
इंग्लैंड और फ्रांस के बीच एक छोटा सा द्वीप है, जिसका नाम आइलैंड ऑफ जर्सी है. नवंबर 1957 में एक महिला जो कि पेशे से नर्स थी, वो वह अपना काम खत्म करके हॉस्पिटल से निकली. वह बस लेने के लिए बस स्टॉप पर पहुंची. उस समय काफी अंधेरा हो चुका था. तभी पीछे किसी ने उसके गले में रस्सी डाली और उसे खींचकर पास के खेतों में ले गया. महिला चीखने की कोशिश कर रही थी. लेकिन उसका गला रस्सी से इतनी जोर से दबाया गया था कि उसकी आवाज ही नहीं निकल पा रही थी.
'Mirror' की रिपोर्ट के मुताबिक, इस महिला के साथ उस शख्स ने पहले रेप किया. फिर उसे बुरी तरह मारा-पीटा. बाद में उसे वहीं छोड़कर चला गया. कुछ ही देर बाद वहां से गुजर रहे कुछ लोगों की नजर महिला पर पड़ी और उन्होंने उसे अस्पताल पहुंचाया. पुलिस को जब इस घटना की सूचना मिली तो उन्होंने घटनास्थल पर पहुंच कर छानबीन शुरू की. लेकिन उन्हें वहां कुछ भी ऐसा नहीं मिला जिससे हमलावर का पता लग सके. इसके बाद जब पुलिस ने इस बारे में महिला से पूछा तो उसे भी पता नहीं था कि किसने उससे साथ यह सब किया. पुलिस को उसने बताया कि वह उस हमलावर का चेहरा भी नहीं देख पाई क्योंकि उसने चेहरे पर अजीब सा मास्क पहन रखा था. लेकिन उसके पास बदबू आ रही थी और उसकी आवाज से ऐसा लग रहा था जैसे वह आयरिश भाषा बोलने की कोशिश कर रहा है. पर वह आयरिश भाषा सही से बोल नहीं पा रहा था.
अब यहां सभी को लग रहा था कि जिस किसी शख्स ने भी ऐसा किया है वह शायद दोबारा ऐसा न करे. उन्हें लगा कि पुलिस उसे कभी न कभी पकड़ ही लेगी. लेकिन किसी को भी नहीं पता था कि आगे क्या-क्या होने वाला है. समय बीतता गया और लोग इस मामले को लगभग भूल ही चुके थे. फिर समय आया मार्च 1958 का. एक महिला बस से उतरकर अपने घर की तरफ जा रही थी. तभी पीछे से किसी शख्स ने उस पर भी रस्सी डाली और उसे खींचते हुए पास के खेत में ले गया. उस महिला के साथ भी वही सब होने लगा जो नबंवर 1957 में पहली महिला वाली के साथ हुआ था.
दूसरी महिला बनी निशाना
जिस दूसरी महिला के साथ यह सब हो रहा था, उसे यह सब होता देख पहली महिला के साथ हुई घटना याद आ गई. वह समझ चुकी थी कि यह शख्स उसके साथ रेप और मारपीट करेगा फिर उसे छोड़ देगा. हुआ भी कुछ ऐसा ही. इस हमलावर ने महिला के साथ रेप के बाद मारपीट की और उसे वहीं छोड़कर चला गया. इस महिला ने भी पुलिस को वही सब बताया जो पहली महिला के साथ हुआ था. उसने पुलिस को बताया कि हमलावर ने चेहरे पर डरावना सा मास्क पहना हुआ था, जिसके चलते वह उसका चेहरा नहीं देख पाई. इस बार भी पुलिस के हाथ खाली ही रहे. उन्हें उस हमलावर के बारे में कोई सुराग नहीं मिल पाया.
