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एक पुलिस कांस्टेबल के आंगन से माफिया डॉन के साम्राज्य तक... जानें, मोस्ट वॉन्टेड शाइस्ता परवीन की पूरी कहानी

90 के दशक में जब कांस्टेबल मोहम्मद हारुन ने अपने बच्चों के बेहतर मुस्तकबिल का ख्याल रखते हुए एक फैसला लिया था, तब किसी को क्या पता था कि उनका ये कदम ही अब से कोई चार दशक बाद उनकी बड़ी बेटी शाइस्ता को यूपी पुलिस का मोस्ट वॉन्टेड बना देगा. जी हां, वही शाइस्ता परवीन जिसके सिर पर फिलहाल 50 हजार रुपये का इनाम है.

पुलिस ने शाइस्ता को भी उमेश पाल मर्डर केस में नामजद कर दिया है पुलिस ने शाइस्ता को भी उमेश पाल मर्डर केस में नामजद कर दिया है
शम्स ताहिर खान
  • नई दिल्ली,
  • 01 मई 2023,
  • अपडेटेड 9:13 PM IST

नेक, शरीफ, सभ्य, नरम दिल और काबिल ना जाने कितने मायने हैं शाइस्ता के. पिता पुलिस में थे तो अच्छे-बुरे की तमीज भी थी. पढ़ाई लिखाई का शौक भी था, तो ग्रेजुएशन भी किया. मगर फिर उस पुलिसवाले की बेटी की शादी एक मुजरिम से हो गई. जब वो शादी के बाद मायके से ससुराल पहुंची तब भी वो बिल्कुल अपने नाम जैसी ही थी शाइस्ता. लेकिन फिर धीरे-धीरे वो शाइस्ता कहीं गुम होती गई और सामने आई बेगम.  

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साल 1985, गांव दामूपुर, इलाहाबाद, यूपी
यूपी पुलिस के कांस्टेबल मोहम्मद हारुन बेशक ज्यादा पढे-लिखे नहीं थे. लेकिन उन्हें पढे-लिखे होने के फायदों का जरूर पता था. यही वजह है कि चार बेटियों और दो बेटों का भरा-पूरा परिवार होने के बावजूद उन्होंने कभी अपने बच्चों की पढाई से समझौता नहीं किया. हर बच्चे को स्कूल भेजा और अपनी तरफ से हर किसी को तालीम दिलाने की पूरी कोशिश की. ये पढाई-लिखाई से मोहम्मद हारुन का लगाव ही था कि 1985 में वो अपने पूरे परिवार के साथ अपने गांव दामूपुर से इलाहाबाद के चकिया इलाके में शिफ्ट हो गए. क्योंकि उनके गांव में तब बच्चों का कोई भी अच्छा स्कूल नहीं था. 

पिता के फैसले ने बदली जिंदगी
चकिया, इलाहाबाद के मुस्लिम बहुल इलाकों में से एक है और वो एक जमाने में चांद बाबा और अतीक अहमद जैसे खूंखार गैंगस्टरों का गढ़ था. लेकिन 90 के दशक में जब मोहम्मद हारुन ने अपने बच्चों के बेहतर मुस्तकबिल का ख्याल रखते हुए ये फैसला लिया, तब किसी को क्या पता था कि उनका ये कदम ही अब से कोई चार दशक बाद उनकी बड़ी बेटी शाइस्ता को यूपी पुलिस का मोस्ट वॉन्टेड बना देगा. जी हां, वही शाइस्ता परवीन जिसके सिर पर फिलहाल 50 हजार रुपये का इनाम है और जिसे लोग यूपी के खूंखार माफिया सरगना अतीक अहमद की बीवी के तौर पर जानते हैं.

