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मनमोहन सिंह ने उठाए थे 'भारतीय बाजार' के शटर, तीन दशक में देश की बदलती तस्वीर!

अमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 24 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 4:23 PM IST
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आज दुनिया भर के देशों की भारतीय बाजार पर नजरें हैं. हर विकसित देश को भारत का 'खुला बाजार' निवेश के लिए आकर्षित कर रहा है. बाजार को खुला छोड़ने के लिए पहला कदम आज से ठीक 30 साल से पहले उठाया गया था. दरअसल, बतौर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने आज ही के दिन यानी 24 जुलाई 1991 में अपना पहला बजट संसद में पेश किया था. (Photo: Aajtak)

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भारत के इतिहास में मनमोहन सिंह के पहले बजट को अर्थव्यवस्था के लिए गेम चेंजर बजट माना जाता है. मनमोहन सिंह ने इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट पॉलिसी में बदलाव कर भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोल दिया था. एक तरह से 1991 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने देश से  लाइसेंस राज को खत्म करने का ऐलान कर दिया था. जबकि यह सरकार कुछ महीने पहले ही बनी थी. 21 जून 1991 को पीवी नरसिम्हा राव देश के नए प्रधानमंत्री बने थे. (Photo: India Today Archives)

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दरअसल, मनमोहन सिंह के पहले बजट ने देश का आर्थिक माहौल बदलना शुरू कर दिया. क्योंकि बजट में मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था के लिए उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की राह पर चलने का ऐलान कर दिया था. पिछले 30 वर्षों में भारतीय इकोनॉमी को इसी राह पर मजबूत कामयाबी मिली है, और अब 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी की बात होने लगी है. अब आइए जानते हैं, पिछले तीन दशक में उदारीकरण के मोर्चे पर देश कहां खड़ा है. (Photo: Aajtak)
 

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विदेशी मुद्रा भंडार 
आज भारतीय खजाना विदेशी मुद्रा भंडार से भरा हुआ है. तीन जुलाई, 2021 तक विदेशी मुद्रा भंडार 611 अरब डॉलर तक पहुंच गया. लेकिन 30 से पहले 1991 में जब मनमोहन सिंह वित्तमंत्री बने थे, तब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार केवल 5.80 अरब डॉलर का था. जिससे सिर्फ दो हफ्तों तक ही आयात किया जा सकता था. अर्थव्यवस्था के लिए यह सबसे कठिन दौर था. 

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साल 1991 में भारत का भुगतान संतुलन इतना बिगड़ा कि देश को सोना गिरवी रखना पड़ गया था. लेकिन इस संकट से उबरने के लिए बजट में भारतीय बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिए गए थे. इस कदम से केंद्र सरकार को चंद महीनों में ही इकोनॉमी के मोर्च पर पहली सफलता मिली, जब दिसंबर-1991 में सरकार विदेशों में गिरवी रखा सोना छुड़वाने में कामयाब रही. (Photo: Aajtak)

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30 साल में सोने की चाल
साल 1991 में जब आर्थिक चुनौतियां थीं, तब देश को सोने ने साथ दिया था. वैसे पिछले 30 वर्षों में सोने ने अपनी चमक खूब बिखेरी है. 1991 में 24 कैरेट सोने की कीमत लगभग 3466 रुपये प्रति 10 ग्राम थी. 30 साल के बाद आज सोना लगभग 50 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम बिक रहा है.
 

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प्रति व्यक्ति आय
साल 1991 में देश में प्रति व्यक्ति आय 538 रुपये महीने थी, जो 2021 में बढ़कर 12,140 रुपये महीने हो गया है. पिछले 30 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय में करीब साढ़े 22 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. प्रति व्यक्ति आय किसी देश, राज्य, नगर या अन्य क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की औसत आय होती है. 

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शेयर बाजार की चाल
उदारीकरण की पहल को शेयर बाजार ने भी सलाम किया है. उदारीकरण से पहले 25 जुलाई 1990 को सेंसेक्स महज 1000 अंक का था, जिसे साल 1991 में मनमोहन सिंह की वित्त-नीति से पंख लग गए. दिसंबर-1991 में सेंसेक्स 1908 अंक तक पहुंच गया. इस तरह से साल 1991 में सेंसेक्स कुल 881 अंक बढ़ा था. आज सेंसेक्स 53000 के आसपास है. 

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पेट्रोल-डीजल की बात
आज महंगे पेट्रोल-डीजल से हर कोई परेशान है. जब देश में उदारीकरण की नींव रखी गई थी, यानी साल 1991 में पेट्रोल करीब 14.62 रुपये लीटर था. जबकि 30 साल के बाद 2021 में पेट्रोल 100 रुपये लीटर से ऊपर निकल चुका है. यानी पेट्रोल अब तक 8 गुना महंगा हुआ है. डीजल की कीमत 1991 में 5.50 रुपये के आसपास थी. (Photo: Getty Images)

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तीन दशक में जीडीपी की चाल
कोरोना की वजह से जीडीपी में पिछले वित्त वर्ष में ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिली. लेकिन पिछले तीन दशक में इकोनॉमी 33 गुना बढ़ी है. वित्त वर्ष 1990-91 में भारतीय जीडीपी का आकार 5.86 लाख करोड़ रुपये का था. जबकि वित्त वर्ष (2020-21) में आकार बढ़कर 194.81 लाख करोड़ रुपये का था. 

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बैंकिंग सिस्टम में बड़ा सुधार 
पिछले 30 वर्षों में बैंकिंग सेक्टर में सुधार के लिए कई कदम उठाए गए हैं. मार्च 1991 में कुल बैंकों की संख्या 272 थी, जो 2021 में घटकर 100 के आसपास हो गई. इसमें ग्रामीण बैंकों की संख्या 196 से घटकर 43 हो गई. वर्तमान में तमाम बैंकों के विलय के बाद सरकारी क्षेत्र के केवल 12 बैंक रह गए हैं. सरकार इसमें भी कम करने की बात कर रही है.

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