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29 मिनट तक सड़क पर तड़पता रहा, कोई नहीं आया मदद को आगे

एक शख्स सामने की तरफ जा रहा है. उसकी चाल बता रही है कि वो थका-हारा है. पर फिर भी सड़क किनारे चल रहा है. अभी उसे कैमरे की जद में आए सर्फ छह सेकंड ही हए थे कि तभी एक बेहद तेज रफ्तार टैंपो आता है और उसे पीछे से इतनी जोर से टक्कर मारता है.

ऑटो ने मारी शख्स को टक्कर ऑटो ने मारी शख्स को टक्कर
लव रघुवंशी/शम्स ताहिर खान
  • नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 1:12 AM IST

करीब दो करोड़ की आबादी वाले दिल्ली शहर में एक शख्स पूरे 29 मिनट तक पथरीली सड़क पर पड़ा रहा और दो मददगार हाथों के लिए तड़पता रहा, सिसकता रहा. इस दौरान उसके पास से 140 कारें गुजरीं. 181 मोटरसाइकिल सवार गुजरे. 82 ऑटो गुजरे. 45 राहगीर निकले. पर मदद का हाथ किसी ने नहीं बढ़ाया. आखिर में उसी पथरीली सड़क पर पत्थरदिल इंसानों के सामने तड़प-तड़प कर उसने दम तोड़ दिया. अब आप ही बताएं फिर ऐसी मौत पर क्या रोना?

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घरों के दरवाजे और खिड़कियां मत खोलो. वैसे भी इस शहर में शायद ही किसी की मदद के लिए कोई अपने दरवाजे या खिड़किय़ां खोलता हो. पर यहां तो बीच सड़क पर आंखों के सामने पड़ा था वो. पथरीली सड़क लगातार उसके रिसते खून से लाल हो रही थी. हर गुजरता लम्हा उसकी सांसों की डोर काट रहा था. पर किसी ने नहीं, किसी ने उसकी मदद नहीं की. और फिर हार कर उसने इसी पथरीली सड़क पर दम तोड़ दिया.

क्या खूब तरक्की की है हमने. घरों से निकल कर फ्लैट में पहुंच गए. मोहल्लों को अलविदा कहकर कॉलोनी तक आ गए. अपनों और पड़ोसियों को छोड़ अपने इर्द-गिर्द खुद की सोसायटी खड़ी कर ली. अपने आसपास ऊंची-ऊंची इमारतों की दीवारें तान दीं. और फिर फख्र से कहना शुरू कर दिया कि हम शहर में रहते हैं. हम दिल्ली में रहते हैं. पर क्या वाकई हम सब जिंदा हैं? क्या सचमुच हम सब जी रहे हैं? या फिर मुर्दों की भीड़ के बीच हम सब खुद मुर्दा बन चुके हैं?

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दरअसल बेचैन कर देने वाली ये तस्वीरें पश्चिमी दिल्ली के सुभाष नगर इलाके की हैं. तारीख थी 10 अगस्त और वक्त सुबह के ठीक पांच बज कर चालीस मिनट. रोजी-रोटी के लिए अपनी नींदें कुर्बान कर पूरी रात नौकरी करने के बाद वो पैदल घर जाने के लिए निकला था. और बस इसी के बाद शरू होती है वो कहानी..जो काश..बस कहानी ही होती. ताकि इंसानियत शर्मिंदगी से बच जाती.

ऑटो ने मारी टक्कर
दरअसल एक शख्स सामने की तरफ जा रहा है. उसकी चाल बता रही है कि वो थका-हारा है. पर फिर भी सड़क किनारे चल रहा है. अभी उसे कैमरे की जद में आए सर्फ छह सेकंड ही हए थे कि तभी एक बेहद तेज रफ्तार टैंपो आता है और उसे पीछे से इतनी जोर से टक्कर मारता है कि वो हवा में उछल कर सड़क की बाईं तरफ जा गिरता है. नीते गिरते ही अब वो लगभग बेसुध सा हो चुका था. उधर टक्कर से एक पल के लिए टेंपो का भी बैलेंस बिगड़ता है, लेकिन तब गाड़ी को संभाल कर ड्राइवर उसे बीच सड़क पर ही रोक देता है. इसके बाद टैंपो ड्राइवर नीचे उतरता है और घूम कर उस शख्स की तरफ बढ़ने लगता है, जिसे उसने अभी-अभी टक्कर मारी है. एक पल को लगा कि शायद वो उसकी मदद के लिए आगे बढ़ रहा है.

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मगर अगले ही पल गलतफहमी दूर हो जाती है. टैंपो ड्राइवर उसके करीब जाते-जाते अचानक रुकता है और फिर उसे मरता छोड़कर अपनी टैंपो के उस हिस्से को देखने लगता है, जिस हिस्से से वो टकराया था. इसके बाद परे इत्मीनान से वो वापस मुड़ता है, और टैंपों में बैठ कर चला जाता है. ऐसा लगता है मानो कुछ हुआ ही ना हो.

सड़क पर पड़े-पड़े चिल्लाता रहा
उस शख्स के सिर पर गहरी चोट लगी थी. जिस्म के कई और हिस्से भी जख्मी थे. खून लगातार रिस रहा था. मगर वो अब भी उसी पथरीली सड़क पर जस का तस पड़ा थ. पास में ही सड़क किनारे बरसाती पानी जमा था. खून धीरे-धीरे उस पानी को लाल कर रहा था. उसमें इतनी हिम्मत और जान नहीं थी कि खुद खड़ा होता, अस्पताल जाता यहां तक कि मदद के लिए चीखता-चिल्लाता. बस दर्द की आंहों में उसकी आंहें दबी जा रही थीं. पर जिस्म में जान अब भी बाकी थी. सांसें अब भी चल रही थीं.

रुकने में कर दी देर
करीब-करीब आधा घंटा होने को था. इसके पास से इस दौरान तमाम इंसान गुजरे, पैदल, गाड़ियों, मोटर गाड़ियों में. किसी की नजर पड़ी. किसी की नहीं. किसी ने सीधी नजर डाली तो किसी ने कनखियों से देखा. किसी ने नजरें फेर लीं तो किसी ने नजरें बदल लीं. और फिर आखिर में अचानक दो लोग आते हैं. हैरतअंगेज तौर पर दोनों रुकते भी हैं. हम सबको हैरान करते हुए दोनों उस जख्मी शख्स को छूते भी हैं. उसकी नब्ज भी टटोलते हैं. मगर अफसोस अब देर हो चुकी थी. सांसे इंतजार कर हार चुकी थीं. अब सचमुच सांसें जिंदा नहीं थीं.

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