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साजिश की असली सूत्रधार
शाइस्ता... वैसे तो पश्तो भाषा के इस लफ्ज के मायने विनम्रता से हैं. लेकिन इन दिनों अतीक की बीवी शाइस्ता का एक अलग ही चेहरा दुनिया के सामने है. वो चेहरा जिसमें शाइस्तगी नहीं, बल्कि सख्ती है. वो चेहरा जो अपने शौहर के हर गुनाह की राजदार है. वो चेहरा जो अतीक के जेल जाने से लेकर उसके मारे जाने तक उसके जुर्म के काले साम्राज्य की वारिस है और वो चेहरा जो पुलिस की नजर में उमेश पाल के कत्ल की फेसलिटेटर यानी साजिश की असली सूत्रधार है. 

सब भाई-बहनों में सबसे बड़ी है शाइस्ता
लेकिन एक मामूली पुलिस कांस्टेबल की बेटी से यूपी की मोस्ट वॉन्टेड क्रिमिनल बनने तक शाइस्ता की जिंदगी भी कम उतार-चढाव भरी नहीं है. शाइस्ता कुल छह भाई-बहनों में सबसे बड़ी है. ये उसके पिता की कोशिशों का ही नतीजा है कि एक मामूली से परिवार से आने के बावजूद शाइस्ता ने पहले प्रयागराज में रहते हुए किदवई गर्ल्स इंटर कॉलेज, हिम्मतगंज से प्लस टू तक की पढाई पूरी की और फिर आगे चल कर उसने ग्रेजुएशन भी किया. 

पिता को आया शादी का ख्याल
शाइस्ता के दोनों भाइयों में से एक शबी अहमद ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक मदरसे में टीचर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की और कुछ इस तरह धीरे-धीरे सारे भाई बहन अपनी-अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने लगे. इस बीच शाइस्ता के पिता मोहम्मद हारुन का नौकरी के सिलसिले में कुछ सालों के लिए प्रयागराज से बाहर भी जाना हुआ, लेकिन बच्चों की पढाई-लिखाई के मद्देनजर उनका परिवार शहर के चकिया में ही रहा. फिर वो वक्त भी आया जब मोहम्मद हारुन को अपनी बड़ी बेटी शाइस्ता की शादी का ख्याल आया. 

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साल 1996, चकिया, इलाहाबाद
उन दिनों चकिया तो क्या, गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद के इलाहाबाद के साथ-साथ पूरी यूपी में खासे चर्चे थे. वैसे तो गैंगस्टर होना कोई अच्छी बात नहीं होती. लेकिन जब गैंगस्टर होने के साथ-साथ कोई सियासी गलियारे में भी अपनी पहुंच बना ले, चुनावी राजनीति के सहारे माननीय भी बन जाए, तो फिर हमारा समाज ऐसे लोगों को अक्सर सिर आंखों पर बिठा लेता है. अतीक के साथ भी कुछ ऐसा ही था. अतीक था तो एक छंटा हुआ बदमाश, जो अब से कुछ साल पहले तक चकिया की गलियों में बम-गोली चलाता घूमता था, लेकिन तीन-तीन बार विधायक बन कर अब उसने अपनी छवि गैंगस्टर की कम और राजनेता की ज्यादा कर ली थी. ऐसे में अपनी बेटी के लिए दूल्हे की तलाश में लगे मोहम्मद हारुन को अतीक में अपने दामाद का अक्स नजर आने लगा. 

ऐसे हुई थी शाइस्ता और अतीक की शादी
बस फिर क्या था? एक रोज घरवालों से मशवरा करने के बाद वो अपने पड़ोस में रहनेवाले अतीक के पिता हाजी फिरोज़ अहमद के घर अपनी बेटी शाइस्ता की शादी का प्रस्ताव लेकर जा पहुंचे. जुर्म के सहारे कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने से पहले खुद अतीक का परिवार बेहद गरीब था. उसके पिता फिरोज अहमद एक मामूली तांगा चालक थे और तो और खुद अतीक दसवीं फेल था. ऐसे में जब एक पुलिस कांस्टेबल खुद अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव लेकर उनके दरवाजे पर पहुंचा और वो भी जब ये पता चला कि वो अपनी जिस बेटी से अतीक की शादी करवाना चाहते हैं, वो घर की ना सिर्फ सबसे बड़ी बेटी है, बल्कि उसने गैजुशन की पढाई भी पूरी की है, तो फिर अतीक के पिता फिरोज़ अहमद इस रिश्ते से मना नहीं कर सके और फिर जल्द ही इसी चकिया में अतीक और शाइस्ता की शादी हो गई.

