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बिक गई एअर इंडिया, लगातार 46 साल मुनाफे में उड़ान के बाद कैसे कर्ज में डूबी कंपनी, पूरी कहानी...

अमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 08 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 9:36 PM IST
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कर्ज में डूबी एअर इंडिया (Air India) को बेचने के लिए सरकार ने कई बार बोली की तारीखें बढ़ाईं. क्योंकि कर्ज में डूबी इस कंपनी के खरीदार नहीं मिल रहे थे. आखिर में टाटा कंपनी ने इस सरकारी एयरलाइंस कंपनी में रुचि दिखाई और आज सरकार ने इसपर मुहर भी लगा दी. 

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अब Tata Sons ने एअर इंडिया को खरीद लिया है. टाटा कंपनी ने इस सरकारी एयरलाइंस के लिए सबसे अधिक 18,000 करोड़ रुपये की बोली लगाई. Air India का मालिकाना हक मिलने के बाद नए मालिक को इससे जुड़े नाम और लोगो को अभी 5 साल तक संभाल कर रखना होगा. (Photo: File)

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विनिवेश के मोर्चे पर केंद्र सरकार के लिए यह एक बड़ी सफलता है. लेकिन एअर इंडिया को बेचने की नौबत क्यों आई. इसकी लंबी कहानी है. पहले तो कर्ज में डूबी एअर इंडिया को उबारने की बात हुई, लेकिन बात नहीं बनी. उल्टा साल-दर-साल घाटा बढ़ता गया. जैसे-जैसे एअर इंडिया कर्ज में डूबती गई, सरकार भी इससे किनारा करती गई. 
 

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यही नहीं, पहले एअर इंडिया में कुछ हिस्सेदारी बेचने की बात सामने आई थी, लेकिन फिर सरकार ने साफ कर दिया कि हवाई जहाज उड़ाना सरकार का काम नहीं है. इसलिए पूरी हिस्सेदारी बेची जाएगी. यानी सरकार एअर इंडिया से छुटकारा पाना चाहती थी. (Photo: File)

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सरकार के मुताबिक 31 अगस्त 2021 तक एअर इंडिया पर कुल कर्ज 61,562 करोड़ रुपये का था. अब टाटा ने अपनी बोली से एअर इंडिया पर से 15,300 करोड़ रुपये का कर्ज उतार दिया है. टाटा द्वारा इस कर्ज के उतारने के बाद अब एअर इंडिया पर कुल 46,262 करोड़ रुपये का कर्ज बचा है. (Photo: File)

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आइए अब बात करते हैं, कैसे एअर इंडिया मुनाफे से घाटे में उड़ान भरने लगी. दरअसल, एअर इंडिया इस बुरे हाल में पहुंच जाएगी, एक दशक पहले किसी ने इसकी कल्पना नहीं की होगी. क्योंकि एक दशक से पहले भले ही ये सरकारी एयरलाइन कंपनी फायदे में नहीं चल रही थी, लेकिन इसके फायदे में आने की पूरी उम्मीद थी. (Photo: File)

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साल 2000 तक मुनाफे में थी कंपनी
साल 1954 को विमानन कंपनी का राष्ट्रीयकरण किया गया था. तब सरकार ने हवाई सेवा के लिए दो कंपनियां बनाईं. घरेलू सेवा के लिए इंडियन एयरलाइंस, और विदेश के लिए एअर इंडिया. तब से लेकर के साल 2000 तक यह सरकारी एयरलाइन कंपनी मुनाफे में थी. पहली बार 2001 में कंपनी को 57 करोड़ रुपये का घाटा हुआ. तब विमानन मंत्रालय ने तत्कालीन प्रबंध निदेशक माइकल मास्केयरनहास को दोषी मानते हुए पद से हटा दिया था. (Photo: File)

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बर्बादी की शुरुआत?
साल 2007 की बात है, एअर इंडिया में इंडियन एयरलाइंस का विलय कर दिया गया. दोनों कंपनियों के विलय के वक्त संयुक्त घाटा 771 करोड़ रुपये का था, विलय से पहले इंडियन एयरलाइंस महज 230 करोड़ रुपये के घाटे में थी, उम्मीद की जा रही थी कि जल्द फायदे में आ जाएगी. जबकि एअर इंडिया कंपनी विलय से पूर्व करीब 541 करोड़ रुपये नुकसान में थी. ये वित्त वर्ष 2006-07 की रिपोर्ट थी. (Photo: File)

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साल दर साल बढ़ता गया घाटा
दोनों कंपनियों के विलय से पहले दावा किया जा रहा था कि विलय के बाद जो एक कंपनी बनेगी, वह हर साल 6 अरब का लाभ कमा सकेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. विलय के बाद कंपनी का लगातार घाटा बढ़ता गया. फिर घाटे को कम करने के लिए कंपनी ने लोन लेना शुरू किया, और कंपनी कर्ज में डूबती गई. 

