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डोकलाम में चीन पर मोदी की जीत के ये हैं 5 'मैन ऑफ द मैच'

डोकलाम विवाद पर चीन के सभी दबावों को दरकिनार कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन को सरहद पर सड़क बनाने से रोकने में सफल रहे. इस पूरे विवाद के दौरान एक तरफ बीजिंग में लगातार कूटनीतिक कोशिशें की जा रही थीं, तो दूसरी तरफ भारत और चीन सीमा पर भारतीय सेना और पीएलए लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर कम से कम पांच जगहों पर आमने-सामने खड़ी थीं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 30 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 6:28 PM IST

डोकलाम विवाद पर चीन के सभी दबावों को दरकिनार कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन को सरहद पर सड़क बनाने से रोकने में सफल रहे. इस पूरे विवाद के दौरान एक तरफ बीजिंग में लगातार कूटनीतिक कोशिशें की जा रही थीं, तो दूसरी तरफ भारत और चीन सीमा पर भारतीय सेना और पीएलए लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर कम से कम पांच जगहों पर आमने-सामने खड़ी थीं.

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एक तरफ जहां लगातार चीन की ओर से उकसावे की कोशिश की जा रही थीं और हमले की धमकी दी जा रही थी तो दूसरी तरफ भारत इस मामले को शांति से सुलझाने की कोशिश में लगा था. आखिरकार ये मामला शांति से सुलझ गया है. भारत और चीन दोनों ने डोकलम से अपने सैनिक वापस ले लिए हैं और दो माह का लंबा तनाव खत्म कर यथास्थिति बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की है.

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राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार- अजित डोभाल

मोदी की यात्रा के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अपने चीनी समकक्ष यांग जिएची से बात चीत के बाद बीजिंग में भी बात की. डोभाल ने शांति से बात करते हुए यह भी साफ किया कि भारत अपने स्टैंड से पीछे नहीं हटेगा. वो सैन्य और राजनयिकों के बीच चीफ कोर्डिनेटर थे, साथ ही वह लगातार भूटान की सुरक्षा के बारे में आश्वासन दे रहे थे.

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चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ- जनरल बिपिन रावत

भारतीय सेना प्रमुख ने पूरी स्थिति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि चीन भारतीय सेना में घुसपैठ करके भारत पर दबाव बनाने के लिए अपनी सेना का उपयोग नहीं कर सके. भारतीय सेनिकों ने चीनी  सेनिकों को अलग-अलग जगहों पर रोक दिया और पीएएल के साथ चार से पांच स्थानों पर खड़े रहे, जिनमें यटुंग और फ़री जोंग भी शामिल थे. सेना प्रमुख ने यह सुनिश्चित किया कि सरकार वार्ता टेबल पर एक मजबूत पक्ष बनाए हुए थी.

डायरेक्टर जनरल सैन्य कार्रवाई- लेफ्टिनेंट जनरल अनिल भट्ट

कश्मीर  में आतंकवादियों के खिलाफ परिचालन के मोर्चे पर सफलता हासिल करने के बाद, भट्ट ने खुद को चीनी मोर्चे पर भी साबित किया और साथ ही वह एलएसी कि स्थिति पर 24x7 निगरानी रखी और किसी भी घुसपैठ के प्रयास को विफल करने के लिए सैनिकों को हमेशा-तैयार मोड में रखा. उन्होंने अपने निदेशालय में भारतीय सेना के युद्ध कक्ष को कई बार स्थिति पर शीर्ष नेतृत्व को संक्षिप्त करने के लिए इस्तेमाल भी किया था.

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विदेश सचिव- एस जयशंकर

इन्होंने अपने अनुभव का इस्तेमाल चीन से निपटने के लिए भी किया. वो स्थिति का समाधान शांतिपूर्वक तरीको से करने के किए और समस्या का समाधान खोजने के प्रयास भी किए. धीमी प्रगति और चीन की इस विषय में न बात करने की इच्छा के बावजूद भी अपने प्रयासों को जारी रखा जब तक विदेश मंत्रालय ने चीनी के मौखिक हमलों पर प्रतिक्रिया नहीं दी. साथ ही उन्होंने भूटान और उसके नेतृत्व के साथ संबंधों को भी संभाला.

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चीन में भारतीय राजदूत- विजय केशव गोखले

भारत के विदेशी कार्यालय में लौटने के बाद, गोखले ने बीजिंग में डोकलाम मोर्चे पर राजनयिक प्रयासों का नेतृत्व किया.  उच्चे दर्जे के सूत्रों ने कहा कि उन्होंने वहां अपनी चीनी नौकरशाही को राजी करने के लिए अपने राजनयिक कौशल का भी इस्तेमाल किया था. हालांकि 1981 बैच के भारतीय विदेश सेवा अधिकारी विदेश मंत्रालय के सचिव (आर्थिक संबंध) के रूप में लौटंगे.

 

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