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शादी के बाद खुली किस्मत
अब तक जुर्म की दुनिया में अपनी मौजूदगी, रसूख और दबदबे की बदौलत अतीक तीन बार विधायकी का चुनाव जीत चुका था. लेकिन उसकी शाइस्ता से शादी क्या हुई, एकाएक मानों उसकी किस्मत ही पलट गई. अतीक किसी राजनीतिक पार्टी की शरण में जाने की कोशिश तो लंबे वक्त से कर रहा था. लेकिन इस मामले में उसकी किस्मत का ताला उसकी शादी के बाद ही खुला. शाइस्ता मानों अतीक की जिंदगी का 'लकी चार्म' साबित हुई. शादी के बाद अतीक को समाजवादी पार्टी में एंट्री मिल गई और खुद पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने उसे इलाहाबाद पश्चिम से विधानसभा चुनाव का टिकट थमा दिया. अतीक घाघ तो था ही. उसने पूरा जोर लगाया और समाजवादी पार्टी का विधायक बन गया.

साल 1997, चकिया, इलाहाबाद
अतीक का ज्यादातर वक्त अब भी बाहर ही गुजरा करता था. अब वो एक नेता के तौर पर और ज्यादा व्यस्त रहने लगा था. लोगों के मसले हल करने लगा था. खुद उसके घर में चौबीसों घंटे लोगों का आना-जाना लगा रहता था. लेकिन शाइस्ता ने हमेशा खुद को घर की चारदिवारी के अंदर ही रोके रखा. उसने कभी भी अतीक की सियासत या जुर्म की दुनिया में दखल देने की कोशिश नहीं की. धीरे-धीरे दोनों का परिवार बढ़ा और अतीक और शाइस्ता के कुल पांच बेटे हुए. अली, उमर, असद, अहजान और अबान. 

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अतीक भले ही दसवीं फेल था, लेकिन ग्रेजुएट शाइस्ता अपने बेटों को खूब पढ़ाना लिखाना चाहती थी. बेटों की तालीम की शुरुआत घर से ही हुई. खुद शाइस्ता उन्हें पढाया करती थी. खास कर उर्दू और अंग्रेजी. उमर जब बड़ा हुआ और स्कूल जाने लायक हुआ, तो शाइसता ने ही अतीक से कह कर उसका दाखिला प्रयागराज के नामचीन सेंट जोसेफ कॉलेज में करवाया. इसके बाद एक-एक कर शाइस्ता ने अली, असद, अहजान और अबान का भी दाखिला इसी सेंट जोसेफ कॉलेज में करवाया. परिवार को करीब से जाननेवालों की मानें तो पढाई को लेकर शाइस्ता शुरू से ही बेहद सख्त थी. यही वजह है कि उसके सभी बच्चे पढाई लिखाई में अच्छे थे. 

शाइस्ता का बड़ा बेटा - उमर, 27 साल
स्कूलिंग के बाद शाइस्ता के बड़े बेटे उमर ने कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया. शायद बचपन से ही उसने अपने घर में काले कोट वालों को आते-जाते देखा था. बड़ा हुआ तो बाप के कारनामे भी समझ चुका था. शायद इसीलिए बाप की मदद करने के वास्ते वकील बनना चाहता था. वकालत की पढाई करने के लिए उमर ने दिल्ली से लॉ की पढाई करने का फैसला किया. इसके लिए वो दिल्ली आ गया. मगर बीच-बीच में प्रयागराज भी आना जाना लगा रहता था. चूंकि अतीक का बेटा था, इलाके में अच्छी खासी रंगदारी भी चलती थी उसकी. लेकिन अबतक कानून के पन्नों पर उसका जुर्म का कोई बही खाता नहीं खुला था. 

