
बैंकों और एटीएम के बाहर आजकल भारत के अंदर एक और भारत खड़ा नजर आता है. ऐसा लगता है मानो हर कोई कतार में ही खड़ा है. कतार में खड़ा है इस इंतजार में कि नए नोट दर्शन दें. वो नए नोट जिनकी नकल ना कर पाने के तमाम दावे और वादे किए जा रहे हैं. मगर कमाल देखिए अभी ठीक से महीना भी पूरा नहीं हुआ है. गुलाबी नोटों की रंगत अभी पूरी तरह से आंखों को सुकून तक नहीं दे पाई. लोग इस नई-नवेली दो हज़ारी को हाथों में लेने को अभी तरस ही रहे हैं. उससे पहले ही उसकी सौतन बाज़ार में आ गई.
जी हां. दो हजार के नए असली नोट से पहले ही नकली नोट बाज़ार में आ चुके हैं. लिहाज़ा मौका आपके होशियार रहने का है. आठ नवंबर की रात लगभग साढे आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक राष्ट्र के नाम संदेश देते हुए 500 और हजार के नोट बंद करने का एलान करते हैं. उधर वो एलान करते हैं इधर अगले घंटे से ही देश कतार में खड़ा हो जाता है. फिर हर गुजरते दिन के साथ नोट बंदी की अहमीयत और नए नोटों की खासियत बताई जाती है. कहा जाता है कि नए नोटों का नकल अब आसान नहीं होगा.
चूंकि प्रधानमंत्री नो खुद पचास दिन की मोहलत मांगी थी लिहाजा पूरे देश पूरे सब्र के साथ अब भी कतार में खड़ा है. तकलीफ के इन पलों को बस इसलिए भुला कर कि चलो कुछ अच्छ के लिए हो रहा है. देश से काला धन और नकली नोट खत्म हो जाएगा. लेकिन प्रधानमंत्री के मांगे पचास दिन छोड़िए अभी नोटबंदी को महीना भी पूरा नहीं हुआ. यहां तक कि लोगों को अभी ठीक से नए नोट के दर्शन तक नहीं हुए औऱ नकली फिर से नोट बाजार में आ गया. देश में धड़ाधड़ नकली नोटों की खेप पकड़ी जा रही है.
सवाल ये है कि आख़िर इतनी जल्दी सबकुछ नकली कैसे हो गया? कैसे सरकार की नोटबंदी के फैसले का कबाड़ा हो गया? और कैसे घर बैठे छापे जाने लगे दो हज़ार रुपए के नकली नोट? तो इससे पहले कि हम आपको इन तमाम सवालों के जवाब बताएं, आइए सबसे पहले नोटबंदी के अभियान को पलीता लगाने वाले इन चेहरों से आपको मिला दें.
नाम- अभिनव वर्मा
पहचान- मास्टरमाइंड
पढ़ाई- बीटेक स्टूडेंट
नाम- विशाखा वर्मा
पहचान- अभिनव की कजन
पढ़ाई- एमबीए स्टूडेंट
नाम- सुमन नागपाल
पहचान- प्रॉपर्टी डीलर
यही वो तीन लोग हैं जिन्हें मोहाली पुलिस ने तब धर दबोचा, जब वो एक लाल बत्ती लगी ऑडी कार में 42 लाख रुपए के नकली नोट लेकर जा रहे थे. दो-दो हज़ार रुपए के नकली नोट और सभी के सभी एक ही नंबर के. एक तो ऑडी क्यू सेवन जैसी महंगी और आलीशान कार, ऊपर से उस पर लगी लाल बत्ती. आम तौर पर पुलिस भी ऐसी वीवीआईपी गाड़ियों की चेकिंग और इनमें बैठे लोगों से पूछताछ करने से परहेज करती है, लेकिन यहां मामला ज़रा दूसरा था. मोहाली पुलिस को इस लालबत्ती लगी कार में जाली नोटों की खेप की पुख्ता खबर मिली थी.
इसके बाद में पूछताछ में इन तीनों ने ना सिर्फ़ इन नोटों के नकली होने की बात कुबूल कर ली, बल्कि ये भी बताया कि वो अब तक इस तरह के तीन करोड़ रुपए के नकली नोट छाप कर मार्केट में खपा चुके हैं. जाली नोटों के इन सौदागरों ने माना कि वो इस वक्त भी 42 लाख रुपये के ये नकली नोटों की खेप कहीं डिलिवर करने के इरादे से घर से निकले थे. अब सवाल ये था कि आख़िर इन तीनों ने इतनी आसानी और इतनी जल्दी ये जाली नोट छापे कैसे? और जाली नोटों को मार्केट में खपाने का ये पूरा चैनल आख़िर काम कैसे करता था?
