प्राचीन रोम में अंतिम संस्कार के समय जब परिवार के लोग शोक में डूबे होते, तभी कहीं से एक जोकरनुमा शख्स आ जाता. वो चेहरे पर रंग लगाए होता, अलग तरह के कपड़े पहनता और अजीबोगरीब बातें करता. ये आर्किमिमस होता था. लैटिन में जिसका मतलब है नकल उतारने वाला एक्टर. ये मर चुके शख्स तक की नकल उतारता.
अंतिम संस्कार के समय जोकरों की भूमिका
जोकर आम लोगों की ही नकल नहीं करता था, राजाओं की मौत पर भी उसका यही काम होता. दुख वाले माहौल को हल्का-फुल्का बनाने के लिए आर्किमिमस की खोज हुई. मौत के माहौल को सामान्य बनाने के लिए ये कई बार भद्दे मजाक भी कर जाता, लेकिन उसे हर बात की छूट थी. बैड क्लाउन नाम की किताब में लेखक बेंजामिन रेडफोर्ड बताते हैं कि रोम के सख्त शासकों का जोकर खूब दिल लगाकर मजाक उड़ाते.
19वीं सदी में जोकरों का काम बदला
वे अंतिम संस्कार से हटकर क्लब में पहुंच गए. ये एडल्ट नाइट क्लब होते, जहां जोकरों का काम बदल गया. रंगीन नाक और लंबे कान लगाकर वे द्विअर्थी मजाक करते. ज्यादातर बातें यौन संबंधों के आसपास घूमा करतीं. ये क्लब एक तरह का सर्कस ही थे. तब कई अमेरिकी राज्यों ने जोकरों वाले इन क्लब्स पर बैन लगाने की भी शुरुआत की थी. सर्कस हिस्टोरियन जेनेट डेविस ने तब के सर्कस और जोकरों के रोल पर खूब काम किया था. वे साफ कहते थे कि जोकरों का अपना डार्क साइड है जो कम से कम बच्चों को हंसाने के काम तो नहीं आ सकता.
सर्कस की हुई मेनस्ट्रीमिंग
साल 1890 के आसपास जोकरों को बच्चों से जोड़ा जाने लगा. अमेरिकी शोमैन पीटी बरमैन ने क्लीनअप कैंपेन चलाया. ये सर्कस को ज्यादा साफ-सुथरा बनाने की मुहिम थी. इसमें जंगली जानवर जोड़े गए जो शो दिखाते, रिंगमास्टर शामिल हुए, जो उनपर काबू रखते. सर्कस की मेन ऑडियंस थे बच्चे. क्लब में परफॉर्म करते जोकरों को मुख्यधारा सर्कस से जोड़ दिया गया. इसका मसकद साफ था, ज्यादा से ज्यादा पैसे बनाना. बच्चे आएंगे तो साथ में उनके पेरेंट्स भी आएंगे. इस तरह से रात में क्लबों में थोड़ी-सी भीड़ के आगे भद्दे मजाक करने वाले जोकर हंसाने वाले एक्ट करने लगे.
इसी दौर में कई चैरिटी संस्थाएं आगे आईं और जोकरों को बच्चों के अस्पताल भेजने लगीं ताकि बीमार बच्चे हंस सकें. मैकडोनॉल्ड ने भी इसी समय अपने ब्रांड प्रमोशन के लिए जोकर के पुतले को अपनी पहचान बना लिया. भले ही जोकरों को बच्चों से जोड़ने की मुहिम चल पड़ी थी, लेकिन बच्चे उससे डरते थे.
जोकरों में कुछ तो है असामान्य
साल 2016 में साइंस डायरेक्ट जर्नल में एक स्टडी छपी, जिसमें दुनिया के लगभग सभी कामों के बारे में बताते हुए पूछा गया कि कौन सा काम सबसे डरावना है. इसमें ज्यादातर लोगों ने जोकर को क्रीपी माना. ऑन द नेचर ऑफ क्रीपीनेस नाम से छपे इस अध्ययन में माना गया कि जोकर चूंकि नकली इमोशन ओढ़े हुए होता है तो लोग नहीं जान पाते कि उसके मन में क्या चल रहा है. यही बात उन्हें डरावना बनाती है.