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लखनऊ जेल में बंद है उमर
मगर अप्रैल 2018 में पुलिस के पास उसका बही खाता भी खुल गया, जब लखनऊ के एक बिजनेसमैन मोहित जायसवाल को किडनैप कर देवरिया जेल लाया गया था. तब अतीक देवरिया जेल में बंद था. इसी जेल में अतीक के कहने पर उमर और बाकी लोगों ने मोहित जायसवाल की जमकर पिटाई की थी. बाद में मोहित की शिकायत पर पहली बार उमर के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई. एफआईर होते ही वो फरार हो गया. तब उस पर दो लाख रुपये का इनाम रखा गया था. बाद में 31 जुलाई 2018 को उमर ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया. तब से लेकर अब तक उमर लखनऊ की जेल में बंद है.

शाइस्ता का दूसरा बेटा - मोहम्मद अली, 24 साल 
अतीक और शाइस्ता के दूसरे नंबर का बेटा है मोहम्मद अली. पढ़ने में ये भी ठीक-ठाक था. लेकिन 12वीं के बाद कॉलेज में जाते ही डिग्री से पहले ही कानून की डिग्री यानी एफआईआर पर उसका नाम आ गया. इल्जाम था अपने ही एक रिश्तेदार से 5 करोड़ रुपये की रंगदारी मांगने का. मुकदमा दर्ज हुआ तो उमर की तरह ही वो भी फरार हो गया। इसके बाद पुलिस ने उस पर 50 हजार रुपये का इनाम रखा और फिर 31 जुलाई 2022 को उसने भी सरेंडर कर दिया. तब से अली भी प्रयागराज के ही नैनी जेल में बंद है.

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शाइस्ता का तीसरा बेटा - मोहम्मद असद, 19 साल
शाइस्ता और अतीक का ये वो बेटा है, जो अपने दोनों बड़े भाइयों से पहले ही डॉन बनने के रास्ते पर निकल चुका था. इसका सपना ही अपने बाप जैसा डॉन बनना था. छन-छन कर आ रही इसकी तस्वीरें और वीडियो भी ये बताते हैं. शाइस्ता का ये इकलौता ऐसा बेटा था, जिस पर इतनी कम उम्र में ही तीन-तीन कत्ल के इल्जाम लग गए. उमेश पाल शूटआउट में उमेशपाल और उसके दो पीएसओ के कत्ल में बाकी शूटरों के साथ असद का भी नाम है. उसी शूटआउट के बाद  से ही असद फरार था और ये फरारी खत्म हुई 13 अपैल 2023 से झांसी से 30 किमी दूर असद के एनकाउंटर की शक्ल में. शाइस्ता के पांच बेटों में से अब एक कम हो चुका है.

शाइस्ता का चौथा और पांचवां बेटा
शाइस्ता और अतीक के बाकी दोनों बेटे यानी अजहान और अबान नाबालिग हैं. दोनों प्रयागराज के उसी सेंट जोसेफ कॉलेज अभी पढाई कर रहे हैं. उमेशपाल शूटआउट के बाद जब शाइस्ता का पूरा परिवार पुलिस की रडार पर आ गया और सभी फरार हो गए, तब पुलिस ने अजहान और अबान को उठा कर रिमांड होम भेज दिया. तब से दोनों वहीं हैं. फिलहाल शाइस्ता के यही वो दो बेटे हैं, जिनके जुर्म का कोई बही खाता अभी तक नहीं खुला है.

शाइस्ता के घरवालों ने भी उठाया फायदा
वैसे शाइस्ता बेशक घर के बाहर अतीक की दुनिया से खुद को अलग रखे हुए थी, लेकिन शाइस्ता के घरवाले अतीक के कामों में दिलचस्पी लेने लगे थे. उसके साथ अमीर बनने के सपने बुनने लगे थे. अपनी बहन से अतीक की शादी के एक साल के अंदर ही शाइस्ता के सबसे छोटे भाई जकी अहमद ने अतीक की अगुवाई में जुर्म के काले साम्राज्य में एंट्री कर ली थी. वो अतीक के जमीन से जुडे मसलों को संभालने लगा. साल दर साल शाइस्ता के घरवालों ने अपने दामाद अतीक की बदौलत करोडों की दौलत इकट्ठा की. 

