अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा फैलाने वाला देश है, ये बात एक नई रिपोर्ट में सामने आई है. बुधवार को अमेरिकी सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी गई जिसमें इस बढ़ते संकट से निपटने के लिए राष्ट्रीय रणनीति बनाने का आह्वान किया गया.
इस रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि अमेरिका ने साल 2016 में 42 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन किया. ये प्लास्टिक कचरा चीन के प्लास्टिक कचरे के दोगुने से अधिक और यूरोपियन यूनियन के सभी देशों द्वारा उत्पादित कचरे से भी अधिक था.
औसतन एक अमेरिकी सालभर में 130 किलोग्राम प्लास्टिक कचरे का उत्पादन करता है. वहीं ब्रिटेन, जोकि इस सूची में दूसरे स्थान पर है, प्रति व्यक्ति 99 किलो प्लास्टिक कचरा पैदा करता है. साउथ कोरिया तीसरे स्थान पर है, जहां एक व्यक्ति साल में 88 किलोग्राम प्लास्टिक कचरा पैदा करता है.
‘Reckoning With The US Role In Global Plastic Waste’ नाम की अमेरिकी रिपोर्ट को कांग्रेस ने पेश किया जो कि ‘Save Our Seas 2.0 Act’ का हिस्सा है. दिसंबर 2020 में इसने कानून का रूप लिया था.
रिपोर्ट तैयार करने वाली समिति की हेड मार्गरेट स्प्रिंग ने लिखा है, ‘20वीं शताब्दी के चामत्कारिक आविष्कार प्लास्टिक ने वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक कचरे की बाढ़ पैदा की है. हम जहां भी देखते हैं बस प्लास्टिक कचरा नज़र आता है.’
मार्गरेट ने लिखा है कि प्लास्टिक कचरा एक ‘पर्यावरण और सामाजिक संकट’ है जिसने समुद्र के नजदीक रहने वाले लोगों को प्रभावित किया है, नदियों, तालाबों, तटों को प्रदूषित किया है. वो लिखती हैं कि प्लास्टिक कचरे से लोगों का जीवन मुश्किल हुआ है, वन्यजीव खतरे में पड़ा है और पानी दूषित हुआ है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका में जहां साल 1966 में 20 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता था, वहीं साल 2015 में यह बढ़कर 381 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है. यानी 50 सालों में ही प्लास्टिक कचरे का उत्पादन 20 गुना से अधिक हो गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, शुरू में जहाजों और मरीन से निकलने वाले कचरे को समुद्री कचरे का स्त्रोत माना गया लेकिन धरती पर मौजूद प्लास्टिक के नदियों के माध्यम से बहकर समुद्र में पहुंचने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
शोध में कहा गया है कि करीब एक हजार समुद्री जीव इस प्लास्टिक कचरे के संपर्क में हैं या फिर वो इसे माइक्रोप्लास्टिक के रूप में निगल रहे हैं. फिर यही माइक्रोप्लास्टिक खाने के माध्यम से मनुष्यों के शरीर में पहुंच रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साल में तक़रीबन 8 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा समुद्र से वापस धरती पर आ रहा है. हर मिनट हम समुद्र में जितना प्लास्टिक कचरा डालते हैं, ये उसके बराबर है.
अगर इसी हिसाब से विश्व भर में प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता रहा तो साल 2030 तक समुद्र से प्लास्टिक कचरे का वापस धरती पर आना 53 मिलियन मीट्रिक टन हो जाएगा. साल भर में जितनी मछली पकड़ी जाती है, ये उसके वजन का आधा होगा.
इसके पीछे रिपोर्ट में वजह ये बताई गई है कि साल 1980 के बाद से महानगरों में जो प्लास्टिक कचरे की बाढ़ आई है, उस हिसाब से उसका रीसाइकल नहीं किया जा रहा है. इस कारण प्लास्टिक कचरा बढ़ता जा रहा है.
इस समस्या से निपटने के लिए रिपोर्ट में कई समाधानों का जिक्र है, जिसमें एक है नए प्लास्टिक के उत्पादन को कम करना. रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसे पदार्थों का इस्तेमाल किया जाए जो काम समय में आसानी से गल जाएं और रीसाइकल हो जाएं. सिंगल यूज प्लास्टिक को कम किया जाए, वेस्ट मैनेजमेंट को सुधारा जाए.
रिपोर्ट में कहा गया है कि नाले के पानी से माइक्रोप्लास्टिक को अलग करने की तकनीक का सहारा लिया जाए. इस तकनीक से पानी के साथ प्लास्टिक कणों के बहकर जाने की संभावना बेहद कम हो जाएगी.
‘Beyond Plastics Nonprofit’ के अध्यक्ष जूडिथ इंक ने इस रिपोर्ट पर कहा है, ‘प्लास्टिक प्रदूषण पर यह अब तक की सबसे अच्छी रिपोर्ट है. इससे हमें समुद्र में बढ़ते प्लास्टिक को लेकर सचेत हो जाना चाहिए.
यह रिपोर्ट बताती है कि बस कूड़े की सफ़ाई करने से ही हम समुद्र को नहीं बचा सकते हैं.’ उन्होंने आगे कहा कि नीति निर्माताओं और बिजनेस लीडर्स को ये रिपोर्ट पढ़नी चाहिए और इस पर काम भी करना चाहिए.