
कृषि क्षेत्र और ग्रामीण इलाकों को केन्द्रीय बजट में मिले महत्व से एक बात साफ है कि केन्द्र सरकार गुजरात विधानसभा चुनावों में बीजेपी के प्रदर्शन से बेहद परेशान है. इन चुनावों के नतीजों से साफ है कि पार्टी की पकड़ ग्रामीण इलाकों में कमजोर पड़ी है और तेजी से जनाधार गैर-बीजेपी पार्टियों के पक्ष में जा रहा है.
लिहाजा 1 फरवरी को पेश किए गए वार्षिक बजट में केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ग्रामीण इलाकों को केन्द्र में रखते हुए किसानों और गरीबों के लिए बड़े ऐलान किए. वित्त मंत्री ने किसानों की आमदनी को दोगुना करने और गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये तक की वार्षिक मुफ्त चिकित्सा देने का लक्ष्य रखा.
किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लिए केन्द्र सरकार ने फसल की एमएसपी को डेढ़ गुना करने का ऐलान किया है. तो गरीब परिवारों तक स्वास्थ सुविधा सुनिश्चित करने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी हेल्थकेयर योजना 'मोदीकेयर' की घोषणा की.
इन घोषणाओं के सहारे जहां सरकार की कोशिश लोकसभा चुनावों में गुजरात चुनावों की पुनरावृत्ति को रोकने की है वहीं विपक्षी पार्टियों समेत आर्थिक जानकारों का दावा है कि बीजेपी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं होगी. कुछ राजनीतिक दलों की भी दलील है कि इन योजनाओं का फायदा किसानों और गरीबों तक पहुंचाने में समय लगेगा और तब तक बीजेपी 8 राज्यों और 2019 के शुरुआत में होने वाले आम चुनावों में नुकसान उठा चुकी होगी.
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महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ गठबंधन में बैठी शिवसेना ने भी दावा किया है कि 2014 में बीजेपी में पूरे देश को सपना दिखाया और सत्ता पर काबिज हुई है. लिहाजा एक बार फिर वह अपने आखिरी बजट से देश में किसानों और गरीबों को सपना दिखा रही है. शिवसेना के मुताबिक एक बार फिर बीजेपी का दिखाया यह सपना हकीकत में नहीं बदल सकता क्योंकि बीते 3-4 साल के दौरान मोदी सरकार के फैसलों से देश की अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ चुकी है.
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वहीं केन्द्र में विपक्ष की भूमिका में मौजूदा कांग्रेस ने कहा है कि मोदी सरकार ने बजट के जरिए देश से खोखले वादे किए हैं क्योंकि मौजूदा आर्थिक स्थिति में सरकार के वादों को पूरा करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि बजट से पहले आए आर्थिक सर्वे में सरकार ने 7.5 फीसदी विकास दर का सपना दिखाया है. लेकिन देश की अर्थव्यवस्था को यह रफ्तार देने के उठाए जाने वाले उपायों पर केन्द्र सरकार ने चुप्पी साध रखी है. इससे भी निष्कर्ष यह है कि किसानों और जरीब जनता के साथ केन्द्र सरकार ने एक बार फिर झूठे वादे का सहारा लिया है जिससे वह 2019 के लोकसभा चुनावों में होने वाले नुकसान को रोक सके.
केन्द्रीय बजट के मुताबिक केन्द्र सरकार ने ग्रामीण इलाकों पर 14.34 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रोजगार पैदा करने और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने का मसौदी पेश किया है. इसके अलावा केन्द्र सरकार ने किसानों की आमदनी को एमएसपी के जरिए बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है. लेकिन ज्यादातर जानकारों का दावा है कि किसानों को एमएसपी से सीधा फायदा कभी नहीं पहुंचना क्योंकि अधिकांश किसान एमएसपी पर अपना उत्पाद बेचने में सफल नहीं होते. ऐसे में गुजरात चुनावों में खराब प्रदर्शन की प्रमुख वजह को लोकसभा और अन्य राज्यों के चुनावों से पहले दूर कर पाना केन्द्र सरकार के लिए कड़ी चुनौती है.