शौहर की हमकदम बनी शाइस्ता
शाइस्ता अब भी बड़ी खामोशी से घर में बैठे-बैठे एक बीवी के तौर पर अतीक का साथ दे रही थी. लेकिन बाहर अतीक की जिंदगी में भारी उथल-पुथल मची थी. सियासी जिंदगी में भी और जरायम की जिंदगी में भी. सियासी जिंदगी में उसे समाजवादी पार्टी का दामन छोड़ना पड़ा, तो कभी अपना दल से भी दूरी बनानी पड़ी. बीच में एक बार प्रतापगढ़ से उसे हार भी नसीब हुई. 

लेकिन अतीक की जिंदगी के इन उतार-चढाव के बीच 2003 में यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार बन गई. मुलायम से नजदीकी के चलते अतीक की फिर से समाजवादी पार्टी में वापसी हो गई. मुलायम सिंह ने 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक को फूलपुर से टिकट दे दिया. उसी फूलपूर सीट से जहां से देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहबर लाल नेहरू ने भी कभी चुनाव लड़ा था. अतीक चुनाव जीत गया और अब वो और बड़ा माननीय बन चुका था. यानी सांसद. खेल देखिए कि इसी चुनावी सियासत की बदौलत अपने सिर पर तमाम संगीन गुनाहों 80 से ज्यादा मामले होने के बावजूद वो उसी संसद में बैठा, जहां बैठ कर देश के सांसद कानून बनाते हैं.

25 जनवरी 2005, इलाहाबाद
राजनीति की चादर में अपने जुर्मों को ढक कर अतीक अब धीरे-धीरे गुंडई और सियासत दोनों ही जमीन पर पैर पसारने लगा था. इधर, घर के अंदर अब धीरे-धीरे शाइस्ता की पकड़ मजबूत होती जा रही थी. शाइस्ता का एक भाई है ज़की. जब जब अतीक शहर में नहीं होता था या बिजी होता था. विधान सभा में होता था, तब-तब वो जकी ही था, जो उसके पीछे उसकी गद्दी संभाला करता था. भाई की वजह से अब शाइस्ता को भी ताकत और पावर का कुछ कुछ अंदाजा होने लगा था. लेकिन अब भी उसकी जिम्मेदारी घर की चारदिवारी के अंदर ही थी. क्योंकि बाहर अतीक के अलावा जकी और अतीक का भाई अशरफ सारी जिम्मेदारी संभाल रहे थे. शाइस्ता के हाथ में सत्ता किश्तों में तब आती, जब अतीक अशरफ और जकी जेल जाते. इन तीनों का ही जेल आना जाना लगा रहता था. लेकिन मामला बिगड़ा राजूपाल के मर्डर से. 

राजू पाल की हत्या के बाद शाइस्ता ने संभाला साम्राज्य
राजू पाल के मर्डर में अतीक और अशरफ दोनों का नाम आ गया. अब ये तय था कि देर सवेर दोनों भाई लंबे वक्त के लिए जेल जाएंगे और यहीं से अतीक की गैरमौजूदगी में शाइस्ता के गद्दी संभालने का रास्ता साफ होता गया. अब शाइस्ता के पति अतीक की जिंदगी में सबसे बड़ा मोड आया. या यूं कहिए कि यही वो वक्त था जब अतीक ने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती कर डाली. असल में सांसद बनने के बाद उसे इलाहाबाद पश्चिम की सीट छोड़नी पड़ी. इसके बाद उसने जुगाड़ लगा कर अपने छोटे भाई अशरफ को उस सीट से टिकट दिला दिया. लेकिन इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के राजू पाल ने अशरफ को करारी शिकस्त दे दी. बस इस चुनावी हार का बदला लेने के लिए 25 जनवरी 2005 को अतीक ने राजू पाल के काफिले पर हमला करवा दिया. राजू पाल का कत्ल हो गया. उनके जिस्म से कुल 19 गोलियां निकाली थीं.

