फ्रांस में हमले का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. शनिवार को लियोन शहर में एक पादरी पर हमला हुआ. शाम चार बजे के आसपास का वक्त था, जब पादरी चर्च बंद कर रहे थे. तभी एक हमलावार आया और पादरी को दो गोली मारकर फरार हो गया. घायल पादरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उनका इलाज चल रहा है.
इससे पहले गुरुवार को फ्रांसीसी शहर नीस के एक चर्च में एक महिला समेत तीन लोगों की हत्या कर दी गई थी. हमलावरों ने एक महिला का चाकू से गला काट दिया था. जब यह हमला हुआ, चर्च में अच्छी संख्या में लोग जमा थे. वे सभी प्रार्थना के लिए जुटे थे.
नीस से पहले पेरिस के उपनगरीय इलाके में एक शिक्षक की हत्या कर दी गई थी. फ्रांस में हुए यह सभी हमले पैगंबर मोहम्मद के कार्टून को लेकर छिड़ी बहस के बीच हुए हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति ने पैगंबर के कार्टून छापने के संबंध में अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा का संकल्प लिया है जिसके बाद से मुस्लिम जगत में उबाल आ गया है.
कई देश, खासकर पश्चिमी देशों में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ निंदालेख लिखने की छूट है. ऐसे में सवाल उठता है कि सभी मुस्लिम देश फ्रांस के खिलाफ ही प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं या हिंसा के नाम पर कट्टरपंथी, इस देश को ही निशाने पर क्यों लेते हैं?
क्या है इतिहास?
पश्चिमी यूरोप में फ्रांस एक मुस्लिम बहुल आबादी वाला देश है. इस देश की कुल आबादी 67 मिलियन (6 करोड़ 70 लाख) है. इनमें से पांच मिलियन यानी कि 50 लाख आबादी मुस्लिम समुदाय के लोगों की है. लेकिन मुस्लिम अप्रवासियों को एकीकृत करने की कोशिश कमजोर पड़ रही है.
फ्रांस, जातीय और धार्मिक पृष्ठभूमि को नजरअंदाज करने की बात करता है और सभी नागरिक के एक समान सिद्धांत पर चलने की बात करता है. लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोगों का मानना है कि यहां पर उन लोगों के साथ भेदभाव होता है जो बहुसंख्यक कैथोलिक समुदाय से अलग होते हैं या रहन सहन में उनसे अलग दिखते हैं.
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फ्रांस पर आरोप
फ्रांस में रहने वाले ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग गरीब और अलग-थलग रहने वाले हैं. यहां रहने वाले मुस्लिमों का मानना है कि फ्रांसीसी सरकार इस्लामिक परंपरा की विरोधी है. अरब और अन्य दूसरे देशों के अप्रवासियों को लेकर उनके मन में हमेशा से भेदभाव की भावना रही है. कुल मिलाकर, फ्रांस पर फासीवादी रवैया, नस्लवादी बर्ताव और राजनीतिक फायदे के लिए वैश्विक मूल्यों की अनदेखी के आरोप हैं. हाल में हुए सभी कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादी हमलों को दूसरे देश से आए शख्स और इस्लामिक स्टेट ग्रुप से संबंध रखने वाले फ्रांसीसी नागरिकों द्वारा अंजाम दिया गया है.
इससे पहले 2015 में भी चार्ली हेब्दो के दफ्तर पर कट्टरपंथियों ने हमला किया था और इसमें 12 लोग मारे गए थे. मारे गए लोगों में फ्रांस के कुछ मशहूर कार्टूनिस्ट भी शामिल थे. 7 जनवरी 2015 को चार्ली हेब्दो पर हुए हमलों के बाद फ्रांस में चरमपंथी घटनाओं की एक लहर सी आ गई. जिसके बाद फ्रांस में रेडिकल इस्लाम को काफी बहस हुई और इत तरह की गतिविधियों पर लगाम लगाने की कोशिशें की गई हैं.
मुस्लिम समाज के लोगों का आरोप है कि हाल के दिनों में नेशनल सिक्योरिटी के नाम पर कई मस्जिदें बंद कर दी गईं. बाहरी देशों से इमामों के फ्रांस में आने पर पाबंदी लगाई गई है. मस्जिदों को होने वाली फंडिंग को लेकर फ्रांस सरकार पैनी नजर बनाए हुए है. स्कूलों और दफ्तरों में हिजाब पहनने पर भी रोक है. हालांकि हाल की घटनाओं और मुस्लिम देशों के विरोध को देखते हुए फ्रांस थोड़ा नरमी भी अपना रहा है और कारोबार को वापस पटरी पर लाने की कोशिश कर रहा है.