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साल 2007-08 में 2226 करोड़ रुपये, 2008-09 में 7200 करोड़ रुपये, 2009-10 में घाटा बढ़कर 12,000 करोड़ रुपये हो गया. यह आंकड़ा और ज्यादा होता, लेकिन 2009 में कर्ज घटाने के लिए एअर इंडिया ने अपने कुछ विमान बेच दिए थे. जानकार मानते हैं कि विलय ने कंपनी का बंटाधार कर दिया. (Photo: File)

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इस सौदे पर भी सवाल
मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी दावा किया गया है कि 2005 में 111 विमानों की खरीद का फैसला एअर इंडिया की आर्थिक संकट की सबसे बड़ी वजह थी. इस सौदे पर 70 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे. कहा जाता है कि इतने बड़े सौदे से पहले विचार नहीं किया गया कि ये कंपनी के लिए यह व्यावहारिक होगा या नहीं. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी इस सौदे पर सवाल खड़े किए थे. हालांकि सौदे को लेकर खूब राजनीति हुई थी. (Photo: File)
 

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बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा भी एक कारण
एअर इंडिया प्रबंधन का ढुलमुल रवैया भी बर्बादी का एक कारण रहा. एअर इंडिया की फ्लाइट्स अक्सर लेट लतीफी का शिकार होती रहीं. कर्मचारियों में हड़ताल आम बात हो गई. जिस वजह से सेवाएं प्रभावित हुईं. साल 2018 एअर इंडिया के पास सिर्फ 13.3 प्रतिशत मार्केट शेयर था. 

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एक रिपोर्ट के मुताबिक निजी एयरलाइन कंपनियों के विमान एक दिन में कम से कम 14 घंटे हवा में रहते हैं. जबकि एअर इंडिया के जहाज करीब 10 घंटे उड़ान भरते हैं. एअर इंडिया के विमानों को उन रूटों को लगातार रखा गया, जिसपर प्राइवेट कंपनियां ने सेवा देने से इनकार कर दिया. जबकि लाभों वाले रूटों को बिना वजह दूसरी एयरलाइंस को दे दिया गया. (Photo: File)

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कुप्रबंधन और सरकारी सेवा में तत्परता की वजह से एअर इंडिया का बेजा इस्तेमाल हुआ. सरकारी बकाया समय पर नहीं मिलने से बोझ बढ़ता गया. एअर इंडिया को ज्यादा ऑपरेटिंग कॉस्ट और विदेशी मुद्रा में घाटे के चलते भारी नुकसान का सामना करना पड़ा. अगस्त, 2009 में एअर इंडिया के प्रमुख अरविंद जाधव ने तीन साल में बेहतरी की योजना के तहत छंटनी और अन्य उपायों के बारे में ऐलान किया. जिसके बाद विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी गई. विमान चालकों ने आंदोलन छेड़ दिया. जिससे आर्थिक संकट और गहरा गया.

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एअर इंडिया को सबसे पहले जेआरडी टाटा ने 1932 में टाटा एयरलाइंस के नाम से लॉन्च किया था. 1946 में इसका नाम बदल कर एअर इंडिया कर दिया गया और 1953 में सरकार ने इसको टाटा से खरीद लिया था. (Photo: File)
 

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अब इतिहास की बात
आजादी के वक्त देश में कुल 9 छोटी-बड़ी विमानन कंपनियां थीं. साल 1954 में इसका राष्ट्रीकरण कर दिया गया. सभी कंपनियों को मिलाकर दो कंपनियां बनाई गईं, घरेलू सेवा के लिए इंडियन एयरलाइन्स, और विदेश के लिए एअर इंडिया. वर्ष 1953 तक एअर इंडिया का स्वामित्व टाटा समूह के पास था. (Photo: File)
 

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