गुलों में रंग भरने वाले ये मख़मली आवाज़ हमेशा के लिए खामोश हो गई. पिछले 2 साल से बीमारी से जूझ रहे मेहदी हसन जिंदगी की जंग हार गए. 84 साल के इस सफर में उन्होने अपनी आवाज़ में सजाकर गजलों का वो तोहफा जमाने को दिया जो बेशकीमती है.