ऐसे अशरफ बना विधायक, अतीक गया जेल
इसके बाद फिर से हुए चुनाव में अतीक का भाई अशरफ विधायक तो बन गया, लेकिन आगे चल कर अतीक को सलाखें नसीब हुई. 2007 आते-आते वो गिरफ्तार कर लिया गया और इसी के साथ उसकी किस्मत का सियासी सूरज डूबने लगा. फिर एक-एक कर कई चुनावों में अतीक को हार नसीब हुई. अतीक की सियासी रेल बेशक पटरी से उतर गई हो, लेकिन उसके जुर्म की गाड़ी अब भी सरपट भाग रही थी. अब वो कुछ इतना पावरफुल हो चुका था कि जेल से ही अपना गैंग चलाने लगा. उधर, शाइस्ता का भाई जकी अब अपने बहनोई अतीक के साथ हर सही-गलत फैसले में साये की तरह उसके साथ था. अतीक जिला बदर तो हो चुका था. वो यूपी के देवरिया जेल में बंद था. लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने अतीक को जिला तो क्या सूबा-बदर ही कर दिया.

26 दिसंबर 2018, देवरिया
अतीक के गुंडों ने लखनऊ से एक बिजनेसमैन को किडनैप किया उसे 300 किलोमीटर दूर सीधे देवरिया सेंट्रल जेल लेकर पहुंचे, जहां अतीक बंद था. अतीक और ज़की ने मोहित जायसवाल नाम के इस बिजनेसमैन से पैसों की वसूली के लिए उसे जेल में ही इतना पीटा कि उसकी हालत बिगड़ गई. हालांकि अतीक और जकी के चंगुल से आजाद होते ही मोहित ने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई और जीजा-साले की ये करतूत अतीक के लिए डबल मुसीबत लेकर आई और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अब अतीक को यूपी से बाहर सीधे गुजरात के साबरमती जेल भेज दिया गया. 

जुर्म की दुनिया में शाइस्ता की एंट्री
अब तक यूपी की जेलों में रहते हुए अतीक के दबदबे और उसकी गुंडागर्दी में कोई कमी नहीं थी. लेकिन यूपी से बाहर जाते ही जुर्म की दुनिया में अतीक की पकड़ कमजोर पड़ने लगी. साबरमती जेल में बंद अतीक के लिए अब अपने उल्टे सीधे धंधों को संभालने के लिए एक वारिस की जरूरत थी. अतीक का भाई अशरफ पहले से ही जेल में बंद था. उसके बेटे छोटे थे और पढ़ाई में लगे थे. ऐसे में सामने आई अतीक की बीवी शाइस्ता. और यहीं से हाउस वाइफ शाइस्ता के नए किरदार का जन्म हुआ.

एक शाइस्ता, तीन रोल
अब शाइस्ता डबल नहीं, एक साथ ट्रिपल रोल में थी. पहला रोल एक हाउस वाइफ और अतीक के बच्चों की मां का. दूसरा रोल अतीक के काले साम्राज्य की 'केयर टेकर' का और तीसरा रोल अतीक की सियासी वारिस का.

सियासत में उतरी शाइस्ता
शाइस्ता अब अक्सर प्रयागराज से अतीक से मिलने गुजरात के साबरमती जेल जाने लगी और अतीक वहां से बैठे-बैठे शाइस्ता को जुर्म की दुनिया की हर बारीकी समझाने लगा. हर मुलाकात में अतीक कोई नया पत्ता खोलता और हर मुलाकात में शाइस्ता को कोई नया काम सौंपता. कभी किसी से वसूली की जिम्मेदारी मिलती, कभी अपने गुर्गों का इस्तेमाल कर किसी को डराने की, तो कभी अतीक की तरफ से किसी सियासी जलसे में शिरकत करने की. जेल में बंद अतीक जैसा-जैसा कहता जाता, जेल के बाहर उसकी बेगम ठीक वैसा-वैसा करती जाती. जेल में बंद अतीक के इशारे पर उसकी बेगम शाइस्ता ने पहली बार 17 दिसंबर 2021 को सियासत में कदम रखा. उसने असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन की सदस्यता ली और मंच से ही आंसू बहाकर लोगों की सहानुभूति बटोरने की पूरी कोशिश की. कुछ इसी तरह 2019 से लेकर 2023 के शुरुआती दिनों तक शाइस्ता अतीक का सारा काम-काज संभालती रही.