तीसरी महिला को बनाया निशाना, चौथी बची
फिर समय आया जुलाई 1958 का. इस बारी एक और महिला के साथ हूबहू ऐसा ही वाकया हुआ. अब तक यहां तीन महिलाएं उस अज्ञात हमलावर का शिकार बन चुकी थीं. मामला देखते ही देखते हर जगह फैल गया. लोगों के दिलों में डर पैदा हो गया कि आखिर ये हमलावर आखिर है कौन? इसके कुछ महीनों तक तो सब कुछ शांत रहा. लेकिन फिर समय आया अगस्त 1959 का. इस बार हमलावर ने चौथी महिला को अपना शिकार बनाना चाहा. लेकिन वह महिला काफी हट्टी-कट्टी थी. जब हमलावर ने उस पर हमला किया तो महिला ने अपने बचाव के लिए उससे लड़ना शुरू कर दिया. हालांकि, महिला उसका चेहरा तो नहीं देख पाई लेकिन उसने हमलावर को अच्छा सबक सिखाया. जब हमलावर ने देखा कि महिला उस पर हावी हो रही है तो वह वहां से भाग खड़ा हुआ.
महिला ने इस बारे में पुलिस को बताया तो उन्होंने मान लिया कि यह एक ही हमलावर है जिसने चारों महिलाओं पर हमला किया. अब यहां लोगों को भी लगने लगा कि हमलावर सिर्फ उन्ही महिलाओं को अपना शिकार बना रहा है जो कि बाहर होती हैं. घर पर महिलाओं को कोई खतरा नहीं है. लेकिन यहां वे गलत थे.
घरों में घुसकर लोगों को बनाया निशाना
फिर जैसे ही 1960 का समय शुरू हुआ. इस अज्ञात हमलावर ने लोगों के घरों पर घुस-घुस कर उन्हें अपना निशाना बनाना शुरू किया. फरवरी 1960 में एक 12 साल का लड़का अपने घर में परिवार के साथ सो रहा था. वह दूसरे कमरे में सो रहा था. तभी उसे लगा कि कोई उसकी आंखों पर टॉर्च मार रहा है. जैसे ही उसकी नींद खुली तो देखा कि कोई शख्स उसके पास बैठकर उसके चेहरे पर टॉर्च मार रहा है. टॉर्च की रोशनी इतनी ज्यादा थी कि वह उसका चेहरा नहीं देख सका. इससे पहले कि वह कुछ बोल पाता. उस हमलावर ने उसका गला रस्सी से दबा दिया और लड़के को खींचकर घर बाहर ले गया. फिर पास बने खेतों में लड़के के साथ कुकर्म किया और उसे भी खूब मारा-पीटा. इसके बाद लड़के को खींचकर उसके घर तक ले आया. वहां लड़के को छोड़ा और फरार हो गया.
डॉक्टर बनकर युवती को दी लिफ्ट, फिर किया रेप
इस घटना के बाद लोगों के साथ-साथ अब पुलिस भी परेशान हो गई कि आखिर कौन है जो ये सब कर रहा है? पुलिस हमलावर के बारे में पता लगाने की कोशिश कर ही रही थी कि तभी मार्च 1960 में एक और मामला सामने आया. 25 साल की एक युवती अपने ऑफिस से निकलकर घर की तरफ जा रही थी. तभी रास्ते में उसके सामने एक कार आकर रुकी. इस कार में एक डॉक्टर की ड्रेस में शख्स बैठा था. उस डॉक्टर ने उसे लिफ्ट ऑफर की. युवती भी बिना कुछ सोचे कार में बैठ गई. थोड़ी ही दूर चलने के बाद उस शख्स ने गाड़ी को गलत दिशा में मोड़ दिया और जंगल की तरफ जाने लगा. युवती ने यह सब देखते ही विरोध करना शुरू किया. शख्स ने गाड़ी वहीं रोकी फिर युवती के गले को रस्सी से दबाकर उसे बाहर निकाला और रेप किया. बाद में उसे वापस गाड़ी में बैठाया. युवती जोर-जोर से चिल्लाने लगी तो शख्स ने उसे चलती गाड़ी से धक्का दे दिया. युवती इसके कारण गंभीर रूप से जख्मी हो गई. बावजूद इसके पुलिस इस शख्स तक नहीं पहुंच पाई.
