कोविड के दौरान लगभग 2 सालों तक यात्राएं रुकी रहीं. देशों ने अपने बॉर्डर बंद कर रखे थे. ऐसे में टूरिज्म भी घटकर काफी कम हो गया. चीन में कोरोना ने भारी आतंक मचा रखा था. इसके बाद भी साल 2019 से लेकर अगले दो सालों तक इसी देश ने विदेशी ट्रैवल पर सबसे ज्यादा खर्च किया. इसके बाद अमेरिका और फिर जर्मनी, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और यूएई का नाम आता है.
स्टेटिस्टा रिसर्च डिपार्टमेंट की इसी साल की ये रिपोर्ट बताती है कि चीन ने आउटबाउंड ट्रैवल यानी बाहर की यात्राओं के मामले में दूसरे नंबर पर खड़े अमेरिका से लगभग दोगुनी रकम खर्च की.
चीन के लोग करते हैं सबसे ज्यादा यात्रा
चीन के लोग घूमने में भी सबसे आगे रहे. वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गेनाइजेशन (UNWTO) के मुताबिक, साल 2019 में चीन के लगभग 160 मिलियन लोगों ने विदेश यात्रा की. वहीं इस लिस्ट में 10 नंबर तक भारत कहीं भी नहीं. UNWTO की मानें तो चीन के लोग अपनी लंबी और खर्चीली यात्राओं के लिए जाने जाते हैं. वे अक्सर एक ट्रिप पर एक पूरा देश देखने पर यकीन करते हैं. ऐसे में सवाल आता है कि बॉर्डर शेयर करने के बाद भी भारत और उसमें यात्रा को लेकर इतना फर्क क्यों है. या फिर कोई भी एशियाई देश ट्रैवल के मामले में चीन को टक्कर क्यों नहीं दे सका.
मिडिल क्लास के पास पैसों की किल्लत नहीं
बहुत से लोग इसके पीछे चीन की इकनॉमिक ग्रोथ को वजह मान सकते हैं. ये एक वजह ठीक भी है. सत्तर के दशक के बाद से चीन में भारी बदलाव हुए और मिडिल क्लास बढ़ता गया. थिंक टैंक मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट के मुताबिक, साल 2000 में वहां पर मिडिल क्लास आबादी 4 प्रतिशत से बढ़कर 18 सालों में 68 प्रतिशत हो गई. ये दुनिया का सबसे बड़ा कंज्यूमर मार्केट है. इन लोगों के पास सबसे ज्यादा डिस्पोजेबल इन्कम है, यानी रहने-खाने और जरूरतों के पूरा होने के बाद बची वो रकम, जिसे वे ऐशोआराम पर खर्च कर सकते हैं.
भारत का मिडिल क्लास कहां खड़ा है?
चीन में अगर अभी 400 मिलियन आबादी मिडिल क्लास है तो भारत में ये लगभग 60 मिलियन पर ही अटकी है. ऐसे में जाहिर है कि घूमने और खर्च करने के मामले में चीन ही आगे रहेगा. वैसे तो उम्मीद जताई जा रही है कि साल 2030 तक मिडिल क्लास पॉपुलेशन के मामले में हम 475 मिलियन क्रॉस कर जाएंगे, लेकिन हमारे यहां इसकी रफ्तार और डिस्पोजेबल इन्कम दोनों ही उससे कम हैं.
चीन ने लंबे समय तक अकेलापन झेला
इस देश के इतिहास में लंबा आइसोलेशन है. मिंग और क्विंग राजवंश जब इसपर शासन कर रहे थे, तो देश का विकास कमजोर पड़ने लगा. असल में साल 1434 में मिंग डायनेस्टी ने हर तरह के विदेशी ट्रैवल और जहाजों के निर्माण तक पर रोक लगा दी. उन्हें लगता था कि इससे चीन के भीतर गलत ताकतें आने लगेंगी. एक वजह ये भी थी कि वे अपने पैसों को देश के भीतर लगाना चाहते थे ताकि इकनॉमी सुधर सके. 15वीं सदी में लगी इस बंदिश ने लंबे समय तक देश को सबसे काटे रखा, जबकि इससे पहले चीन व्यापार के मामले में काफी आगे था.
19वीं सदी में जब रोकटोक खत्म हुई तो चीन के लोग एकदम से बाहर निकलने लगे. वे दुनिया देखना चाहते थे. इसमें कुछ हाथ चीनी दर्शन का भी था. चीन के फिलॉसफर कन्फ्यूशियस ने अपने देश के पढ़ने और सीखने पर जोर दिया था. उनका चीनी लोगों के जहन पर भारी असर रहा. ये भी उनके घूमने-फिरने के पीछे एक कारण रहा.
सरकार ने दिया बढ़ावा
एक सबसे बड़ी वजह ये है कि खुद चीन की सरकार चाहती थी कि उसके लोग घूमे-फिरें. साल 2013 में वहां की सरकार ने 'चाइना आउटबाउंड टूरिज्म डेवलपमेंट प्लान' लॉन्च किया. वो खुद ट्रैवल एजेंसियों को आर्थिक मदद देने लगी ताकि वो लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित करें. यहां तक कि इस दौरान वीजा-फ्री ट्रैवल के लिए कई देशों से करार हुआ. इसका असर भी हुआ. चाइना टूरिज्म एकेडमी के डेटा के अनुसार, साल 2019 में ही विदेशी यात्रा डेढ़ सौ मिलियन को पार कर गई. इसपर चीनी लोगों ने 277 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा खर्च किया.
भारतीयों के सामने कई मुश्किलें
भारत में इनबाउंड ट्रैवल के लिए काफी सारी स्कीम्स हैं. जैसे साल 2015 में यहां पर देश के भीतर यात्राओं के लिए इनक्रेडिबल इंडिया 2.0 कैंपेन शुरू हुआ. इसमें अच्छी सड़कें, होटल, अस्पताल बनवाए गए ताकि देशी-विदेशी सैलानी आएं. लेकिन आउटबाउंड ट्रैवल के लिए खास कोशिश नहीं दिखती. इंडियन मिनिस्ट्री ऑफ टूरिज्म के डेटा के मुताबिक, साल 2018 में भारतीय लोगों ने विदेशों की लगभग 28 मिलियन ट्रिप्स कीं. ये पहले के मुकाबले ज्यादा तो हैं, लेकिन उतनी नहीं. इसका बड़ा कारण यही है कि हमारे यहां डिस्पोजेबल इन्कम कई घुमक्कड़ देशों की तुलना में काफी कम है.