नेशनलिटी एंड बॉर्डर्स एक्ट के मुताबिक उन्हीं लोगों को शरण मिल सकती है, जो वैध ढंग से आए हों और यूरोप के किसी देश के रहने वाले हों. लेकिन ऐसा है नहीं. ज्यादातर लोग युद्ध में घिरे देशों से भागकर आए हैं. ब्रिटेन उन्हें वापस भगाकर खुद को क्रूर नहीं दिखा सकता. यही वजह है कि उसने रवांडा के साथ ऐसा करार किया जिससे वहां आए अवैध लोग रवांडा डिपोर्ट हो जाएं.

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ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक सत्ता में आने के बाद से शरणार्थियों को लेकर सख्त दिख रहे हैं. (AP)

पांच सालों के लिए हुआ एग्रीमेंट

यूनाइटेड किंगडम और रवांडा के बीच अप्रैल 2022 में इस असाइलम पॉलिसी पर एग्रीमेंट हुआ. इसे इकोनॉमिक डेवलपमेंट पार्टनरशिप कहा गया. इसके तहत यूके पहुंचे लोगों को अवैध पाया जाने पर उन्हें लगभग साढ़े 6 हजार किलोमीटर दूर भेज दिया जाएगा. वहीं पर उन्हें या तो शरण दी जाएगी या आगे की प्रक्रिया पर सोचा जाएगा. ये करार 5 साल के लिए है. 

बदले में रवांडा को क्या मिलेगा

सवाल ये है कि रवांडा जो खुद गरीबी और ड्रग्स की समस्या से जूझ रहा है, वो अपने यहां अवैध लोगों को शरण देने को क्यों राजी हुआ. तो इसका जवाब भी उसकी समस्या में है.  यूके ने इसके लिए रवांडा को 120 मिलियन पाउंड दिए. इन पैसों से रवांडा शरण चाहने वालों के लिए घर, काम का बंदोबस्त करेगा, जब तक कि उनके ब्रिटेन में शरण लेने का आवेदन स्वीकार न हो जाए. बाकी पैसों को वो अपने वेलफेयर में लगा सकता है. इससे पहली नजर में दिख रहा है कि रवांडा के लिए भी सौदा फायदे का है.

मानवाधिकार संस्थाओं ने जताई आपत्ति

15 जून 2022 को ब्रिटेन से रवांडा के लिए ऐसी पहली फ्लाइट जाने वाली थी जिसे रोकना पड़ा. असल में यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स ने इसपर ऐतराज जताया था. उसका कहना था कि खुद ही परेशानी में जी रहे देश में शरण के लिए  लोग पहुंचे तो अफरातफरी मच जाएगी. युद्ध से बचकर भागे हुए लोग नए सिरे से लड़ाई में घिर जाएंगे. 

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रवांडा खुद ही गरीबी और अस्थिरता से जूझता देश है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

कैसे हैं रवांडा के हालात

रवांडा में मानवाधिकार को लेकर हमेशा से शिकायतें आती रहीं. ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) नाम की एनजीओ के मुताबिक रवांडा में रहने वाले लोग अपने-आप में परेशान हैं. वहां महिलाएं, बच्चे और एलजीबीटीक्यू लगातार निशाने पर रहे. HRW के मुताबिक अपना गला छुड़ाने के लिए ब्रिटेन जान-बूझकर युद्ध से भागे लोगों को रवांडा भेज रहा है. यहां तक कि वहां की सरकार रवांडा को सेफ थर्ड कंट्री की तरह बता रही है, जबकि है इसका उल्टा.

इससे होगा कि रवांडा में पहले से मौजूद तनाव और बढ़ जाएगा. मूल निवासियों और इंतजार करने के नाम पर भेजे हुए लोगों में संघर्ष के हालात भी पैदा हो सकते हैं. ब्रिटेन पर आरोप लग रहा है कि उसने पैसों का लालच देकर रवांडा को खरीद लिया और उसे शरणार्थियों से कोई मतलब नहीं. 

ऑस्ट्रेलिया पहले ही कर चुका एग्रीमेंट

ठीक इसी तरह का एग्रीमेंट ऑस्ट्रेलिया ने भी पापुआ न्यू गिनी देश के साथ किया था. उसने भी अपने यहां आए अवैध शरणार्थियों को कुछ समय के लिए कहकर पापुआ न्यू गिनी डिपोर्ट कर दिया. साल 2013 से 2021 के बीच हजारों लोग असालइम प्रोसेसिंग के तहत प्रशांत महासागर में स्थित इस द्वीपीय देश गए. वहां जाकर वे नई तकलीफों से घिर गए. वहां न रहने के लिए मकान थे, न खाने के लिए पैसे. यहां तक कि दूसरे देशों से पहुंचे शरणार्थी तस्करी का शिकार होने लगे.

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ह्यूमन राइट्स वॉच संस्था ने माना कि बेहद खराब हालात में रहते हुए लोग नए सिरे से भागने की कोशिश करने लगे. बहुत से लोगों ने खुदकुशी कर ली और बहुत से लोग गायब हो गए. 

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भारत में भी अवैध घुसपैठियों की संख्या कम नहीं. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

अमीर देश अपना सकते हैं ये रास्ता!

डर जताया जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया की देखादेखी ब्रिटेन ने ऐसा किया और अब बहुत से यूरोपियन देश भी यही ट्रेंड अपनाने वाले हैं. कथित तौर पर डेनमार्क भी रवांडा और युगांडा देश अफ्रीकी देशों से बातचीत कर रहा है कि उनके यहां पहुंच लोग इन देशों में भेज दिए जाएं. ये कुछ वैसा ही होगा, जैसे पहले से भरे हुए घरों में बिना तैयारी के और मेहमान भेज दिए जाएं. किसी के पास भी न तो भरपेट खाने को होगा, न ही मेडिकल केयर मिलेगी. बिल्कुल अलग कल्चर से आए होने के कारण अविश्वास बढ़ेगा जिससे संघर्ष बढ़ता जाएगा. 

घुसपैठ रोकने के लिए नए सिरे से तैयारी

लोगों को अवैध तरीके से देश में आने से रोकने के लिए हाल में कई देशों ने नए-नए तरीके अपनाए. जैसे आमतौर पर उदार कहलाने वाले देश फिनलैंड ने अपनी सीमाओं की घेराबंदी शुरू कर दी. वो कंटीली बाड़ लगवा रहा है ताकि पड़ोसी देश रूस से शरणार्थी वहां न आएं. रूस-यूक्रेन लड़ाई के बीच फिनलैंड आने वाले रूसियों की संख्या एकदम से बढ़ गई है और फिनलैंड की अपना आबादी कम दिखने लगी है. इसी से बचने के लिए वो फेंसिंग करवा रहा है. बहुत से देश नई नीतियां बना रहे हैं ताकि वे उदार तो लगें लेकिन उनके अपने देश पर कोई बोझ न पड़े, जैसे ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और डेनमार्क. 

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