मेंडेरियन भाषा में राष्ट्रपति के लिए एक शब्द है- 总统, जिसे जॉन्गटॉन्ग कहते हैं. चीन में कोई भी नेता दूसरे देशों के राष्ट्रपतियों की बात करता है तो यही टाइटल बोलता है. जैसे इमेनुएल मैक्रों फ्रांस के राष्ट्रपति हैं, या जो बाइडन अमेरिकी प्रेसिडेंट. हालांकि चीन अपने ही नेता शी जिनपिंग के लिए इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करता है. वो सुप्रीम लीडर तो हैं लेकिन राष्ट्रपति नहीं.
कौन सी उपाधियां हैं जिनपिंग के पास
शी जिनपिंग का आधिकारिक टाइटल पार्टी के जनरल सेक्रेटरी का है. इसके अलावा वे स्टेट-लीडर (नेशनल- लीडर) भी हैं. वे केंद्रीय सैन्य आयोग के भी अध्यक्ष हैं. लेकिन इनमें से कोई भी पद राष्ट्रपति का नहीं है. खुद चीन का मीडिया भी उन्हें पार्टी लीडर की तरह संबोधित करता आया. चीन के भीतर वेबसाइट्स पर सर्च किया जाए तो चेयरमैन शी जिनपिंग के नाम पर कई मिलियन वेब पेज दिखेंगे, जनरल सेक्रेटरी लिखा जाए तो भी यही रिजल्ट होगा, जबकि प्रेसिडेंट शी जिनपिंग लिखकर खोजा जाए तो इक्का-दुक्का पेज ही मिलते हैं.
तब जिनपिंग को राष्ट्रपति कहने का चलन कैसे आया?
इसका श्रेय विदेशी नेताओं और मीडिया को जाता है. चूंकि ज्यादातर देशों में राजनैतिक तौर पर सबसे पावरफुल ओहदा राष्ट्रपति का होता है, तो चीन में भी सबसे ताकतवर पद पर बैठे लोगों को प्रेसिडेंट कहा जाने लगा. अमेरिका से इसका चलन शुरू हुआ तो अंग्रेजी-भाषी सारे देश इसे मानने लगे और देखादेखी एशियाई देशों में भी यही चलन आ गया. खुद चीन ने इसे बढ़ावा दिया ताकि ग्लोबल तौर पर घुलना-मिलना आसान हो जाए. ये अस्सी से नब्बे के बीच का दौर था, जब चीन का बाजार पूरी दुनिया में फैलने के शुरुआती चरण में था.
चीन के सरकारी न्यूजपेपर चाइना डेली में साल 2009 में कहा गया था कि राष्ट्रपति टाइटल इसलिए माना जा रहा है क्योंकि पूरी दुनिया में देश के मुखिया को राष्ट्रपति ही कहा जाता है. तो ये एक तरह से पश्चिम के बीच स्वीकार्यता का कदम था.
माओ भी नहीं थे राष्ट्रपति
चीन में प्रेसिडेंट शब्द का इतिहास काफी उलझा हुआ रहा. साल 1954 में स्टेट हेड का पद बना, जिसपर माओ जेडॉन्ग थे. कुछ सालों बाद माओ ने अपने पसंदीदा नेता ल्यू शाओकी को इस पद पर बैठा दिया, हालांकि थोड़े ही समय बाद मतभेद के चलते माओ ने उसे पद से हटा भी दिया. माओ तब मॉर्डन चीन के सबसे लोकप्रिय और सबसे ताकतवर नेता थे. इसके बाद अस्सी के दशक में स्टेट हेड को बाहर की दुनिया में राष्ट्रपति कहने का चलन आ गया.
चीन अपने भीतरी सर्कल में जिनपिंग को स्टेट हेड ही कहता रहा. कई कम्युनिस्ट देश, जैसे क्यूबा, वियतनाम और लाओस में भी चीन के राष्ट्रपति की जगह स्टेट हेड ही कहा जाता है.
अब क्यों हो रही है समस्या?
चीन के सबसे शक्तिशाली नेता को जनरल सेक्रेटरी कहें या कुछ और इससे क्या फर्क पड़ता है! लेकिन फर्क तो पड़ता है. दुनिया के लगभग सभी देशों में राष्ट्रपति अगर सर्वोच्च पद है तो उसका दावेदार जनता चुनती है, फिर चाहे वो अमेरिका हो, या कोई और देश. कम्युनिस्ट देशों में हालांकि इसमें घालमेल होता रहा. हर पांच साल में चीन में चुनाव होते हैं. सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस तय करती है कि पार्टी को कौन लीड करेगा. जो भी पार्टी चलाता है, उसी के हाथ में देश की कमान भी चली जाती है. इस प्रोसेस में जनता का कोई हाथ नहीं रहता.
अमेरिका ने किया विरोध
जनता के चुने बगैर दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश का नेता तय हो जाता है, इसी बात का कहीं-कहीं विरोध हो रहा है. खासतौर पर अमेरिका में. साल 2020 में अमेरिका में हाउस ऑफ फॉरेन अफेयर्स ने एक ड्राफ्ट तैयार किया. नेम द एनिमी एक्ट नाम से इस मसौदे में लिखा था कि किसी भी देश के नेता को भ्रामक टाइटल से न बुलाते हुए उसी टाइटल से बुलाया या लिखा जाए, जो वो वाकई में है. इसमें चीन का खासतौर पर जिक्र था. अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने जिनपिंग को जनरल सेक्रेटरी ऑफ चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी कहना शुरू भी कर दिया था.
वैसे ये कोविड का दौर था, जब दुनिया के बहुतेरे देश चीन के खिलाफ बोल रहे थे, तो ये भी माना जा सकता है कि ऐसा कहना भी कोविड के गुस्से से उपजा रिएक्शन रहा होगा.
हाउस ऑफ रिप्रेंजेंटेटिव में पेश किए गए बिल का आगे क्या हुआ, इसका कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता है, लेकिन बिल में चीन को लेकर साफ माना गया कि राष्ट्रपति कहने से ऐसा लगता है कि मानो जिनपिंग जनता की पसंद से चुने गए हों, जबकि असल में ऐसा है नहीं. ये पार्टी के भीतर का ही चुनाव है, जिसने उन्हें सुप्रीम लीडर बनाए रखा है. यूएस चाइना इकनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन ने भी साल 2019 में माना कि वे लिखित तौर पर शी जिनपिंग को चीन का राष्ट्रपति नहीं, बल्कि जनरल सेक्रेटरी ऑफ चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी ही मानेंगे. उनके मुताबिक, इससे जनता के चुने राष्ट्रपति और तानाशाही के बीच फर्क सामने आने लगेगा.