इस गिरोह का मास्टमाइंड ये अभिनव वर्मा वही लड़का है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेक इन इंडिया के अवार्ड के लिए चुना था. पर इसने अपना हुनर कहां और कैसे इस्तेमाल किया अब ये जान लीजिए. मोदी सरकार की नोटबंदी के फैसले के पहले तक उसकी पहचान एक तेजतर्रार और काबिल लड़के के तौर पर थी. मगर नोटबंदी के बाद दो हजार का नया नोट देखते ही उसके पुराने ख्याल बदल गए. अचानक लालच ने उसे ललचा दिया. बस इसी के बाद उसने अपना काबिल दिमाग नकली नोट छापने के तरीके पर लगाना शुरू कर दिया.
बीटेक और एमबीए जैसे प्रोफेशनल कोर्सेज़ की पढ़ाई पूरी करने वाली भाई-बहन की एक जोड़ी यूं जाली नोटों की बड़ी खेप के साथ पकड़ी जाएगी, वाकई अजीब है. लेकिन इधर सरकार ने नोटबंदी का ऐलान किया और उधर अभिनव और विशाखा ने नोटबंदी के इस मौके का फायदा उठा कर नकली नोट छापना शुरू कर दिया. दोनों का फैमिली बैकग्राउंड तो अच्छा है ही, काफ़ी पढ़े लिखे होने की वजह से इनका दिमाग़ भी तेज़ चलता था. इतना तेज़ की अभिनव ने नेत्रहीनों के लिए एक ऐसी डिवाइज़ बना दी, जिसकी बदौलत नेत्रहीन बगैर स्टिक के चल सकते हैं.
अभिनव के इस आविष्कार के चलते ही उसे मेक इन इंडिया के अवार्ड के लिए भी चुना गया. लेकिन कहते हैं ना कि जब पढ़ा लिखा इंसान गुनाह के रास्ते पर चलता है, तो कुछ ज़्यादा ही बड़ा गुनहगार बनता है. भाई बहन की इस जोड़ी के साथ कुछ ऐसा ही था. हालांकि दोनों ने नकली नोट छापने के लिए स्कैनिंग और कलर प्रिटिंग का पुराना तरीक़ा ही चुना था, मगर इस काम में हर बारीकी का उन्होंने ख्याल रखा. फिर चाहे वो कागज हो, कलर या प्रिंटिग की क्वालिटी. सबसे पहले ये दो हजार के नए नोट को स्कैन करते.
इसके बाद ठीक उसी साइज के पेपर पर उसका कलर प्रिंट निकालते. टेक्नीकली साउंड होने की वजह से नोट स्कैन कर उनका प्रिंट निकालने के दौरान भी ये उसकी क्वालिटी मेंटेन करने का तरीक़ा सीख चुके थे. फिर चूंकि अभी दो हज़ार रुपए के कम ही नोट मार्केट में हैं इसकी वजह से लोग इन नोटों के फीचर्स और पेपर क्वालिटी से भी उतनी अच्छी तरह वाकिफ़ नहीं हैं. ऐसे में भाई बहन की इस जोड़ी के लिए इन नोटों को मार्केट में खपाना भी आसान हो गया. बिचौलियों की मदद से ऐसे लोगों को पकड़ा, जो पुरानी करंसी को नई करंसी में बदला चाह रहे थे.
पुलिस ने जब इन्हें 42 लाख रुपए की नकली करंसी के साथ पकड़ा, तो इनके पास से 2-2 हज़ार रुपए के नोट की शक्ल में कुल 42 लाख रुपये मिले. कमाल ये था सभी एक ही नंबर के नोट थे. क्योंकि एक ही नोट को स्कैन कर उन्होंने उसके हजारों प्रिंट निकाल दिए. पुलिस की मानें तो इस तरह रातों-रात दोनों नकली करंसी के बदले पुरानी ही सही असली करंसी तो जुटा ही रहे थे, उन्हें अलग-अलग जगह खपाने में भी लगे थे. इसी सिलसिले में उन्होंने ये सेकेंड हैंड ऑडी क्यू सेवन कार भी ख़रीद ली थी. लेकिन इसी कार ने ही उन्हें पकड़वा भी दिया.