14 साल की बच्ची से किया रेप
इसके बाद भी यह शख्स शांत नहीं हुआ. जुलाई 1960 में इसने एक पूरे घर को अपना निशाना बनाया. इस घर के आस-पास कोई और घर नहीं था. यहां 43 साल की महिला अपनी 14 साल की बेटी के साथ रहती थी. तभी रात के समय इनके घर के लैंडलाइन नंबर पर किसी ने कॉल किया. महिला ने जब फोन उठाया तो दूसरी तरफ से किसी ने जवाब नहीं दिया. महिला ने फोन रखा दिया और सोने के लिए चली गई. तभी उसे अचानक से कुछ आवाज आई जिससे उसे लगा कि उसके घर की दूसरी मंजिल में कोई है. जैसे ही वह चेक करने के लिए गई तो उस अज्ञात हमलावर ने महिला को धक्का दिया और भागकर उसकी बेटी के कमरे में जा घुसा. महिला मदद मांगने के लिए तुरंत बाहर भागी. तभी पीछे से इस अज्ञात हमावर ने उसकी बेटी के गले में रस्सी बांधी और उसे भी खींचकर पास के खेतों में ले गया. उसके साथ भी उसने रेप और मारपीट की. फिर लड़की को वहीं छोड़कर फरार हो गया.
लोगों ने दिया 'बीस्ट ऑफ जर्सी' नाम
इन सब घटनाओं के बाद से लोगों ने इस अज्ञात हमलावर को नाम दिया 'बीस्ट ऑफ जर्सी' (Beast Of Jersey). इस 'बीस्ट ऑफ जर्सी' ने इसी तरह उसने आगे भी काफी लोगों को अपना निशाना बनाया. बताया जाता है कि 'बीस्ट ऑफ जर्सी' उन्ही लोगों को अपना निशाना बनाने लगा था जिनके घर शांत इलाकों में होते थे या जिन घरों के आस-पास कोई नहीं रहता था. तीन सालों से इस हमलावर के आतंक से लोग परेशान हो चुके थे.
पुलिस ने ली डिटेक्टिव की मदद
पुलिस पर भी अब प्रेशर बन चुका था कि किसी भी तरह इस हमलावर को पकड़ना है. इसलिए पुलिस ने स्कॉटलैंड के एक फेमस डिटेक्टिव जैक माइनिंग को बुलाया. ताकि वह केस सॉल्व करने में उनकी कुछ मदद करें. उन्होंने जैक को पूरी डिटेल्स दीं. उन्होंने उसकी एक खास बात भी जैक को बताई. दरअसल, जिस भी इंसान को अज्ञात हमलावर अपना निशाना बनाता था उसे यह बात जरूर बोलता था कि उसने एक मर्डर किया है.
लोगों को दी रात को घर से न निकलने की सलाह
जैक ने अपनी तफ्तीश शुरू की. उन्होंने अपने लेवल पर न जाने कितने ही क्रिमिनल्स को पकड़ा और उनसे पूछताछ की. लेकिन उन्हें इस हमलावर का कुछ भी पता नहीं लग पाया. फिर पुलिस और जैन माइनिंग ने आइलैंड के सभी लोगों से कह दिया कि रात को 10 बजे के बाद कोई भी अपने घर से बाहर नहीं निकलेगा. लेकिन इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा. 'बीस्ट ऑफ जर्सी' तब भी लोगों को अपना निशाना बनाता रहा. इसके बाद जैक ने सोचा हो सकता है कि यह काम कोई बाहर का शख्स नहीं बल्कि आइलैंड में रहने वाला कोई व्यक्ति ही कर रहा है. क्योंकि उसे यहां के पूरे एरिया का अच्छे से पता है और वह सोच-समझकर प्लानिंग के साथ इन वारदातों को अंजाम दे रहा है. जैक ने फिर प्लान बनाया कि क्यों न आईलैंड में रह रहे सभी लोगों के फिंगर प्रिंट ले लिए जाएं ताकि आगे अगर कोई इस तरह की घटना होती है तो हमलावर को फिंगर प्रिंट की मदद से पकड़ा जा सकेगा.