जोकरों से नफरत दिखने लगी
इंटरनेट पर डालिए- आई हेट क्लाउन, और एक के बाद एक लिंक्स खुलते चले जाते हैं. कई सारे पेज हैं, जिनपर लाखों ऐसे लोग हैं, जिन्हें जोकर से डर लगता है. ये डर खुलकर साल 2006 में सामने आया. तब फ्लोरिडा में एक प्रदर्शनी लगी हुई थी, जिसकी थीम थी- क्लाउन अराउंड टाउन. इसमें तरह-तरह के चेहरे-मोहरे वाले जोकरों के पुतले लगे हुए थे. रातोंरात प्रदर्शनी पर हमला हुआ. पुतले तोड़ दिए गए. पेंटिंग्स को आग लगा दी गई. तब पहली बार ध्यान दिया गया कि जोकर एक या दो लोगों को नहीं, बल्कि बहुत से लोगों को डराते हैं.
दो सालों के भीतर ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड ने लगभग ढाई सौ बच्चों पर एक स्टडी की. 4 साल की उम्र से लेकर 16 साल तक के बच्चों पर हुई स्टडी में लगभग सबने माना कि उन्हें जोकरों को देखकर डर लगता है. यहां तक कि सबने जोकर की फोटो देखकर भी डर लगने की बात मानी.
अपराध की दुनिया में आया नाम
जोकरों का ये इरादा नहीं होता. वे आमतौर पर लोगों को हंसाने की कोशिश करते हैं, तब क्या वजह है जो इन्हें देखकर डर का भाव जागता है! इसके पीछे कई कहानियां हैं. क्राइम की दुनिया में कई ऐसे लोग हुए, जिन्होंने जोकर का भेष धरकर हत्या और बलात्कार किए. साल 1960 से 1980 के दौरान जॉन वायन गेसी नाम के अमेरिकी शख्स का नाम इस लिस्ट में सबसे ऊपर है. जॉन अस्पतालों में जोकर बनकर मरीजों को हंसाने का काम करता. वो इतना मशहूर हो चुका था कि कई राज्यों में उसे बुलाया जाता. यहीं वो अपने टारगेट की पहचान कर लेता. जादू या करतब दिखाने के बहाने वो लोगों को फंसाता और रेप करके उनकी हत्या कर देता.
शिकागो के नॉरवुड पार्क टाउनशिप में उसके घर के नीचे ही 26 लाशें मिलीं. जॉन ने माना कि कई लाशों को उसने पास की नदी में फेंक दिया और कुछ को जंगल में. जॉन ने कुल 33 हत्याओं की बात खुद मानी. तब अमेरिकी मीडिया में ये मामला बहुत उठा था. उसे सीरियल किलर क्लाउन कहा गया. इसी समय से जोकरों को लेकर अजीब सा डर लोगों के भीतर बैठने लगा.
साइंस में भी जोकरों से डर का जिक्र
इसे कोर्लोफोबिया कहते हैं. कई देशों में हो चुके अध्ययन मानते हैं कि बच्चों और बड़ों, दोनों ही को जोकरों से कम या ज्यादा डर लगता है. ऐसा क्यों है, इसपर कोई पुख्ता रिसर्च नहीं मिलती, लेकिन 53 प्रतिशत से ज्यादा वयस्कों ने माना कि वे जोकरों से बहुत ज्यादा डरते हैं. ये प्रतिशत बाकी फोबिया से काफी ज्यादा है. जैसे ऊंचाई से बहुत ज्यादा डरने वाले लोग लगभग 3 प्रतिशत हैं. पानी से डरने वाले लोगों की संख्या लगभग 2.3 प्रतिशत है, उड़ान से डरनेवाले भी 5 प्रतिशत से कम हैं. इस लिहाज से देखें तो फोबिया की लिस्ट में कोर्लोफोबिया सबसे ऊपर है.
चेहरा न दिखने से डर लगता है
माना जाता है कि अनिश्चित व्यवहार और असल चेहरे का न दिखना ही लोगों को ज्यादा डराता है. वे नहीं जानते कि हंसाने वाला एक्ट करते हुए जोकर कब उनपर हमला कर सकता है, या फिर कब किसी दूसरी तरह का व्यवहार कर सकता है. यही अनिश्चिता डराती है. जोकरों के चेहरे पर लाल या हरा रंग भी डर पैदा करता है. ये एक तरह का मास्क फोबिया है, जो ज्यादातर लोगों में होता है.