हार इमरान को कबूल नहीं. जीत उनकी आदत भी है और जुनून भी और जीतने के लिए वो लौटकर भी आते हैं. 1992 के वर्ल्ड कप से लेकर आजतक उनकी शख्सियत ऐसी ही है.