13 लोगों ने नहीं दिए फिंगर प्रिंट
उन्होंने आइलैंड में रह रहे सभी पुरुषों के फिंगर प्रिंट लेने के लिए अनुरोध किया. उन्होंने लोगों से यह भी कहा कि जो भी शख्स अपना फिंगर प्रिंट नहीं देना चाहता है वो हमें आकर मना कर दे. हम किसी को फोर्स नहीं करेंगे. दरअसल, जैक ने यह सोच रखा था कि जो भी शख्स फिंगर प्रिंट देने से इनकार करेगा वही शायद अज्ञात हमलावर हो. फिर जब फिंगर प्रिंट लेने की बारी आई तो कुल 13 पुरुषों ने अपने फिंगर प्रिंट देने से इनकार कर दिया. जिन भी लोगों ने उन्हें फिंगर प्रिंट देने से इनकार दिया था जैक और पुलिस ने उन्हें बिना बताए उन पर नजर रखनी शुरू कर दी.
पुलिस को हुआ बूढ़े शख्स पर शक
इन्हीं 13 लोगों में एक बूढ़ा शख्स अल्फोंस भी शामिल था. पुलिस और जैक को सबसे ज्यादा शक इसी पर था. क्योंकि यह शख्स रात को अक्सर अकेले घूमा करता था. जब इसकी तलाशी ली गई तो इसके पास एक रेनकोट मिला जिससे पुलिस और जैक को न जाने उस पर और ज्यादा शक बढ़ गया. उन्होंने अल्फोंस को गिरफ्तार कर लिया. उसके घर की इतनी बार तलाशी ली गई कि आस-पास के लोग भी अब यही सोचने लगे कि वह अज्ञात हमलावर कोई और नहीं, बल्कि अल्फोंस ही है. पुलिस को जब उसके घर और कुछ संदिग्द नहीं मिला तो उन्होंने अल्फोंस को छोड़ दिया. लेकिन जैसे ही वह अपने घर पहुंचा तो देखा कि लोगों ने उसके घर को आग लगा दी थी.
अल्फोंस ने छोड़ दिया आइलैंड
इस बात का अंदाजा अब अल्फोंस को भी लग चुका था कि उसका यहां रहना खतरे से खाली नहीं है. इसलिए उसने वह आइलैंड उसी समय छोड़ दिया और आइलैंड ऑफ एक्साइल में चला गया. लेकिन उसे उम्मीद थी कि एक दिन असली हमलावर जरूर पकड़ा जाएगा. जिसके बाद वह अपने देश लौट पाएगा. वहीं, अल्फोंस के जाने के बाद दो साल तक आइलैंड ऑफ जर्सी में कोई भी क्राइम नहीं हुआ. लोगों ने अब सच में ही मान लिया था कि वह अल्फोंस ही था जो ये सब कर रहा था.
बच्चों को बनाया निशाना
लेकिन दो साल बाद फिर से घटनाओं का सिलसिला होना शुरू हो गया. सितंबर 1963 में एक 9 साल के लड़के के साथ बिल्कुल वैसा ही हुआ जो पहले के पीड़ितों के साथ हुआ था. फिर नवंबर 1963 में 14 साल की लड़की के साथ भी ऐसा ही हुआ. इसके बाद दिसंबर 1963 में भी 16 साल की लड़की और 10 साल के लड़के को इसी तरह निशाना बनाया गया. फिर अगले 2 सालों तरह दोबारा से घटनाओं का सिलसिला बंद हो गया. अब पुलिस को लगने लगा कि शायद 'बीस्ट ऑफ जर्सी' मर चुका है. या वह आइलैंड को छोड़कर भाग गया है. लेकिन अब दो साल बाद उसने बजाय कोई क्राइम करने के, उसने सीधे पुलिस को ही चैलेंज किया. उसने एक लेटर लिखकर पुलिस को भेजा.
हमलावर ने पुलिस को लिखा लेटर
इसमें उसने लिखा, ''आप बस अपना समय बर्बाद कर रहे हैं. मैं जो कुछ भी अब तक करता आया हूं, आगे भी करता रहूंगा. आप मुझे कभी नहीं पकड़ सकते. चाहे तो आप पूरे देश की पुलिस मेरे पीछे लगा दें. मैं कभी भी पकड़ में नहीं आऊंगा.'' इसी के साथ उसने अगस्त 1965 में कुछ डरावना होने की चेतावनी भी पुलिस को दी. उसने लिखा कि इस दिन मैं कुछ ऐसा करूंगा जिससे आपको मेरे खिलाफ सबूत भी मिल जाएंगे. लेकिन आप फिर भी मुझे नहीं पकड़ पाओगे. क्योंकि मैं एक परफेक्ट क्रिमिनल हूं.
