
नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर केन्द्र की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं का लेखा-जोखा दिया जा चुका है. अब मौका है इन योजनाओं के लिए जिम्मेदार मंत्रियों के रिपोर्ट कार्ड को आधार बनाते हुए उन्हें सफलता के लिए महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने अथवा असफलता के लिए कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाने का.
बात सरकार की योजनाओं की हो तो जुबान पर एक ही सवाल है. आखिर मां गंगा का क्या हुआ. मोदी सरकार की जोर-शोर से शुरू की गई योजना नमामि गंगे का परिणाम तीन साल के बाद भी क्यों नहीं दिखाई दे रहा है? गंगा की हालत जस की तस बनी हुई है या यूं कहे कि हालत सुधरने की बजाय और बिगड़ी ही है. मंत्रालय की इस विफलता के लिए सीधी जिम्मेदारी जल संसाधन मंत्री और गंगा सफाई परियोजना उमा भारती की है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट ने गंगा के पानी को पीने क्या, नहाने लायक भी नहीं माना है. हाल ही में पीएमओ ने गंगा मंत्रालय के अधिकारियों से पूछा कि आखिर तीन साल बाद इस मुद्दे पर जनता को क्या जवाब दिया जाए. जाहिर है अधिकारियों के जवाब से प्रधानमंत्री कार्यालय भी संतुष्ट नजर नहीं आया.
एक बार फिर बह गए करोड़ों रुपये?
कुछ महीने पहले आजतक ने अपनी पड़ताल में पाया था कि मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘नमामि गंगे’ में उनका संसदीय क्षेत्र ही सबसे पीछे है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि सरकार के तीन साल पूरे होने के बाद भी ‘नमामि गंगे’ के तहत बनारस में एक भी प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हो पाया. यहां गंगा निर्मलीकरण के लिए अब तक सिर्फ फाइलों का गठ्ठर ही तैयार रखा है.
नमामि गंगे योजना के नाम पर प्रस्तावित 150 करोड़ की लागत वाले 50 एमएलडी के छोटे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की अभी टेंडर प्रक्रिया ही शुरू हो पाई है. आईआईटी बीएचयू, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समेत अन्य एजेंसी के रिसर्च में यह बात साबित हो चुका है कि गंगा घाटों से दूर हो चुका गंगा का पानी अंजलि में लेने लायक भी नहीं है. अकेले वाराणसी की गंगा में छोटे-बड़े लगभग 40 से ज्यादा नालों का पानी आकर मिलता है, जो उसे लगातार जहरीला बना रहा है. गंगा में दो करोड़ नब्बे लाख लीटर कचरा रोज गिरता है और इन पर अब तक सरकार की योजना का कोई असर होता नहीं दिख रहा.
पूजा करने से भी मैली हो गई गंगा
एक रिपोर्ट के मुताबिक हर रोज गंगा में 20 लाख से ज्यादा लोग धार्मिक स्नान करते हैं. इन अवशेषों को साफ करने के लिए नमामि गंगे के बैनर तले सफाई बोट चलती है, जो कुछ हद तक पानी को साफ करती है.
गंगा को निर्मल बनाने के प्रयास बहुत पहले से किए जाते रहे हैं. इस कड़ी में वर्ष 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया था. इसके बावजूद गंगा का प्रदूषण घटने की बजाए लगातार बढ़ता ही गया है. साल 2000 से 2010 के बीच 2800 करोड़ रुपए की गंगा सफाई परियोजना के पूरा हो जाने के बाद भी गंगा के प्रदूषण के स्तर में कोई फर्क नहीं आया है. उसके बाद मोदी सरकार ने 20 हजार करोड़ सिर्फ गंगा सफाई के लिए घोषित कर दिए. इन तीन वर्षों में ना तो कोई खास पैसा खर्च हो पाया है और ना ही पैसे के वितरण पर कोई निगरानी ही हुई.
और गंदी हो गई गंगा
सीपीसीबी ने उत्तराखंड में गंगोत्री से हरिद्वार के बीच 294 किलोमीटर लंबी गंगा में 11 जगहों से गंगाजल के नमूने जांच के लिए थे. गंगा के पानी की गुणवत्ता के चार मुख्य प्रतिमानों को जांचने के लिए ये नमूने लिए गए थे. इनमें डिजॉल्वड ऑक्सीजन (डीओ), बॉयोलॉजिक आक्सिजन डिमांड (बीओडी) और कोलिफॉर्म (बैक्टीरिया) की जांच शामिल है. सीपीसीबी की जांच में पता चला कि हरिद्वार के आसपास गंगाजल में बीओडी, कोलिफॉर्म और दूसरे जहरीले पदार्थों की मात्रा काफी अधिक है. कुछ ऐसा ही हाल काशी का भी है. विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश की 12 फीसदी बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है.
बंद नहीं हो पा रही प्रदूषण की फैक्ट्री
'नमामि गंगे' के तहत गंगा किनारे 48 औद्योगिक ईकाइयों को बंद करने का आदेश दिया गया था, लेकिन अब भी इनका कचरा गंगा में ही समाहित हो रहा है. गंगा के पानी को साफ करने की योजना भले ही अटकी हुई हो, लेकिन पीएम मोदी के क्षेत्र में गंगा किनारे घाटों की साफ-सफाई जमकर हो रही है और इस काम में स्वयंसेवी संस्थाओं के अलावा युवा भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. लोगों की भागीदारी के लिए कुछ कल्चरल प्रोग्राम शुरू किए गए हैं, जिनमें लोगों को स्वच्छता से जुड़ने का संदेश दिया जा रहा है.
नेताओं से क्यों नहीं साफ हो पा रही गंगा
राजीव गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक करोड़ों रुपये जरूर खर्च हुए, लेकिन गंगा के जल की निर्मलता को कोई बचा नहीं सका. बीजेपी अब तक राज्य में सपा सरकार पर साथ ना देने का आरोप लगाती रही, लेकिन अब राज्य में योगी सरकार आने के बाद उस पर गंगा सफाई के लिए दबाव और बढ़ने लगे हैं. मोदी सरकार का कार्यकाल दो साल और बाकी है, जो गंगा की मौजूदा स्थिति को देखते हुए काफी कम लगता है.