
नोटबंदी के ऐलान के बाद डिजिटल इंडिया को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार ने डेबिट कार्ड के इस्तेमाल पर छूट देने का ऐलान किया. यह ऐलान खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने किया. कहा कि कार्ड से पेमेंट कर पेट्रोल, डीजल, रेलवे टिकट और इंश्योरेंस पॉलिसी जैसी खरीदारी में भारी डिस्काउंट पाएं. अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इस फैसले पर सवाल खड़ा कर दिया है. नोटबंदी के बाद यह पहला मौका है जब रिजर्व बैंक ने केन्द्र सरकार के किसी बड़े ऐलान का विरोध किया है.
डेबिट कार्ड पर छूट का ऐलान करने के बाद से वित्त मंत्रालय लगातार रिजर्व बैंक और अन्य बड़े बैंकों से संपर्क कर रहा है. सरकार की तरफ से सुझाव दिया जा रहा है कि डेबिट कार्ड पर छूट देने की घोषणा को अमलीजामा पहनाने के लिए वह मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) को या तो पूरी तरह से खत्म कर दे या फिर 31 मार्च 2017 तक इसमें बड़ी कटौती का ऐलान कर दे.
क्या है एमडीआर और क्यों जरूरी है
मर्चेंट डिस्काउंट रेट वह दर है जो बैंक किसी भी दुकानदार से कार्ड पेमेंट सेवा के लिए वसूलती है. रिजर्व बैंक का मानना है कि बैंको के लिए यह कदम उठाना मुमकिन नहीं है. इस फैसले को लिया जाता है तो ज्यादातर बैंकों को कारोबार करना सिर्फ घाटे का सौदा रह जाएगा.
स्टेट बैंक और आईसीआईसीआई भी कर रहे विरोध
देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) और सबसे बड़े प्राइवेट बैंक आईसीआईसीआई ने भी सरकार के इस प्रस्ताव पर आपत्ति दर्ज कराई है. लिहाजा बैंकों के हितों को ध्यान में रखते हुए रिजर्व बैंक ने सरकार को कहा है कि ऐसा कोई भी फैसला सिर्फ और सिर्फ बैंकों के स्वास्थ को ध्यान में रखते हुए ही उठाया जा सकता है.
कितना है बैंकों का कार्ड का कारोबार
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा समय में देश में कुल 74 करोड़ डेबिट कार्ड हैं और 2.7 करोड़ क्रेडिट कार्ड हैं. प्रति माह प्वाइंट ऑफ सेल मशीन (पीओएस) के जरिए डेबिट कार्ड से 21,225 करोड़ रुपये और क्रेडिट कार्ड से 29,866 करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन होता है. इन सभी ट्रांजैक्शन पर बैंक अलग-अलग दरों पर चार्ज लगाते हैं और ब्याज से आय के बाद यह उनकी कमाई का बेहद अहम हिस्सा है.
फिर नहीं बन पाएगी कैशलेस इकोनॉमी
बैंकों का मानना है कि केन्द्र सरकार ने देश को कैशलेस व्यवस्था की तरफ आगे बढ़ाने के लिए उन्हें अगले तीन महीनों के दौरान 10 लाख पीओएस टर्मिनल लगाने का लक्ष्य दिया है. मौजूदा समय में सभी बैंकों का मिलाकर कुल 15 लाख पीओएस टर्मिलन काम कर रहा है. यदि कार्ड पेमेंट पर छूट देने के लिए उन्हें मजबूर किया जाता है तो इसका सीधा असर देश में नए टर्मिनल लगाने पर पड़ेगा. लिहाजा यह फैसला कैशलेस इकोनॉमी की दिशा में बढ़ने में सिर्फ बाधा ही साबित होगा.
गौरतलब है कि सितंबर 2016 में उर्जित पटेल ने रिजर्व बैंक के गवर्नर पद की कमान संभाली. पूर्व गवर्नर रघुराम राजन अपने तीन साल के कार्यकाल के दौरान सुर्खियों में रहे क्योंकि वह लगातार सरकार के हस्तक्षेप को उजागर करते रहे. उर्जित पटेल के गवर्नर बनने पर उम्मीद बढ़ी की अब केन्द्र सरकार और स्वतंत्र केन्द्रीय बैंक में टकरार की स्थिति देखने को नहीं मिलेगी.
लेकिन नोटबंदी से दबाव में आए रिजर्व बैंक ने अब केन्द्र सरकार को दो टूक कह दिया है. महज लोकलुभावन घोषणाओं को आधार बनाकर देश में बैंकों पर फैसले नहीं थोपे जा सकते. अब रिजर्व बैंक का यह बयान भले ही इस बार उर्जित पटेल के जूनियर और डिप्टी गवर्नर आर गांधी की तरफ से आया है लेकिन यह अंदाज वही है जिससे रघुराम राजन लगातार सुर्खियों में रहे.