पीड़िता को क्या बोला हमलावर?
वह अपनी बात का पक्का निकला. अगस्त 1965 में उसने फिर एक 15 साल की लड़की को अपना निशाना बनाया. लेकिन उसने यहां लड़की को बताया कि एक महिला को मारने में सिर्फ 5 मिनट का समय लगता है. पीड़िता ने पुलिस को बताया कि उसकी बातों से ऐसा लग रहा था जैसे उसने किसी महिला की हत्या की हो. तभी उसने यह बात उसे बताई. इसके बाद 'बीस्ट ऑफ जर्सी' लंबे समय के लिए शांत हो गया. उसने इस तरह की किसी भी घटना को अंजाम नहीं दिया. फिर समय आया अगस्त 1970 का. उसने 13 साल के लड़के को उसी के घर में घुसकर निशाना बनाया. फिर उसके साथ वैसा ही सब किया जो बाकी पीड़ितों के साथ किया था.
ऐसे पकड़ा गया 'बीस्ट ऑफ जर्सी'
फिर से पुलिस ने तफ्तीश शुरू की. लेकिन उन्हें एक बार फिर कुछ भी हासिल नहीं हुआ. फिर दिन दिन आया 10 जुलाई 1971 का. दो पुलिसकर्मी रात के समय अपनी ड्यूटी कर रहे थे. पेट्रोलिंग के समय जब पुलिस की गाड़ी रेड लाइट के पास रुकी तो उन्होंने देखा कि एक कार रेड लाइट को तोड़ते हुए तेजी से वहां से गुजरी. पुलिस वालों ने उसका पीछा शुरू किया. इसी दौरान उसकी गाड़ी बीच सड़क में किसी चीज से टक्कर लगने के कारण रुक गई. वह शख्स गाड़ी से उतरा और खेतों की तरफ भागने लगा. पुलिस वाले भी उसके पीछे दौड़े और उसे पकड़ लिया. उसे पुलिस स्टेशन लाया गया. जैसे ही उसे पुलिस वालों ने गौर से देखा तो उन्हें उसके पहनावे और शरीर के ढांचे से शक हुआ कि कहीं ये वही अज्ञात हमलावर तो नहीं. क्योंकि उसने भी मास्क पहना हुआ था और उसके पास गंदी सी बदबू भी आ रही थी जैसा कि उसका शिकार बने लोगों ने पुलिस को बताया था.
पत्नी से नहीं थे अच्छे रिश्ते
इसके बाद उसकी पहचान की गई तो पता चला कि इस शख्स का नाम एडवर्ड पैस्नेल (Edward Paisnel) है. उसकी उम्र 46 साल थी. वह यहीं पैदा हुआ था और उसकी शादी जॉन नामक महिला से हुई थी. पता चला कि उसके जॉन के साथ अच्छे रिलेशन नहीं थे. दोनों बस नाम के ही पति-पत्नी थे. उनकी एक बेटी भी थी. उसकी पत्नी से जब पूछताछ की गई तो उसने बताया कि वह एक अनाथ आश्रम चलाती है. उसने बताया कि एडवर्ड इसी आश्रम में छोटे-मोटे काम करता है. अनाथ आश्रम के बच्चों से जब एडवर्ड के बारे में पूछा गया तो सभी ने उसकी तारीफ की. उन्होंने बताया कि एडवर्ड हमारी बहुत अच्छे से देखभाल करता है. वो हमारे लिए अक्सर गिफ्ट लाता है.