24 फरवरी 2023, धूमनगंज, प्रयागराज
अब तक उतार-चढ़ाव और मुश्किलों के साथ ही सही अतीक और उसकी फैमिली की जिंदगी सही चल रही थी. विधायक राजू पाल के कत्ल का फैसला अभी आना बाकी था. इस मामले में राजू पाल के नजदीकी उमेश पाल की गवाही भी हो चुकी थी. अतीक, उसका भाई अशरफ, दो बेटे अली और उमर बेशक जेल में बंद थे, लेकिन बाहर शाइस्ता अपने तीसरे बेटे असद के साथ मिलकर सबकुछ संभाल रही थी.

बुरे वक्त की शुरूआत
मगर 24 फरवरी को अतीक के इशारे पर प्रयागराज की सडकों पर जो कुछ हुआ, उसने ना सिर्फ अतीक, उसके भाई अशरफ और अतीक के बेटे असद की जिंदगी छीन ली, बल्कि पूरे परिवार की दुनिया ही बदल दी. इस रोज़ अतीक के इशारों पर उसके बेटे असद समेत 7 शूटरों ने राजूपाल केस में गवाह रहे उमेश पाल और उसके साथ मौजूद दो सरकारी गनर को बीच सड़क पर बम और गोलियों से छलनी कर दिया. अब उमेश पाल तो दुनिया से जा चुका था. लेकिन अतीक और उसके कुनबे के लिए सही मायने में बुरे वक्त की शुरुआत अब हुई थी. यूपी पुलिस और एसटीएफ की गोलियों से शूटरों के साथ-साथ अतीक का बेटा असद भी ढेर हो गया.

बेनकाब होता चेहरा
उधर, पुलिस की जांच में अतीक की बीवी शाइस्ता का असली चेहरा बेनकाब होने लगा था. जो शाइस्ता अब तक पर्दे के पीछे रह कर अतीक के जुर्म के काले साम्राज्य की कमान संभाल रही थी, पुलिस की तफ्तीश में पता चला कि वो तो अपने शौहर अतीक के  साथ मिलकर उमेश पाल के कत्ल की पूरी साजिश रच रही थी. और ना सिर्फ रच रही थी, जेल से बाहर रहते हुए उसी ने पूरी साजिश को अंजाम तक पहुंचाया. कत्ल के लिए शूटरों का इंतजाम करने, उन्हें लॉजिस्टिक मुहैया करवाने यानी साजो समान देने से लेकर क़त्ल के बाद उन्हें हवाला के जरिए डेढ करोड़ रुपये की सुपारी की रकम सौंपने तक, हर काम शाइस्ता ने खुद अपने हाथों से किया.

उमेश पाल हत्याकांड की FIR में शाइस्ता का नाम
जाहिर है अब इस मामले में शाइस्ता सिर्फ एक राजदार नहीं, बल्कि अतीक के जुर्म की भागीदार बन चुकी थी. उमेश पाल के कत्ल की एफआईआर में अब उसका नाम एक मुल्जिम के तौर पर शामिल हो चुका है. वैसे उमेश पाल के कत्ल के फौरन बाद अपने परिवार पर कसते शिकंजे को देखते हुए शाइस्ता ने एक सियासी दांव चलने की कोशिश की थी. उसने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को एक चिट्ठी लिख कर अतीक समेत अपने पूरे परिवार को बेकसूर बताते हुए ये कहा कि ये उसके और उसके परिवार के खिलाफ एक सियासी साजिश है, क्योंकि वो बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर प्रयागराज में मेयर का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. लेकिन तफ्तीश की रौशनी में धीरे-धीरे सारा झूठ बेनकाब हो गया.

 

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