पुलिस के सामने मुकर गया एडवर्ड
लेकिन उन्हें नहीं पता था कि वही एडवर्ड इतने घिनौने काम भी करता है. पुलिस ने अब जब उससे पूछताछ की तो एडवर्ड ने सीधे बोल दिया कि न तो ये मास्क मेरा है, न ये कोट मेरा है, न ये टॉर्च मेरी है और न ही ये विग मेरी है. जब पुलिस ने उससे पूछा कि तो तुम हमें देखकर क्यों भागे थे? इस पर एडवर्ड ने कहा कि मैं आपको देखकर नहीं भागा. आपने जबरदस्ती मुझे गिरफ्तार किया है. इसके बाद उसने पुलिस के किसी भी सवाल के जवाब को देना बंद कर दिया. जब पुलिस ने उसके खिलाफ रिपोर्ट लिखनी चाही तो उसने पेन छीनकर लिखा 'अगर मैं बीस्ट ऑफ जर्सी हूं तो पहले इसे साबित करो.'
घर से मिली अजीबोगरीब चीजें
इसके बाद पुलिस ने उसके घर की तलाशी ली तो उन्हें वहां एक सीक्रेट रूम मिला. उस कमरे के अंदर दीवारों पर अजीबोगरीब मास्क टंगे थे. पुलिस ने जब ध्यान से देखा तो पाया कि ये मास्क इंसानी शरीर को काटकर बनाए गए हैं. उस कमरे में बदबू भी आ रही थी. देखा तो पाया कि वहां जानवरों के शव पड़े हुए हैं जो कि सड़ चुके हैं. फिर पुलिस को वहां कुछ ऐसा मिला जिससे उनके भी होश उड़ गए. उसने कमरे में उन सभी पीड़ितों के फोटो रखे थे जिन्हें वह निशाना बना चुका था. उसके कमरे से ब्लैक मैजिक की किताबें भी मिलीं. फिर जब सबूत लेकर पुलिस उसके पास पहुंची तो उसने कहानी बतानी शुरू की. उसने कहा कि कोई उसे पहचान न पाए इसलिए वह आयरिश भाषा में बात करता था. इसके अलावा वह अपनी पहचान छुपाने के लिए घटनास्थल पर हमेशा सिग्रेट के डिब्बे छोड़ देता था. ताकि पुलिस को लगे कि जो भी हमलावर है वह सिग्रेट पीने का शौकीन है. जबकि, असल जिंदगी में वह कभी सिग्रेट नहीं पीता है.
पत्नी ने लिखी एडवर्ड पर किताब
फिर पुलिस ने जब उन 13 लोगों के फिंगर प्रिंट निकाले जिन्होंने डिटेक्टिव जैक को फिंगर प्रिंट देने से इनकार किया था, उसमें इसका एडवर्ड का नाम भी शामिल था. लेकिन उस समय एडवर्ड की जगह अल्फोंस पर ध्यान दिया. अगर पुलिस उसी समय इस पर भी ध्यान देती तो शायद एडवर्ड पहले ही पकड़ा जाता. इसके बाद पुलिस ने एडवर्ड को कोर्ट में पेश किया जहां उसे 30 साल कैद की सजा सुनाई गई. इन 30 सालों में जब वह जेल की सजा काट रहा था तो उसकी पत्नी ने 'बीस्ट ऑफ जर्सी' नाम से एक किताब भी लिखी.
1994 में हार्ट अटैक से एडवर्ड की मौत
लेकिन यहां एक और हैरान करने वाली बात यह रही कि कोर्ट ने उसे 1971 में 30 साल की सजा तो सुनाई. पर वह 1991 में ही एडवर्ड जेल से बाहर आ गया. क्योंकि जेल में उसके बर्ताव को देखते हुए उसकी सजा कम कर दी गई और उसे छोड़ दिया गया. लेकिन जैसे ही वह जेल से बाहर आया तो उसे डर था कि कहीं लोग उसे मार न डालें. इसलिए वह आइलैंड ऑफ जर्सी छोड़कर दूसरी जगह शिफ्ट हो गया. फिर 1994 में हार्ट अटैक से मौत हो गई. लेकिन उसकी मौत के बाद पुलिस को पता चला कि एडवर्ड द्वारा निशाना बनाए गए पीड़ितों में वे बच्चे भी शामिल थे जो कि उसकी पत्नी के अनाथ आश्रम में रहते थे. उन्होंने एडवर्ड के डर से कभी भी इस बात को नहीं बताया. लेकिन जब उसकी मौत हो गई तो काफी बच्चों ने बताया कि एडवर्ड उनके साथ भी यह सब कर चुका था.